Lok Sabha Election 2024 Opposition Party Meeting Will Nitish Kumar Be The New Chanakya Of The Opposition Parties
बिहार के 8 बार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी दलों को इकट्ठा करने के अपने मिशन में जुटे हुए हैं. बिहार में बीजेपी से अलग होने और आरजेडी ,कांग्रेस वामदलों के साथ महागठबंधन बनाने के बाद से ही वो अपने इस काम में लगे हुए हैं. पिछले साल सितंबर से लेकर अभी तक नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, डी राजा, ओम प्रकाश चौटाला, हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी, फारूख अब्दुल्ला, नवीन पटनायक और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर से मुलाकात कर चुके हैं. ममता ने नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद कहा था कि विपक्ष दलों की बैठक बिहार में हो जो 23 जून को होने जा रही है.
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बिहार जो जयप्रकाश नारायण की भूमि है, जहां से 1977 का छात्र आंदोलन शुरू हुआ था और उसी की देन लालू यादव और नीतीश कुमार हैं, उस वक्त जेपी ने विपक्षी दलों को इकट्ठा कर कांग्रेस या कहें इंदिरा गांधी के खिलाफ कर जनता पार्टी बनाई थी और अब उन्हीं के अनुयाई नीतीश फिर से सभी विपक्षी दलों को जोड़ रहे हैं. नीतीश कुमार की खासियत ये है कि वे पूर्णकालिक रूप से नेता हैं. मतलब 24 घंटे उनके राजनीतिक चर्चा, विचार-विर्मश में ही बीतता है. ऐसा नेता जो बीजेपी को भी अच्छी तरह समझता है. वाजपेयी से लेकर अब तक के बीजेपी नेताओं के साथ उन्होंने काम किया है. मगर जेपी और समाजवादी विचारधारा वाले नीतिश कुमार इस बार कांग्रेस के साथ हैं.
नीतीश ने इस बार सभी विपक्षी दलों को समझाया कि कांग्रेस के बिना कोई सार्थक विपक्ष नहीं बन सकता है. यदि मौजूदा सरकार या कहें बीजेपी से लड़ना है तो.. नीतीश कुमार का फार्मूला है बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार..नीतीश कुमार की रणनीति के 3 अहम हिस्से हैं पहला -बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड की 134 सीटों पर फोकस करना..बीजेपी ने पिछली बार 115 सीटों पर सफलता पाई थी. दूसरा- मोदी बनाम कौन पर चुनाव नहीं लड़ा जाए यानि व्यक्ति विशेष या कहें मोदी बनाम राहुल की लड़ाई ना हो..अगला चुनाव मुद्दों पर हो जैसे मंहगाई, बेरोजगारी, दलितों और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, संस्थाओं का दुरुपयोग. नीतिश चाहते हैं कि 2024 का चुनाव 1996, 2004 की तरह बिना नेता घोषित किए लड़ा जाए..और तीसरी रणनीति है कि जहां जहां कांग्रेस कमजोर है वहां क्षेत्रीय दलों को आगे किया जाए..
नीतीश कुमार अभी उसी भूमिका में हैं, जैसे स्कूल में शिक्षक आपस में झगड़ते कई बच्चों के बीच दोस्ती करवाने का प्रयास करते हैं..उसके लिए पहले सबसे बात करके उन्हें साथ बैठाया जाता है फिर आगे सुलह की बात होती है..नीतीश कुमार का काम समन्वय का काम है, क्योंकि आधा दर्जन दल ऐसे हैं, जो कांग्रेस से दूरी बनाए हुए है और इनके बारे में कांग्रेस भी मानती है कि इन क्षेत्रीय दलों ने उनके वोट बैंक छिन लिए है..ऐसे सभी दलों को एक साथ लाने का काम नीतीश कर रहे हैं..यह कठिन काम है मगर इतिहास गवाह है कि ऐसा हुआ है चाहे वह 1977 के बाद हुआ हो या फिर यूनाइटेड फ्रंट हो या फिर वाजपेयी जी की एनडीए हो या यूपीए. मौजूदा समय में भी संसद में और उसके बाहर 14 से 19 विपक्षी दल अलग अलग मुद्दों पर साथ आते रहे हैं.
फिलहाल नीतीश कुमार की भूमिका वही होने जा रही है, जो एक वक्त में एनडीए बनाने में जार्ज फर्नाडिस की थी या यूनाइटेड फ्रंट बनाने में हरकिशन सिंह सुरजीत की. लेकिन यह इतना आसान नहीं है नीतीश कुमार के लिए यहां चुनौतियां काफी हैं. ममता, अखिलेश और अरविंद केजरीवाल को सीटों के तालमेल पर साथ एक टेबल पर बैठाना और किस तरह होगा सीटों का बंटवारा कौन-सा फार्मूला होगा? यह सब किसी को मालूम नहीं है कि कैसे होगा..यानि उत्तर प्रदेश, बंगाल, पंजाब, दिल्ली की सीटें फंसी हुई हैं..केजरीवाल गुजरात और गोवा पर भी दावा ठोक सकते हैं..पंजाब में कांग्रेस को लोकसभा में 40 फीसदी वोट मिले थे, तो विधानसभा में आप को इतने ही मिले हैं, अब सीटों का बंटवारा कैसे होगा. तेलंगाना की 17 सीटों का क्या होगा, क्योंकि वहां पहले विधानसभा चुनाव होने हैं. दिसंबर में जहां कांग्रेस और बीआरएस आमने-सामने है.. वहीं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी से कोई बात कर भी रहा है या नहीं किसी को मालूम नहीं. वहां लोकसभा की 25 सीटें है..
इन सब के बीच बिहार के पटना में विपक्षी दलों की बैठक हो रही है. इसे कई जानकार शुरुआती सफलता के रूप में देख रहे हैं, जहां तमाम नेताओं के साथ राहुल, ममता और अरविंद केजरीवाल एक ही टेबल पर होगें. नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की बात डीएमके के नेताओं के तरफ से आई है उम्मीद है बाकी दलों को भई इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि नीतीश कुमार ने यह साफ कर दिया है कि वो प्रधानमंत्री के रेस में नहीं हैं और बिहार में तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके हैं. अब जब नीतीश खुद प्लेयर की भूमिका में नहीं हैं, तो रेफरी तो बन ही सकते हैं. कुछ ने तो उन्हें अभी से विपक्ष का चाणक्य कहना शुरू कर दिया है. शायद यह बैठक मगध में हो रही है, वो चाणक्य की धरती थी, मगर यह पदवी पाने से पहले नीतीश कुमार को विपक्ष को एकजुट करने में सफल होना होगा.