Lok Sabha Election 2024 Why Samajwadi Party Change Candidates Lalu Son Son Law Ticket Has Been Cut – लोकसभा चुनाव 2024: सपा को बार बार क्यों बदलने पड़ रहे हैं उम्मीदवार, अब काटा लालू के दामाद का टिकट
सपा ने मंगलवार को बलिया और कन्नौज लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की थी. कन्नौज से तेजप्रताप यादव और बलिया सीट से सनातन पांडेय के नाम की घोषणा की गई थी. लेकिन बुधवार सुबह से ही इस बात की चर्चा तेज हो गई कि अखिलेश यादव कन्नौज से चुनाव लड़ सकते हैं.
पत्रकारों ने जब इस बारे में अखिलेश से पूछा तो उन्होंने इससे इनकार भी नहीं किया. शाम होते-होते यह चर्चा सच में बदल गई. समाजवादी पार्टी ने अखिलेश की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी. अखिलेश ने पिछला लोकसभा चुनाव आजमगढ़ से लड़ा था और जीता था.
कहा यह जा रहा है कि कन्नौज जैसी हाई प्रोफाइल सीट पर तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाए जाने से सपा के स्थानीय नेता नाराज थे. उनका कहना था कि तेज प्रताप की उम्मीदवारी से सपा की लड़ाई कमजोर होगी. सपा नेताओं ने अपनी नाराजगी से पार्टी हाई कमान तक पहुंचा दी थी. इसके बाद पार्टी को अपना फैसला बदलना पड़ा.
कन्नौज सपा का गढ़ रही है. इसी सीट से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादल निर्विरोध चुनाव जीत चुकी हैं. वो इस सीट पर 2014 में भी सांसद चुनी गईं थीं. लेकिन 2019 के चुनाव में उन्हें भाजपा के सुब्रत पाठक के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. वो बाद में मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट से उपचुनाव लड़कर संसद में पहुंचीं. वो इस चुनाव में भी मैनपुरी से ही उम्मीदवार हैं.
आइए देखते हैं कि सपा ने इस लोकसभा चुनाव में अब तक कितनी सीटों पर प्रत्याशी बदल चुकी है.
मेरठ में अखिलेश को ही किस बात की आस
इस चुनाव में सपा ने सबसे अधिक उम्मीदवार मेरठ लोकसभा सीट पर बदले. उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के कमजोर होने के बाद सपा ने दलित वोटरों पर अपना दावा जताने के लिए खुद की पीडीए का प्रतिनिधि कहना शुरू कर दिया. पीडए मतलब- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक.
इसी पीडीए को साधने के लिए सपा ने मेरठ सीट पर सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के वकील भानुप्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की. वो बुलंदशहर के रहने वाले हैं. इसलिए स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद सपा ने सरधना के अपने विधायक अतुल प्रधान को उम्मीदवार बनाया.बाद में प्रधान का टिकट काटकर पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता वर्मा को टिकट दे दिया. वो दलित हैं. सपा ने दलित वोटरों को साधने के लिए सुनीता वर्मा को टिकट दिया है.
शिवपाल यादव को भी बदला
इसी तरह से सपा ने बदायूं से भी तीन बार अपना प्रत्याशी बदला है. सपा की 30 जनवरी को आई पहली लिस्ट में इस सीट से अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव के नाम की घोषणा की थी. लेकिन 22 फरवरी को आई दूसरी सूची में उनकी जगह अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का नाम था. इसके बाद सपा ने नौ अप्रैल को शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की. सपा के इस कदम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी निशाना बना चुके हैं. आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह दिया था कि शिवपाल यादव उम्मीदवार रहें, इसका भरोसा नहीं है.
दिल्ली से सटे नोएडा में भी सपा ने अपना उम्मीदवार दो बार बदला. वहां से पहले डॉक्टर महेंद्र नागर को अपना उम्मीदवार बनाया था. बाद में उनकी जगह पर राहुल अवाना के नाम की घोषणा कर दी गई. लेकिन कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह से सपा ने एक बार फिर डॉक्टर महेंद्र नागर को उम्मीदवार बना दिया है. इस सीट पर 26 अप्रैल को मतदान होना है.
इसी तरह से सपा ने सीतापुर जिले की मिश्रिख सीट पर अपना उम्मीदवार दो बार बदल चुकी है. सपा ने पहले अपने पूर्व विधायक रामपाल राजवंशी को टिकट दिया था.उसके बाद उनके बेटे मनोज राजवंशी को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की.इसे बदले हुए सपा ने मनोज राजवंशी की पत्नी संगीता राजवंशी को उम्मीदवार बना दिया. बाद सपा ने इस सीट से पूर्व सांसद राम शंकर भार्गव को मैदान में अपना उम्मीदवार बनाया है.
जयंत चौधरी का असर
राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी सपा का साथ छोड़कर भाजपा से हाथ मिला चुके हैं. भाजपा ने सीट समझौते में उन्हें बागपत और बिजनौर सीट दी है. इन दोनों सीटों पर भी सपा अपने उम्मीदवार बदल चुकी हैं.सपा ने बागपत में मनोज चौधरी को उम्मीदवार बनाया था. बाद में उनकी जगह अमरपाल शर्मा को उम्मीदवार बना दिया. वहीं बिजनौर में पहले पूर्व सांसद यशवीर सिंह को उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन बाद में जातिय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए यशवीर सिंह की जगह नूरपुर से सपा विधायक रामअवतार सैनी के बेटे दीपक को उम्मीदवार बना दिया गया.
सपा ने यही काम मुरादाबाद, संभल, सुल्तानपुर और रामपुर में भी कर चुकी है.मुरादाबाद में तो सपा ने अपने सांसद की ही टिकट काट दिया है. अब उसकी यह कोशिश कितनी रंग लाती है, इसका पता चार जून को चलेगा, लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे.