Lok Sabha Elections 2024 Analysis First And Second Phase Least Voting On 20 Seats Held By NDA Only – Analysis: सुस्ती या ओवरकॉन्फिडेंस? NDA के कब्जे वाली 20 सीटों पर सबसे कम वोटिंग से किसे नफा-नुकसान
पहले फेज की वो सीटें जहां हुए सबसे कम मतदान
पहले चरण में जिन 10 सीटों पर सबसे कम मतदान हुए वो हैं नवादा, गया, जमुई, औरंगाबाद, अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, भरतपुर, झुंझुनू और करौली धौलपुर ये वो सीटें हैं जहां पिछले 2 चुनाव से मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई थी और बीजेपी को शानदार जीत मिली थी. अधिकतर जगहों पर बीजेपी को 2014 की तुलना में 2019 बड़ी जीत मिली थी. 2009 के चुनाव में इन सीटों पर कम मतदान हुए थे और कई सीटों पर गैर एनडीए दलों को जीत मिली थी.
दूसरे फेज में कम वोटिंग वाले 10 सीटों पर भी NDA का रहा है कब्जा
दूसरे चरण में भी जिन 10 सीटों मथुरा, रीवा, गाजियाबाद, भागलपुर, बेंगलुरु साउथ, गौतम बुद्ध नगर, बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु नॉर्थ, बांका और बुलंदशहर में कम मतदान हुए हैं उन सभी सीटों पर पिछले चुनाव में एनडीए को जीत मिली थी. इन में से कई ऐसी सीटें रही हैं जहां शहरी वोटर्स की संख्या काफी अधिक है. इन सीटों पर बीजेपी या एनडीए उम्मीदवार बड़ी अंतर से चुनाव जीत चुके हैं. बिहार के भागलपुर सीट पर 2014 के चुनाव में बहुत कम अंतर से राजद को जीत मिली थी लेकिन 2019 में वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी के बाद 2019 में जदयू को इस सीट पर बड़ी जीत मिली थी. यही हालात बांका संसदीय सीट पर भी देखने को मिला था.
कम मतदान प्रतिशत से किसे फायदा किसे नुकसान?
वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी और गिरावट को देखकर सीधे तौर पर चुनाव परिणाम को लेकर कुछ भी कहना जल्दीबाजी के तौर पर देखा जाता है. हालांकि किन सीटों पर वोट प्रतिशत में गिरावट हुई है इसे लेकर एक तस्वीर तैयार की जाती है. जिन पहले और दूसरे चरण में जिन सीटों में चुनाव हुए हैं उनमें कुछ ऐसी भी सीटें हैं जहां 30 से 50 प्रतिशत तक मुस्लिम वोटर्स रहे हैं. हालांकि इन सीटों पर वोटिंग परसेंट में गिरावट नहीं हुई है. मतदान प्रतिशत में गिरावट सुरक्षित और शहरी सीटों पर अधिक देखने को मिले हैं.
मतदान प्रतिशत में गिरावट से क्या सत्ताधारी दल को होता है नुकसान?
पिछले 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिले है. जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी हुई है 4 बार सरकार बदल गयी है. वहीं एक बार सत्ताधारी दल की वापसी हुई है. 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई थी और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी. जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी थी. वहीं 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी थी. 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी. 1999 में मतदान में गिरावट हुई लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ. वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला था.
पिछड़े इलाकों के साथ ही बड़े शहरों में भी क्यों कम हुए वोटिंग?
पहले चरण के मतदान में कम वोटिंग होने के पीछे का एक कारण पलायन को बताया गया था. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में कम वोटिंग के लिए यह एक जिम्मेदार कारक हो सकता है हालांकि दूसरे चरण में बेंगलुरु और गौतम बुद्धनगर जैसे क्षेत्रों में भी कम मतदान देखने को मिले जो चिंता के कारण राजनीतिक दलों के लिए हो सकते हैं जिनका शहरी क्षेत्र में मजबूत आधार रहा है.
वोटिंग घटने या बढ़ने को लेकर एक्सपर्ट की क्या है राय?
क्या मौसम है वजह या मतदाताओं में है सुस्ती
वोट प्रतिशत में गिरावट न सिर्फ उत्तर भारत के राज्यों में दर्ज किए गए हैं बल्कि यह गिरावट दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी देखने को मिले हैं. उत्तर भारत में जहां भीषण गर्मी को भी इसका एक अहम कारण माना जा सकता है लेकिन पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में भी मत प्रतिशत में गिरावट देखने को मिली है. पूरे देश में एक ट्रेंड देखा गया है कि लगभग सभी राज्यों में 7 से 10 प्रतिशत तक मतों में गिरावट दर्ज की गयी है. हालांकि कुछ जगहों पर उम्मीदवारों के प्रति लोगों की उदासी भी देखने को मिली है.
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