Lok Sabha Elections: Can Congress Focus On South Break BJPs Dream Of 370 Paar? – लोकसभा चुनाव : क्या कांग्रेस का साउथ पर फोकस बीजेपी का 370 पार का सपना तोड़ सकता है?



6ld89glc sonia gandhi rahul gandhi Lok Sabha Elections: Can Congress Focus On South Break BJPs Dream Of 370 Paar? - लोकसभा चुनाव : क्या कांग्रेस का साउथ पर फोकस बीजेपी का 370 पार का सपना तोड़ सकता है?

दक्षिण भारत के राज्य – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पुडुचेरी की एक-एक सीट महत्वपूर्ण है. यहां से लोकसभा में 130 सांसद पहुंचते हैं. साल 2019 में बीजेपी ने इनमें से केवल 29 सीटों पर दावा किया था, जिनमें से 25 कर्नाटक से थीं और बाकी तेलंगाना से थीं. पार्टी को केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में हार का सामना करना पड़ा था.

तब ऐसा भी नहीं था कि कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया हो, उसने केवल 28 सीटें जीती थीं, लेकिन पार्टी का प्रसार महत्वपूर्ण था. उसने तमिलनाडु में आठ, तेलंगाना में तीन, केरल में 15 और कर्नाटक तथा पुडुचेरी में एक-एक सीट जीती थी.

दक्षिण भारत में लोकसभा चुनाव की इस दौड़ में कांग्रेस के पास कुछ ऐसा है जो बीजेपी के पास नहीं है, दो स्वतंत्र राज्य सरकारें (कर्नाटक और तेलंगाना) और एक सत्तारूढ़ गठबंधन (तमिलनाडु) के साथ उसके पैर जमे हुए हैं. केवल आंध्र प्रदेश को छोड़कर केरल और पुडुचेरी में भी उसकी मजबूत उपस्थिति है.

इसलिए कांग्रेस दक्षिणी राज्यों से अपने लिए अधिक से अधिक सीटें जुटाने के लिए उत्सुक है. खास तौर पर जब यह आम धारणा बन चुकी है कि बीजेपी फिर से हिंदी भाषी राज्यों पर हावी हो जाएगी. साल 2019 में भगवा पार्टी ने इन राज्यों में 185 सीटें जीती थीं, जबकि उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी ने आश्चर्यजनक रूप से खराब प्रदर्शन करते हुए सिर्फ पांच सीटें जीती थीं.

माना जाता है कि चुनाव लड़ने और जीतने वाली सीटों के प्रतिशत में अधिकतम बढ़ोत्तरी के मामले में दक्षिण ही वह जगह है जहां कांग्रेस को सबसे अधिक लाभ हो सकता है. कांग्रेस का ध्यान कर्नाटक और तेलंगाना पर है, जहां वह बीजेपी और के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति को हराने में कामयाब होकर सत्ता में आई है.

कर्नाटक

कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. कांग्रेस ने 2019 में केवल एक सीट जीती थी. पिछले साल के विधानसभा चुनाव में पार्टी के मजबूत प्रदर्शन के बाद हालात उसके पक्ष में बदल सकते हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि ऐतिहासिक रूप से राज्य में आम चुनाव में वैसा मतदान नहीं होता, जैसा कि विधानसभा चुनाव में होता है.

हालांकि कांग्रेस मजबूती के साथ लड़ाई लड़ने की इच्छुक है और उसने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार के वरिष्ठ सदस्यों को संभावित उम्मीदवारों के रूप में चुना है. यह एक अच्छी खबर है.

बुरी खबर यह है कि बहुत से लोग चुनाव लड़ने के उत्सुक नहीं हैं. लोक निर्माण मंत्री सतीश जारकीहोली और खेल मंत्री बी नागेंद्र जैसे दिग्गज नेताओं ने विरोध किया है और महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बलकर व समाज कल्याण मंत्री एससी महादेवप्पा जैसे नेताओं ने लड़ने से सीधे इनकार कर दिया है.

सूत्रों ने यह भी कहा है कि पार्टी इस पर कड़ा रुख अपनाने का इरादा रखती है. उप मुख्यमंत्री और कांग्रेस के संकटमोचक कहलाने वाले डीके शिवकुमार ने कहा है, “पार्टी आलाकमान का फैसला सभी को मानना होगा…यहां तक कि मुझे भी मानना होगा.”

ऐसे में पार्टी का ‘कड़ा रुख’ इस राज्य के नेताओं को कितना रास आएगा और कितने लोग बीजेपी में शामिल होंगे? यह स्पष्ट नहीं है. बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि वह अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के नेताओं को स्वीकार करने को तैयार है.

तेलंगाना

तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. राज्य की 119 विधानसभा सीटों में से 64 मिलीं. इससे लोकसभा चुनाव में पार्टी की उम्मीदें बढ़ गई हैं. एक करिश्माई मुख्यमंत्री रेवंत ‘टाइगर’ रेड्डी के साथ पार्टी 2019 से अधिक सीटें चाहेगी. तब उसे 17 लोकसभा सीटों में से केवल तीन मिली थीं.

चर्चा है कि पार्टी का नेतृत्व कोई और नहीं बल्कि पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी कर सकती हैं. उनका राज्य में सम्मान किया जाता है और कई लोग उन्हें 2014 में इस राज्य के निर्माण के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में देखते हैं.

सोनिया गांधी राजस्थान से एक सांसद के रूप में राज्यसभा में चली गई हैं और प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए उत्तर प्रदेश की अपनी रायबरेली सीट से छोड़ दी है. सूत्रों ने कहा है कि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को भी टिकट दिया गया है. हालांकि दोनों में से किसी को भी तेलंगाना से मैदान में उतारने की संभावना नहीं है.

प्रियंका गांधी अपनी मां की सीट को बचाने के लिए तैयार हैं, जबकि राहुल गांधी बीजेपी की स्मृति ईरानी से अमेठी को वापस हासिल करने की कोशिश करेंगे. साथ ही वे केरल में अपनी वायनाड सीट पर भी लड़ेंगे.

सवाल यह है कि क्या इससे कांग्रेस के पास कोई ऐसा बड़ा नाम नहीं बचेगा जिसके बलबूते वह तेलंगाना में अपना चुनाव अभियान चलाए? और क्या पार्टी अब बीआरएस के पास मौजूद नौ सीटों में से अधिकतम हासिल कर सकती है?

केरल

केरल में साल 2019 के चुनाव में बीजेपी को कोई सीट नहीं मिला थी, लेकिन उसके वोट शेयर में लगभग 2.7 प्रतिशत का इजाफा देखा गया था. इससे पहले कांग्रेस ने 2014 में सात से बढ़कर 15 सीटें जीतीं थीं और उसका वोट शेयर लगभग 38 प्रतिशत था. 2024 के चुनाव के लिए यह अच्छी खबर है, लेकिन ऐसी भी सुगबुगाहट है कि सब कुछ ठीक नहीं है.

इंडिया गठबंधन की सदस्य सीपीआईएम ने वायनाड से अपने उम्मीदवार एनी राजा को मैदान में उतारा है. यह सीट राहुल गांधी के पास है. कांग्रेस ने यह नहीं बताया है कि क्या वह यह सीट छोड़ने को तैयार है?

तमिलनाडु सहित अन्य राज्यों में भी सीटों के बंटवारे को लेकर अभी भी सवालिया निशान हैं. लोकसभा में तमिलनाडु से 39 सांसद और आंध्र प्रदेश से 25 सांसद भेजे जाते हैं. तमिलनाडु में कांग्रेस और सत्तारूढ़ डीएमके के बीच 2019 से गठबंधन है. 

कुल मिलाकर कांग्रेस इस बार दक्षिण में पिछली बार की तुलना में नाटकीय रूप से बेहतर प्रदर्शन करना चाहेगी. हालांकि यह बीजेपी को देश भर में जीत का दावा करने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. लेकिन यह संसद को संतुलित करने और पीएम मोदी की पार्टी के लिए एक मजबूत विपक्ष का सामना करना सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम रास्ता बनाएगा.



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