Mahakumbh 2025: इस संत के आगे बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी फेल! BHU से पीएचडी के दौरान इस विषय पर कर चुके हैं शोध



HYP 4843322 1733800217967 1 Mahakumbh 2025: इस संत के आगे बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी फेल! BHU से पीएचडी के दौरान इस विषय पर कर चुके हैं शोध

प्रयागराज: दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मेले में हर प्रकार के साधु संत शामिल हो रहे हैं. इनमें से कुछ संतों के पास सामान्य आदमी से अधिक डिग्री होती हैं फिर भी वे सन्यासी बनकर लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान बांटते हुए नजर आते हैं. वहीं कुछ संत दिन-रात मौन होकर तपस्या में लीन नजर आते हैं. ऐसे ही एक संत से लोकल 18 की बात हुई जिनहोंने ज्ञान और डिग्री को लेकर कुछ खास बातें कहीं.

धर्म और विज्ञान पर किया है शोध
श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा 13 मढ़ी मिर्जापुर के संत डॉक्टर योगानंद गिरी ने लोकाल 18 से बात करते हुए बताया कि वे सबसे उच्च डिग्री ले चुके हैं, जिसे पीएचडी कहते हैं. उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से धर्म और विज्ञान विषय पर पीएचडी करने के दौरान शोध किया था. वहीं धर्म विज्ञान में ही परास्नातक (एमए) की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने बताया कि कुछ लोग मानते हैं कि दुनिया में विज्ञान ही सब कुछ है तो ऐसा नहीं है. बिना धर्म के विज्ञान और बिना विज्ञान के धर्म अधूरा है. ये दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं.

सनातन धर्म पहले से है विज्ञानी
डॉक्टर योगानंद गिरी ने लोकल 18 के माध्यम से बताया कि सनातन धर्म दुनिया का ऐसा धर्म है जिसमें पहले से ही धर्म और विज्ञान एक साथ निहित दिखाई देते हैं. आदिकाल से ही पीपल की पूजा एवं अन्य वृक्षों की पूजा सनातन धर्म में होती आयी है. वहीं विज्ञान मानता है कि पीपल के वृक्ष से निकलने वाला ऑक्सीजन काफी लाभकारी होता है.

इसके अलावा सनातन धर्म में घर के आगे तुलसी का पौधा लगाने की परंपरा है. वहीं विज्ञान इसको कहता है कि तुलसी का पौधा सर्वाधिक आक्सीजन देता है. इसको घर के आगे लगाने से घर वालों को उचित ऑक्सीजन मिलता रहता है. इस प्रकार सनातन धर्म में विज्ञान पहले से ही निहित है या हम ऐसे कह सकते हैं कि विज्ञान से पहले सनातन धर्म ही रहा.

आध्यात्मिक ज्ञान है जरूरी
उन्होंने बताया कि हनुमान चालीसा में लिखित है कि हनुमान जी ने त्रेता युग में 1 मिनट के अंदर पृथ्वी से सूर्य की दूरी नाप दी थी. वहीं आर्यभट्ट ने पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी अपनी आध्यात्मिक शक्ति एवं प्रकृति के द्वारा ही बता दी थी. आज कुछ लोगों में ये भावना व्याप्त है कि साधु सन्यासी कम पढ़े लिखे होते हैं तो ऐसा नहीं है. उनके पास भी कई उच्च डिग्रियां होती हैं. वे भी आध्यात्मिक विषयों में पढ़ाई करके संत महात्मा बनते हैं. इसके लिए काफी कुछ त्याग करना पड़ता है.

FIRST PUBLISHED : December 30, 2024, 09:53 IST



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