Man Pregnancy: पिता के गर्भ से उत्पन्न हुए, इंद्र ने पिलाया था दूध, भगवान राम के पूर्वज की कहानी!


“यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहां से. अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशां हमारा!”

‘हम’….यानी प्रकृति को पूजने वाले लोग. ‘हम’….यानी भारतीय, धरती के उस हिस्से के निवासी, जहां सूर्य भी चमकने से डरता है कि कहीं कोई वानर आकर उसे अपना निवाला न बना ले, जहां समुद्र भी एक ‘महा-मानव’ के बाणों से थर-थर कांपता है! ‘हम’….यानी भारतवर्ष, जिसके कण-कण में राम बसे हैं. वो राम जो सबके हैं….पर हमारे राम किसके थे? उनके पूर्वज कौन थे? हमारा दावा है कि आप भगवान राम के पूर्वजों के बारे में नहीं जानते होंगे जो महान राजा हुए. उनके वंश में एक ऐसे राजा भी हुए, जिसने पुरुष होते हुए गर्भ से एक बच्चे (Pregnant King) को जन्म दिया. उस बच्चे को इंद्र ने दूध पिलाया और उससे रावण तक खौफ खाता था! ये कहानी है, भगवान राम के पूर्वज मांधाता (King Mandhata story) की.

भागवत पुराण के नवम स्कन्ध के छठे अध्याय में इक्ष्वाकु के वंश का वर्णन मिलता है, इसके साथ ही मांधाता की कहानी का भी उल्लेख किया गया है. उनकी कहानी को जानने से पहले, आपको भगवान राम के पूर्वजों (Ancestors of Lord Rama) के बारे में जान लेना चाहिए, क्योंकि भी वो भी हमारे स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं.

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भागवत पुराण के नवम स्कन्ध के छठे अध्याय में इक्ष्वाकु के वंश का वर्णन मिलता है. (फोटो: भागवत पुराण पीडीएफ, इंटरनेट से)

ये है भगवान राम की वंशावली
ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप. इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए. जब विवस्वान हुए तभी से सूर्यवंश का आरंभ माना जाता है. विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए. वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम (नाभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध. भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल (Who is the ancestor of Rama) में हुआ था.

इक्ष्वाकु के पुत्र थे कुक्षि, कुक्षि के पुत्र विकुक्षि थे. विकुक्षि के पुत्र बाण, बाण के पुत्र अनरण्य हुए. अनरण्य से पृथु, पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ और त्रिशंकु के पुत्र ‘धुन्धुमार’. इसी वंश में राजा दिलीप हुए जिनके पुत्र भगीरथ थे. भागीरथ ने ही कठोर तप कर मां गंगा को धरती पर उतारा था. भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ, ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुये. रघु बहुत पराक्रमी और तेजस्वी राजा थे और उनका प्रताप अत्यधिक था जिसकी वजह से इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा. इस कुल में आगे चलकर अज का जन्म हुआ और अज के पुत्र दशरथ हुए. राजा दशरथ ने अयोध्या पर राज किया. उनके चार पुत्र हुए श्री रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न. श्री रामचंद्र के दो पुत्र लव और कुश हुए. इस प्रकार भगवान राम का जन्म ब्रह्राजी की 67वीं पीढ़ी में हुआ. पर आज हम इस कुल में ही जन्मे राजा युवनाश्व के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे.

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इस अध्याय में युवनाश्व राजा का जिक्र है. (फोटो: भागवत पुराण पीडीएफ, इंटरनेट से)

पुराण में मिलती है राजा युवनाश्व की कहानी
भागवत पुराण के अनुसार राजा युवनाश्व (King Yuvanashva) संतानहीन थे. इस बात से दुखी होकर वो अपनी 100 पत्नियों के साथ वन में चले गए. वहां ऋषियों ने पुत्र प्राप्ति के लिए राजा युवनाश्व और उनकी पत्नियों के साथ भगवान इंद्र का यज्ञ करवाया. एक दिन राजा युवनाश्व को रात के वक्त बहुत तेज प्यास लगी. वो यज्ञशाला में गए पर वहां उन्होंने देखा कि सारे ऋषि सो रहे हैं. ऋषियों को नींद से उठाना राजा को ठीक नहीं लगा. मगर उन्हें प्यास बहुत तेज लगी थी और जब पानी मिलने का और कोई जरिया उन्हें नहीं मिला तो उन्होंने यज्ञ में रखे एक कलश से ही जल पी लिया. उन्हें नहीं पता था कि उस पानी को मंत्रों से अभिमंत्रित कर रखा गया है. जब सुबह ऋषि उठे तो वो ये देखकर चौंक गए कि यज्ञ में रखे कलश के अंदर जल ही नहीं है. उन्होंने सबसे पूछा कि पुत्र उत्पन्न करने वाला जल आखिर किसने पी लिया. जब उन्हें मालूम चला कि भगवान की प्रेरणा से खुद राजा युवनाश्व ने उस जल को पी लिया तो उन्होंने भगवान को प्रणाम किया. इस जल को पीने की वजह से राजा युवनाश्व ने गर्भ धारण कर लिया.

पिता ने दिया पुत्र को जन्म, इंद्र ने पिलाया दूध
जब 9 महीने बाद प्रसव का वक्त आया तो युवनाश्व की दाहिनी कोख फाड़कर एक चक्रवर्ती पुत्र पैदा हुआ. वो बेहिसाब रो रहा था जिससे ऋषि चिंतित हो गए और उन्होंने कहा कि बालक दूध के लिए रो रहा है, वो किसका दूध पिएगा? तब समस्या का निवारण करने के लिए इंद्र आगे आए. उन्होंने कहा- “मेरा पिएगा (मां धाता) बेटा! तू रो मत!” ये कहकर उन्होंने बच्चे के मुंह में अपनी तर्जनी उंगली डाल दी. इस तरह बच्चे का नाम पड़ा ‘मान्धाता’ जिसका मतलब होता है- ‘(मां के न होने पर) मेरे द्वारा धारण किया’. ऐसा इसलिए क्योंकि उसको इंद्र ने पाला.

मांधाता का नाम पड़ा ‘त्रसदस्यु’!
भागवत पुराण के अनुसार मांधाता पराक्रमी और चक्रवर्ती राजा बने. उन्होंने अकेले ही पूरी धरती पर राज किया. जहां से सूर्य का उदय होता है और जहां वो अस्त होता है, वहां का सारा भूभाग युवनाश्व के बेटे मांधाता के ही अधीन था. वो आत्मज्ञानी थे, उन्होंने दक्षिणा वाले बड़े-बड़े यज्ञ करवाए जिनके जरिए उन्होंने प्रभु की आराधना की. वो इतने शक्तिशाली हुए कि उनसे रावण तक डरता था! इसी वजह से इंद्र ने उनका नाम ‘त्रसदस्यु’ रखा क्योंकि वो ‘दस्युओं’ मतलब लुटेरों (यहां लुटेरों से अर्थ है बुरे लोग) के लिए काल के समान थे. उनसे बुरे लोग बेहिसाब डरते थे.

भगवान राम के पूर्वजों के दौर में कैसे था रावण?
अब अगर आप इस बात से हैरान हैं कि रावण का वध भगवान राम ने किया था, तो वो त्रसदस्यु के वक्त में कैसे था! तो हम आपको लगे हाथ रावण की उम्र के बारे में भी बता देते हैं जिससे आपकी दुविधा दूर हो जाएगी. रावण के 10 शीश थे और त्रेतायुग के अंतिम चरण के आरम्भ में उसका जन्‍म हुआ था. रावण संहिता में ही यह उल्‍लेख है कि रावण ने अपने भाइयों के साथ ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्‍या की. वो ब्रह्माजी को अपने सिर चढ़ाने लगा. हर 1,000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वो अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए. रावण ने उनसे वर मांगा जिसके बारे में आप जानते ही होंगे. वर मिलने के बाद उसने दुनिया में विध्वंस फैलाना शुरू किया. अनेक देव-दानवों, यक्ष-वीरों को पराजित करते हुए रावण जब भगवान शिव के पास पहुंचा, तो उसने कैलाश पर्वत को उठाने की चेष्‍टा की. वहां उसकी भुजाएं दब गईं. तब उसने 1000 वर्षों तक शिव-स्‍तुति की. शिवजी ने प्रसन्‍न होकर उसे वर दिया. इस प्रकार रावण अत्‍यंत बलशाली और मायावी हो गया. वर मिलने तक उसे 11 हजार वर्षों से ज्‍यादा हो चुके थे. लंका में उसका शासनकाल 72 चौकड़ी का था. 1 चौकड़ी में कुल 400 वर्ष हुए, तो 72×400= 28800 वर्ष हो गए. 10,000+1,000+28,800 मिलाएं तब करीब 40 हजार वर्ष होते हैं. 41,000वें वर्ष में उसका श्रीराम से सामना हुआ और वो मारा गया. तो अब आप समझ गए होंगे कि रावण कैसे भगवान राम के पूर्वजों के दौर में भी मौजूद था.

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