Mis Leading Ad Case Ramdev And Balkrishna Again Apologise With Bigger Ad – भ्रामक विज्ञापन मामला : कल से ज्यादा बड़े विज्ञापन के साथ रामदेव, बालकृष्ण ने फिर मांगी माफी


मंगलवार सुबह प्रकाशित विज्ञापन एक अखबार के पृष्ठ के एक-चौथाई हिस्से को कवर करता है और इसका शीषर्क “बिना शर्त सार्वजनिक माफी” है. “भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चल रहे मामले (रिट याचिका सी. संख्या 645/2022) के मद्देनजर, हम अपनी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ कंपनी की ओर से, गैर-अनुपालन या अवज्ञा के लिए बिना शर्त माफी मांगते हैं.”  

नोट में आगे कहा गया है, “हम दिनांक 22.11.2023 को बैठक/प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने के लिए बिना शर्त माफी मांगते हैं. हम अपने विज्ञापनों को प्रकाशित करने में हुई गलती के लिए ईमानदारी से माफी मांगते हैं और यह हमारी पूरी प्रतिबद्धता है कि ऐसी त्रुटियां दोहराई नहीं जाएंगी. हम निर्देशों का पालन करने का वचन देते हैं और माननीय न्यायालय के निर्देशों को उचित देखभाल और अत्यंत ईमानदारी के साथ हम न्यायालय की महिमा को बनाए रखने और माननीय न्यायालय/संबंधित अधिकारियों के लागू कानूनों और निर्देशों का पालन करने का वचन देते हैं – बालकृष्ण, स्वामी रामदेव, हरिद्वार, उत्तराखंड.” 

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सोमवार को प्रकाशित की गई एड काफी छोटी थी और उसमें रामदेव और बालकृष्ण का नाम भी शामिल नहीं था.

कल जस्टिस कोहली ने किया था सवाल 

कल मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस ए अमानुल्लाह की बेंच ने पूछा था कि क्या माफीनामे को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है. जस्टिस कोहली ने पूछा था कि, “क्या माफी को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है? क्या इसका फॉन्ट और आकार आपके पहले के विज्ञापनों के समान है?” 

रामदेव और बालकृष्ण की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि माफी 10 लाख रुपये की कीमत पर 67 अखबारों में प्रकाशित की गई थी लेकिन अदालत दृढ़ रही. “कृपया विज्ञापनों को काटें और हमें दे दें. उन्हें बड़ा कर के हमें न दिखाएं. हम विज्ञापन का वास्तविक आकार देखना चाहते हैं. हम यह देखना चाहते हैं कि जब आप कोई विज्ञापन जारी करें तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमें इसे माइक्रोस्कोप से देखना पड़े.” इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी और उस दौरान कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को भी मौजूद रहने के लिए कहा है. 

क्या है मामला 

यह मामला कोविड के वक्त का है जब पतंजलि ने कोरोनिल नाम की एक दवा 2021 में शुरू की थी. रामदेव ने इस दवा को लेकर दावा किया था कि, “कोविड-19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा”. पतंजलि ने यह भी दावा किया कि कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रमाणन प्राप्त है, लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसे “सरासर झूठ” बताया.

रामदेव का एक वीडियो वायरल होने के बाद चिकित्सा संस्था और पतंजलि के बीच टकराव बढ़ गया, जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना गया कि एलोपैथी एक “बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान” है. आईएमए ने रामदेव को कानूनी नोटिस भेजा और माफी मांगने को कहा. पतंजलि योगपीठ ने जवाब दिया कि रामदेव एक अग्रेषित व्हाट्सएप संदेश पढ़ रहे थे और उनके मन में आधुनिक विज्ञान के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है.

अगस्त 2022 में, आईएमए ने समाचार पत्रों में ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमी: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई गलत धारणाओं से खुद को और देश को बचाएं’ शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद पतंजलि के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. विज्ञापन में दावा किया गया कि पतंजलि की दवाओं से लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, लीवर सिरोसिस, गठिया और अस्थमा ठीक हो गया है.

पिछले साल 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को ऐसे दावों के खिलाफ चेतावनी दी थी और भारी जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी थी. अदालत के दस्तावेज़ों के अनुसार, पतंजलि के वकील ने तब आश्वासन दिया था कि “अब से, किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा, विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन और ब्रांडिंग से संबंधित.” 

इस साल 15 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को संबोधित एक गुमनाम पत्र मिला, जिसकी प्रतियां न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति अमानुल्लाह को भेजी गईं. पत्र में पतंजलि द्वारा लगातार जारी किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों का जिक्र किया गया है. आईएमए के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने अदालत को 21 नवंबर, 2023 की चेतावनी के बाद के अखबारों के विज्ञापन और अदालत की सुनवाई के बाद रामदेव और बालकृष्ण की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की प्रतिलेख भी दिखाया. इसके बाद कोर्ट ने पतंजलि से जवाब मांगा और पूछा कि उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए.

19 मार्च को कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया है. इसके बाद कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा. अदालत ने 2 अप्रैल की सुनवाई में भ्रामक विज्ञापनों पर उचित हलफनामा दायर नहीं करने पर “पूर्ण अवज्ञा” के लिए रामदेव और बालकृष्ण को कड़ी फटकार लगाई. इसके बाद 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा माफीनामा खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्हें पहले मीडिया को भेजा गया था.

अदालत ने कहा कि उनकी माफ़ी “दिल से नहीं मांगी थी” और “जबानी दिखावा मात्र” थी. इसके बाद 16 अप्रैल को एक सुनवाई में, दोनों को माफी मांगने का अपना इरादा प्रदर्शित करने के लिए कहा गया.

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