Muharram 2024: मुहर्रम के लिए रातभर जाग ताजिए बना रहे कलाकार, युवाओं की ज्यादा दिलचस्पी


अल्मोड़ा. उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में इन दिनों मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ताजिए बनाना शुरू कर दिए हैं. ताजियों को बनाने के लिए छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक इस काम में जुटे हुए हैं. शहर में ताजिए बनाने की प्रथा कई वर्षों से चली आ रही है. मुहर्रम पर हजरत इमाम हसन हुसैन की याद में ये ताजिए बनाए जाते हैं. दरअसल अल्मोड़ा के ताजिए कुमाऊं भर में प्रसिद्ध हैं, जिसमें शहर के युवा रातभर जागकर ताजिए बनाते हैं. इसमें आपको क्राफ्ट वर्क खूब देखने को मिलेगा. ताजिए बनाने की यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली जा रही है.पहले बड़े-बुजुर्ग इस काम को करते थे लेकिन बीते कुछ सालों में युवा पीढ़ी ने यह जिम्मेदारी उठाई है.

अल्मोड़ा निवासी मोहम्मद फाईक ने लोकल 18 से कहा कि दो दिन पहले से ताजिए बनाने का काम शुरू हो चुका है. ताजिए बनाने में करीब 10 से 12 दिन लग जाते हैं. यहां के युवा कलाकारों के साथ बड़े लोग भी मिलकर इनका निर्माण करते हैं. रात 2 बजे तक सभी लोग मिलकर काम करते हैं. अंतिम दिनों में सभी लोग सुबह तक ताजिए बनाने में भी लगे रहते हैं.

इसलिए रात में बनाते हैं ताजिए

स्थानीय निवासी अरहम हबीब ने लोकल 18 से कहा कि उन्होंने ताजिए बनाना बड़े-बुजुर्गों से सीखा. ताजियों को बनाने में करीब दो हफ्ते लगते हैं. इस दौरान सभी युवाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है. वर्तमान में पेपर कटिंग की जा रही है, फिर धीरे-धीरे जितना काम बढ़ेगा, उतने ही लोगों की संख्या भी बढ़ती जाएगी, जिससे काम जल्द से जल्द पूरा हो सके. दिनभर दुकान या नौकरी में होने की वजह से सभी लोग रात के समय आकर इन ताजियों को बनाते हैं.

3-4 हफ्ते पहले से बनने शुरू हो जाते हैं ताजिए

स्थानीय निवासी मोहम्मद मुदस्सर ने लोकल 18 से कहा कि मुहर्रम के करीब 3-4 हफ्ते पहले से ताजिए बनाने का काम शुरू कर दिया जाता है. युवा वर्ग व अन्य लोग मिलकर इस काम को करते हैं. अभी देर रात तक कटिंग का काम किया जा रहा है. इसके बाद ताजिए में फिनिशिंग टच दिया जाएगा. छोटे बच्चों से लेकर बड़े लोगों में ताजिए बनाने के लिए काफी उत्साह देखने को मिलता है.

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