भारत में बहुभाषिकता एक स्वाभाविक प्रवृति रही है : गिरीश्वर मिश्र
भारत: संगोष्ठी केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा हिंदी और उसकी बोलियों का अंतर्संबंध विषयक ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि भारत में बहुभाषिकता एक स्वाभाविक प्रवृति रही है। उन्होंने भाषा के विकास के लिए उसके समुचित प्रयोग को आवश्यक बताया। उन्होंने भाषा के क्षेत्र में तकनीकी मध्यस्थता को एक प्रकार का सांस्कृतिक संकट बताया।
मॉरीशस के महात्मा गांधी हिंदी संस्थान के भोजपपुरी व लोक संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरविन्द बिसेसर ने कहा कि हमें अपनी भाषा और बोलियों में युवा पीढ़ी को दैनंदिन प्रयोग एवं सृजनात्मक लेखन के लिए प्रेरित करना चाहिए। कोलकाता विश्वविद्यालय में हिंदी के पूर्व अध्यक्ष प्रो॰ अमरनाथ ने जार्ज ग्रियर्सन को उद्धृत करते हुए कहा कि भाषा एवरेस्ट की तरह है और उसकी बोलियाँ पहाड़ियाँ हैं। दोनों का अस्तित्व एक साथ है। बुनियादी तौर पर दोनों में कोई तात्विक अंतर नहीं है।
अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक प्रो॰ नारायण कुमार ने कहा कि बोलियों को किसी समुद्र में मिलाने की अनावश्यक कोशिश से उसके खारा हो जाने का खतरा रहेगा और उसकी स्वाभाविक मिठास ख़त्म हो सकती है। संगोष्ठी में अपना मन्तव्य प्रकट करते हुए प्रवासी संसार के संपादक डॉ. राकेश पाण्डेय ने कहा कि हिंदी एवं उसकी बोलियों में भवन एवं नींव सा अंत:संबंध है। उन्होंने कहा कि बोलियों का सौन्दर्य जग जाहिर है।
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषाकर्मी राहुल देव ने कहा कि जीवंतता बनाए रखने के लिए भाषाओं का बोला जाना जरूरी है। उनका अभिमत था कि हिंदी की बोलियों को वे बोली न कहकर सहभाषा कहना उपयुक्त रहेगा। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने त्रिभाषा सूत्र, आठवीं अनुसूची तथा विश्व हिंदी सम्मेलन के औचित्य को सामने रखते हुए कहा कि भाषा के संवर्धन की दृष्टि से हमें नई शिक्षा नीति से बहुत आशाएँ हैं।
इससे पहले विषय प्रवर्तन करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की निदेशक प्रो॰ बीना शर्मा ने बताया कि उनके संस्थान में अनेक भाषाओं और बोलियों की समृद्धि हेतु परियोजनाएं निर्धारित हैं। इसके अलावा देश के आठ अधीनस्थ क्षेत्रीय संस्थान भाषा सेवा में गंभीरतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।
संगोष्ठी का संचालन कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज के डॉ. विजय कुमार मिश्र ने जार्ज ग्रियर्सन, बनारसी दास चतुर्वेदी और सुनीति कुमार चटर्जी जैसे भाषा साधकों के कथन एवं दृष्टिकोणों को सामने रखते हुए भाषा के संबंध में अस्मिताबोध और उसकी जटिलताओं को सामने रखा। कार्यक्रम के प्रारंभ में हिंदी भवन भोपाल के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने भाषा विमर्श के इस विषय को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और हिंदी को राष्ट्रीय एकता की सुदृढ़ कड़ी की संज्ञा दी।
धन्यवाद ज्ञापन मॉरीशस स्थित भारतीय उच्चायोग की द्वितीय सचिव (हिंदी व संस्कृति) सुनीता पाहुजा ने किया और आज की चर्चा को बेहद सार्थक बताया।
संगोष्ठी में जापान से पद्मश्री डॉ. तोमियो मीजोकामी, अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह, उदय कुमार, ब्रिटेन से दिव्या माथुर, पदमेश गुप्त, थाईलैंड से शिखा रस्तोगी, सिंगापूर से प्रो. संध्या सिंह सहित देश विदेश के अनेक हिंदी के विद्वानों ने सहभागिता की।