न्यू ईयर 2021 के जश्न के बीच वायरल हुई राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर की यह कविता, आप भी पढ़िए (New year 2021 this poem)
न्यू ईयर 2021 New year 2021 this poem : नए साल की शुरुआत हो चुकी है। कोरोना गाइडलाइन के बाजजूद देशभर में नए साल का जश्न मनाया गया। जैसे ही घड़ी का कांटा 12 पर पहुंचा, लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देने लगे। यह सिलसिला 1 जनवरी को दूरे दिन चलेगा। इस बीच सोशल मीडिया (इंटरनेट मीडिया) पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता वारयल हुई। अपनी इस कविता में क्रांतिकारी कवि ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि 31 दिसंबर या 1 जनवरी हमारा नया साल नहीं है। यह उन अंग्रेजों की दी हुई परंपरा है, जिन्होंने 100 साल हम पर राज किया, हमारे देशभक्तों को मौत के घाट उतारा। उन्होंने हिंदू पंचांग के हिसाब से नव वर्ष बनाने की बात कही है। पढ़िए पूरी कविता
ये नव-वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव-वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव-वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह–सुधा बरसायेगी
शस्य–श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
नव-वर्ष मनाया जायेगा
“आर्यावर्त” की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति–प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव-वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव-वर्ष चैत्र-शुक्ल- प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों
को चाहिये कोई उधार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये नव-वर्ष हमें स्वीकार नहीं!