natural farming jungle model 25 crops among sugarcane guava sa
भावनगर: किसान प्राकृतिक खेती अपनाकर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं. साथ ही, किसान खेती में प्राकृतिक मॉडल को भी अपना रहे हैं. भावनगर जिले के वलभीपुर तालुका के पटना गांव के एक किसान ने खेती में जंगल मॉडल तैयार किया है. यह क्षेत्र भाल प्रदेश के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र में आमतौर पर कपास, ज्वार, गेहूं और चना उगाया जाता है, लेकिन इस किसान ने डेढ़ बीघा जमीन में जंगल मॉडल विकसित किया है. इसे करीब दो साल हो चुके हैं. यहां लगभग 25 अलग-अलग फसलें लगाई गई हैं. हालांकि, उत्पादन अभी शुरू नहीं हुआ है, लेकिन निकट भविष्य में उत्पादन शुरू हो जाएगा.
डायमंड फैक्ट्री छोड़ शुरू की खेती
किसान पाटीवाला प्रभुदास ने कहा, “मैं पहले डायमंड फैक्ट्री चलाता था, लेकिन अब उम्र के कारण मैंने खेती शुरू की है. मैंने 2005 से खेती करनी शुरू की और 2019 से प्राकृतिक खेती को अपनाया. खेती में सुभाष पालेकर जंगल मॉडल तैयार किया है. यह मॉडल पूरी तरह से प्राकृतिक है. इसमें किसी भी प्रकार की केमिकल दवाई या खाद का उपयोग नहीं किया जाता है. खेती में केवल जीवामृत और बीजामृत का उपयोग किया जाता है. यह पूरी तरह से गौ आधारित खेती है.”
डेढ़ बीघा में 25 फसलें
उन्होंने बताया, “फिलहाल मैंने यह मॉडल डेढ़ बीघा जमीन में तैयार किया है. इसमें 20 से 25 प्रकार की फसलें लगाई गई हैं, जिनमें गन्ना, सरगवा, चीकू, आम, अमरूद, सीताफल, रायन, खीरा, अनार और आंवला शामिल हैं. भाल पंथक में आमतौर पर कपास और ज्वार मुख्य फसलें होती हैं. साथ ही, रबी की फसलों में गेहूं और चना लगाया जाता है. यहां का अनुकूल मौसम अन्य फसलों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है. लेकिन प्राकृतिक खेती से जमीन हर प्रकार की फसल के लिए अनुकूल बन रही है.”
प्राकृतिक खेती के फायदे
प्रभुदास ने कहा, “खेती में ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र और दस पर्णी अर्क का उपयोग कर फसलों में रोग और कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है. वर्तमान में, खेत में मल्चिंग की गई है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पानी की जरूरत कम होती है. जीवामृत के साथ मल्चिंग करने से यह खाद का काम करता है. यह सभी फसलों के लिए फायदेमंद है. जीवामृत तैयार करने के बाद सिंचाई धोरिया (नाली) और ड्रिप सिस्टम के जरिए की जाती है.”
बिना खर्च का मॉडल
उन्होंने बताया “यह मॉडल दो साल पहले तैयार किया गया था. फिलहाल विशेष उत्पादन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन निकट भविष्य में उत्पादन शुरू होगा. इस मॉडल में अलग से कोई खर्चा नहीं किया गया है. प्राकृतिक तरीके से खेती कर जमीन को उपजाऊ बनाया जा रहा है.”
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FIRST PUBLISHED : December 29, 2024, 10:30 IST