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बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में स्थित सौ साल पुरानी जेल, जिसे 1835 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित किया गया था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक मूक गवाह है. यह जेल ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों द्वारा किए गए संघर्षों और त्याग की कहानी बयां करती है. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाई गई इस ऐतिहासिक संरचना को 1835 में विस्तारित किया गया था, लेकिन मुख्य स्थान की कमी और आसपास की अन्य इमारतों के कारण 2011 में इसे बंद कर दिया गया.

जेल का विस्तार नहीं किया जा सका, जिससे अधिक कैदियों को रखना मुश्किल हो गया और अंततः इसे बंद करना पड़ा. बंद होने के बाद, यह जेल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गई. स्थानीय नागरिक राजू बताते हैं कि इस जेल में 1857 से लेकर 1947 तक कई स्वतंत्रता सेनानी, जैसे बनारसी दास और महावीर त्यागी को कैद रखा गया. यह जेल स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण पलों का साक्षी रही है.

इतिहासकारों का मानना है कि यह जेल भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की एक महत्वपूर्ण कड़ी रही है, और इसे संरक्षित करना भविष्य की पीढ़ियों के लिए बेहद जरूरी है. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के मुल्तानीमल डिग्री कॉलेज के इतिहास प्रोफेसर केके शर्मा के अनुसार, यह जेल लगभग 188 वर्षों तक संचालित रही और इसकी दीवारें कई ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी हुई हैं.

इस जेल ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक के संघर्षों को देखा है, जिसने अंततः भारत को आजादी दिलाई. इसके ऐतिहासिक महत्व के कारण, इसे संरक्षित करना जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भारत के संघर्षों को समझ सकें.

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