Nutan Birth Anniversary: चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए



NOOTAN Nutan Birth Anniversary: चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए

हिंदी सिनेमा जिन चंद हस्तियों के बिना अधूरा होगा तो उन लोगों में से एक नाम है, नूतन. अभिनय के लिए छह फिल्‍म फेयर अवार्ड्स पाने वाली एक्ट्रेस नूतन ने 70 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है और उनकी फिल्‍में निर्देशक, अभिनेता, गीत-संगीत से इतर इसलिए भी पहचानी जाती हैं क्‍योंकि वे नूतन की फिल्‍म हैं. फिर चाहे सामने अभिनेता बलराज साहनी हो, अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देवानंद, राजकपूर, सुनील दत्‍त हों या अमिताभ बच्‍चन. फिल्‍म का निर्देशन चाहे विमल राय ने‍ किया हो या अमिय चक्रवर्ती ने या राज खोसला ने, कई दर्शकों ने फिल्‍म को केवल नूतन की फिल्‍म के रूप में ही जाना और पहचाना है. जीवन का कितना बड़ा विस्‍तार है कि कभी अपने रंग-रूप को लेकर हीन भावना से घिरी रहने वाली नूतन ने ‘मिस इंडिया’ खिताब जीता और अपने अभिनय के दम पर अब तक दर्शकों के दिलों पर राज कर रही हैं.

अभिनेत्री नूतन की याद खासतौर से इसलिए क्‍योंकि 4 जून को उनका जन्‍मदिन है. 4 जून, 1936 को मुंबई में जन्‍मी नूतन का निधन 21 फरवरी 1991 को कैंसर की वजह से हुआ था. अभिनेत्री शोभना समर्थ और निर्देशक कुमारसेन समर्थ की बेटी नूतन ने 1950 में फिल्म ‘हमारी बेटी’ से अभिनय की शुरुआत की थी. इस फि‍ल्म का निर्देशन उनकी मां शोभना समर्थ ने ही किया था. इसके बाद नूतन ने ‘हमलोग’, ‘शीशम’, ‘नगीना’ और ‘शबाब’ जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फि‍ल्मों से उनकी कुछ खास पहचान नहीं बन पाई.

1952 में नूतन मिस इंडिया चुनी गई और 1955 में फिल्‍म ‘सीमा’ में बलराज साहनी के साथ बड़े पर्दे पर दिखाई दी. इस फिल्म में अभिनय से नूतन ने अपनी अलग रेखा खींच ली थी. नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को ऐसा साकार किया कि बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकार की उपस्थित में नूतन अलग पहचानी गई. इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए नूतन को अपने कॅरियर का पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्‍म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ. ‘सीमा’ के बाद आई ‘सुजाता’ और ‘बंदिनी’ बतौर अभिनेत्री नूतन की कमाल फिल्‍में हैं. सिर्फ ये ही फिल्‍म क्‍यों, ‘पेईंग गेस्ट’, ‘अनाड़ी’, ‘छलिया’, ‘देवी’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘सौदागर’, ‘मिलन’ जैसी फिल्‍मों को हम नूतन के लाजवाब अभिनय के लिए जानते हैं.

वर्ष 1958 में प्रदर्शित फि‍ल्म ‘दिल्ली का ठग’ में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर सबको चौंका दिया था. फिल्म ‘बारिश’ में भी बोल्ड दृश्य देने पर उनकी आलोचना हुई. एक दौर ऐसा आया जब उनकी छवि ट्रैजिक किरदारों में बंध गई थी लेकिन ‘छलिया’ और ‘सूरत और सीरत’ जैसी फिल्मों के हास्‍य किरदारों ने आलोचना को बेहतर जवाब दे दिया.

अस्सी के दशक में नूतन ने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू की तो फिर अपने अभिनय का सिक्‍का जमाया. इन फि‍ल्मों में ‘मेरी जंग’, ‘नाम’ और ‘कर्मा’ प्रमुख हैं. हिंदी सिनेमा कई अभिनेत्रियों की अदायगी के कारण पहचाना जाता है मगर लंबे समय तक नूतन एकमात्र अभिनेत्री रही जिसे पांच बार फिल्‍म फेयर पुरस्‍कार मिला है. ये फिल्‍में हैं, सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा और मिलन. ‘मेरी जंग’ के लिए सहाय‍क अभिनेत्री का फिल्‍म फेयर पुरस्‍कार मिला. जब वे छोटे पर्दे पर आई तो ‘मुजरिम हाजि‍र’ की भूमिका को यादगार बना गई. अपने इसी अभिनय कौशल के कारण नूतन को वर्ष 1974 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया.

अपने अभिनय और बेबाकी के लिए खास जगह बनाने वाली नूतन अपने जीवन में भी उसूलों की पक्‍की थीं. उनके जीवन की दो घटनाएं इसका उदाहरण हैं. पहला मामला मां से जुड़ा हुआ है. नूतन ने अपने खाते में हुई आर्थिक गड़बड़ी के लिए अपनी मां शोभना समर्थ को जिम्मेदार बताया। इसके लिए उन्होंने अपनी मां के खिलाफ मुकदमा भी किया. इस प्रकरण से मां-बेटी के रिश्तों में आई दरार लंबे समय तक भरी नहीं जा सकी थी. दूसरी घटना उस समय की है जब फिल्‍म जगत नूतन और संजीव कुमार के अफेयर की चर्चा चल पड़ी थी. इस बात से नूतन नाराज थी. जब उन्‍हें पता चला कि यह खबर संजीव कुमार की ओर प्रचारित की गई है तो उन्होंने सीधे संजीव कुमार से ही पूछ लिया. जब संजीव कुमार ने उनसे प्यार का इजहार किया तो नूतन तमतमा गई और उन्‍होंने सभी के सामने संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया.

इन चुनिंदा खबरों के अलावा नूतन को लेकर अधिक विवाद सार्वजनिक नहीं हुए. अलबत्‍ता में महिला सशक्तिकरण के किरदारों के लिए हमेशा जानी गईं. ‘सीमा’, ‘सुजाता’, ‘बंदिनी’ से शुरू हुआ यह सफर ‘मेरी जंग’, ‘नाम’ और ‘कर्मा’ तक कायम रहा. रोल छोटा रहा हो या बड़ा, नूतन की छाप हर फिल्‍म पर कायम रही.नूतन अपने आंगिक अभिनय, बोलती आंखों तथा भावप्रवण मुद्राओं के कारण ही नहीं बल्कि उन पर फिल्‍माए गए गानों के कारण भी बहुत लो‍कप्रिय हुई हैं. ‘बंदिनी’ का लोकप्रिय गीत ‘मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे शाम रंग दई दे’ गुलजार का फिल्‍मी दुनिया में लिखा गया पहला गीत जैसे नूतन के लिए ही लिखा गया है. 1957 में आई फिल्‍म ‘पेइंग गेस्ट’ का गाना ‘चांद फिर निकला’ नूतन पर फिल्माया गया एक शानदान गाना है.

मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीत ‘चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए, जला फिर मेरा दिल, करूं क्या में आया’ को लता मंगेशकर ने स्‍वर दिया था. इसी तरह ‘दिल्ली का ठग’ फिल्‍म का गाना ‘ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा’ गीत सुनते हुए भी श्रोता नूतन को ही याद करते हैं. ‘दिल का भंवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो, प्यार का राग सुनो’, कव्वाली ‘निगाहें मिलाने को जी चाहता है, दिल-ओ-जान लुटाने को जी चाहता है’, तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्‍ही मेरी पूजा’, ‘सावन का महीना पवन करे सोर’, ‘चंदन सा बदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना’, ‘तू प्‍यार का सागर है’ जैसे गीतों को सुनते समय ऐसा हो नहीं सकता है कि नूतन का चेहरा हमारे ख्‍याल में न उभरे.

हिंदी फिल्‍मों के मुरीद दर्शकों को ऐसी बिरली सौगातें दे गई नूतन को याद करना असल में उनके दिलकश अभिनय के प्रति सलाम व्‍यक्‍त करना है.

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