OMG : अजमेर जाने के लिए अकबर को बाबा मोहनदास से लेनी पड़ी थी अनुमति, रेवाड़ी से बाहर निकलना हो गया था मुश्किल
पवन कुमार/ रेवाड़ी. अकबर और बीरबल की कहानियां तो आपने खूब सुनी होंगी. दोनों के बीच के अनगिनत किस्से-कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. अकबर की बहादुरी के बारे में भी कई उल्लेख आपको मिल जाएंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अकबर का नाम इतिहास के पन्नों में अमर होने के पीछे भी एक मज़ेदार कहानी है. नहीं मालूम तो हम आपको बताने जा रहे एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा.
इतिहास के जानकार बताते हैं कि आज से सदियों पहले दिल्ली से अजमेर के लिए रास्ता रेवाड़ी से होते हुए जाता था. उस दौरान अकबर बादशाह दिल्ली से अजमेर के लिए रवाना हुए. लेकिन दिनभर चलने के बाद भी अकबर एक स्थान पर वापिस पहुंच जाते. ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. कई दिन बीत जाने के बाद भी अकबर अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाए.
अकबर ने बाबा से मांगी थी माफी
आखिर में जाकर बीरबल ने ग्रामीणों से इस बारे में बात की. बीरबल इसके पीछे का राज़ जानकर हैरान रह गए. ग्रामीणों से मालूम हुआ कि बाबा मोहनदास के चमत्कार के कारण वे अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पा रहे.मोहनदास बाबा के चमत्कार से प्रभावित होकर अकबर सिर पर कपड़ा और मुंह में घास का तिनका रखकर बाबा की शरण में पहुंचे. बाबा मोहनदास ने अकबर से कहा कि रेवाड़ी की सीमा उनके इलाके से होकर गुज़रती है इसीलिए वे बिना उनकी इजाज़त के रेवाड़ी जिला पार नहीं कर सकते.अकबर ने अपनी गलती स्वीकारी और बाबा मोहनदास से माफी मांगी. साथ ही अकबर ने बाबा से ये वरदान मांगा कि जब तक बाबा मोहनदास का नाम रहेगा तब तक अकबर का नाम भी अमर रहे.उसके बाद बाबा मोहनदास ने अकबर को ये वरदान दिया कि आगे जाकर एक घना जंगल है वहां एक गांव बसेगा जिसका नाम अकबरपुर होगा.
चैतन्य महाप्रभु थे बाबा मोहनदास के गुरु
मान्यता है कि बाबा मोहनदास भालकी माजरा में ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. बचपन में बाबा गाय चराने का कार्य करते थे. जहां गुफा में एक महात्मा से उन्हे सिद्धि प्राप्त हुई थी. भाड़ावास के जिस स्थान पर अभी मंदिर है.उस स्थान पर बाबा मोहनदास ने पेड़ के नीचे तपस्या की थी. बाबा महाबीर दास बताते है कि पहले बाबा मोहनदास जी किसी को गुरु नहीं मानते थे.लेकिन बाद में चैतन्य महाप्रभु जी के चेले के रूप में भी बाबा मोहनदास जी को पहचाने जाने लगा.बाबा मोहनदास जी ने नेपाल, कश्मीर से कन्याकुमारी तक यात्राएं की. जिस जगह बाबा मोहनदास जी ठहरे थे वहां उनकी बड़ी और 365 छोटी गद्दियां बनी हुई हैं. सन 1587 में बाबा मोहनदास जी ब्रह्मलीन हो गए. जिनकी समाधि आज भी मंदिर परिसर में बनी हुई है. उनके बाद अब तक 15 महात्माओं ने उनकी गद्दी को संभाला है. वर्तमान में बाबा महाबीर दास मंदिर के महंत है.
मंदिर के अंदर स्थापित है गौशाला
फिलहाल मंदिर के अंदर अब तक रहें सभी महंतों की समाधि, श्री राधाकृष्ण मंदिर , हनुमानजी मंदिर ,शनि मंदिर और शिवलिंग मंदिर बना हुआ है. साथ ही एक गौशाला भी मंदिर के अंदर चलाई जा रही है. हर साल अलग-अलग समय पर मंदिर के अंदर बड़े मेले और भंडारों का आयोजन कराया जाता है. मंदिर में न केवल आसपास के बल्कि दूर-दूर से आकर श्रद्धालु मन्नत मांगते हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 17, 2023, 17:44 IST