One Nation One Election 2024 After independence India had a system of One Nation One Election know how it ended


देश अब ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की ओर बढ़ रहा है. केंद्रीय कैबिनेट ने 18 सितंबर को वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली कमिटी ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. चलिए इसी कड़ी में हम आपको बताते हैं कि आजादी के बाद भारत में एक साथ चुनाव कैसे कराए जाते थे और फिर वो व्यवस्था कैसे बंद हो गई.

देश में पहले इसी तर्ज पर होते थे चुनाव

वन नेशन वन इलेक्शन की बात भले ही आज ज्यादा हो रही हो, लेकिन भारत की आजादी के बाद लगभग 20 वर्षों तक देश में जो चुनाव हुए वो कहीं न कहीं वन नेशन वन इलेक्शन की ही तर्ज पर थे. यानी इन वर्षों में पूरे देश में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ होते थे.

आपको बता दें, यह व्यवस्था 1952 में भारत के पहले आम चुनाव से शुरू हुई थी और लगभग 1967 के चुनावों तक चली. यानी उस वक्त देशभर में केंद्र और राज्य विधानसभाओं के लिए एक ही समय पर चुनाव कराए गए थे. चलिए अब जानते हैं कि इसका अंत कैसे हुआ?

कैसे बंद हो गया था ”एक साथ चुनाव’

आजादी के बाद देश में कांग्रेस पार्टी की पकड़ मजबूत थी. यही वजह थी कि केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें लगातार बन रही थी. लेकिन 1960 आते-आते कांग्रेस की पकड़ देश के कुछ राज्यों में कमजोर होने लगी. फिर आया 1967 का आम चुनाव. यह देश का चौथा आम चुनाव था. इसमें केंद्र और राज्य दोनों के लिए जनता को सरकार चुननी थी. 

कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबत ये थी कि वह आजादी के बाद पहली बार बिना पंडित नेहरू के चेहरे के कोई चुनाव लड़ रही थी. खैर, कांग्रेस ने जैसे-तैसे केंद्र में तो सरकार बना ली, लेकिन 6 राज्यों में उसे हार का सामना करना पड़ा. वहीं कई राज्यों में बदलते राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से विधानसभा को समय से पहले ही भंग करना पड़ा. हरियाणा, केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश ऐसे ही राज्य थे. जहां या तो कई बार सीएम बदले गए या फिर विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.

ये भी पढ़ें: बुर्ज खलीफा से नीचे कूदने पर कितने सेकेंड में नीचे पहुंच जाएंगे आप, जान लीजिए जवाब

फिर आया 1971 का आम चुनाव. दरअसल, देश में चौथा आम चुनाव 1967 में हुआ था, ऐसे में कायदे से अगला आम चुनाव पांच साल बाद 1972 में होना चाहिए था. लेकिन, देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने कई बड़े फैसलों जैसे- बैंकों के राष्ट्रीयकरण, पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कर देने की वजह से काफी ताकतवर और लोकप्रिय हो गई थीं. उनके शुभचिंतकों ने उन्हें समझाया कि इस वक्त अगर आम चुनाव करा दिए जाएं तो कांग्रेस पार्टी बड़े बहुमत से जीत कर सत्ता में आएगी.

इंदिरा गांधी को ये बात समझ में आ गई और देश में 1972 में होने वाला आम चुनाव 1971 में ही हो गया. इस बीच देश के अलग-अलग राज्यों में विधानसभा भंग होने की वजह से अलग-अलग समय पर चुनाव भी होने लगे थे. वहीं केंद्र के लिए 1971 में ही चुनाव होने की वजह से राज्यों और केंद्र के चुनाव के समय में दूरी बढ़ने लगी और ये दूरी आज तक बरकरार रही.

ये भी पढ़ें: इस देश में मोटी लड़की से ही की जाती है शादी, बच्चियों को फैट कैंप में भेज देते हैं पेरेंट्स



Source link

x