OPINION: पीएम मोदी 7 जुलाई को जा सकते हैं गोरखपुर, गीता प्रेस के योगदान को देंगे सम्मान



geeta press 01 OPINION: पीएम मोदी 7 जुलाई को जा सकते हैं गोरखपुर, गीता प्रेस के योगदान को देंगे सम्मान

गोरखपुर के गीता प्रेस का भारतीय जन मानस की चेतना का पुनर्जागरण करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है. यह बात दुनिया भर में हिन्दू जीवन में विश्वास रखने वाला कौन सा परिवार नहीं जानता होगा. पुस्तकों के प्रकाशन और सस्ती से सस्ती कीमतों पर उन्हें आम जन को उपलब्ध कराना गीता प्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि रहा है. कम कीमत पर उन धार्मिक किताबों को घर घर तक पहुंचाने का संकल्प गीता प्रेस ने लिया था. वे इस दिशा में अनवरत 100 सालों से काम कर रहे हैं. गीता प्रेस के द्वारा हिंदु धर्म के प्रसार प्रचार की दिशा में किए गए कार्यों से भारतीय समाज को हिन्दू धर्म दर्शन को जानने में मदद मिली. यही कारण है कि बंद होने की कगार पर पहुंचे गीता प्रेस के योगदान को सम्मान देते हुए पीएम मोदी सरकार ने 20221 के गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया है.

केंद्र ने अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए गीता प्रेस को पुरस्कार देने का फैसला किया. पुरस्कार ऐसे समय आया है जब गीता प्रेस को बंद करने की चर्चा जोर पकड़ रही थी. अब पीएम मोदी खुद 7 जुलाई को गोरखपुर जाने के कार्यक्रम को अंतिम रुप दे रहे हैं, ताकि वो गीता प्रेस का खुद मुआयना करें. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पीएम मोदी के इस कार्यक्रम को यादगार बनाने में जुटे हैं.

पहली बार पुरस्कार नहीं लेने की टूटी परंपरा
पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमिटी ने गांधी शांति पुरस्कार 2021 के लिए गीता प्रेस गोरखपुर के चयन की घोषणा की. इसके बाद संस्कृति मंत्रालय की ओर से इसके बारे में जानकारी दी गई. पुरस्कार की घोषणा होने के बाद गीता प्रेस बोर्ड ने पुरस्कार को स्वीकार करने की भी घोषणा कर दी है. अब तक संस्था की ओर से कोई भी सम्मान नहीं स्वीकार करने की परंपरा थी। पहली बार परंपरा टूट रही है. लेकिन पुरस्कार के साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी. जानकारी के मुताबिक, गीता प्रेस गोरखपुर की बोर्ड की बैठक में तय हुआ है कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि गीता प्रेस स्वीकार नहीं करेगा.

गांधी पुरस्कार के ऐलान के बाद पीएम मोदी ने ट्वीट कर के गीता प्रेस की सराहनना की. पीएम ने कहा कि मैं गोरखपुर की गीता प्रेस को 2021 के गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए बधाई देता हूं. पिछले 100 सालों में भारतीयों के सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के लिए गीता प्रेस का योगदान वाकई सराहनीय है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि भारत के सनातन धर्म के धार्मिक साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्राप्त होने पर हृदय से बधाई. स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर मिला यह पुरस्कार गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य को एक नई उड़ान देगा. इसके लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक धन्यवाद.

प्रेस चलाने के लिए कभी चंदा नहीं मांगा
भारतवर्ष में कौन सा ऐसा हिन्दू और सनातन धर्म को मानने वाला होगा जिसे गीता प्रेस के सेवा कार्य के संबंध में जानकारी नहीं हो. उल्लेखनीय है कि गीताप्रेस का मुख्य कार्य सस्ते से सस्ते मूल्य पर साहित्य का प्रचार और प्रसार करना है. पुस्तकों के मूल्य प्रायः लागत से कम रखे जाते हैं, परन्तु इसके लिये यह संस्था किसी प्रकार के चन्दे या आर्थिक सहायता की याचना नहीं करती. गीता प्रेस, 1923 से हिंदू धार्मिक किताबों का दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक है, जो भारत के युगांतरकारी क्षणों से गुजरा है. जिसमें खिलाफत आंदोलन से लेकर आरएसएस के जन्म, स्वतंत्रता संग्राम और हिंदू राष्ट्रवाद का गौरवशाली वर्तमान तक शामिल है. यहां उल्लेखनीय है कि पिछले 100 वर्षों में इसका दबदबा सिर्फ बढ़ा है. अन्य प्रकाशकों को जब कोविड जैसी महामारी के दौरान वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा. गीता प्रेस ने 77 करोड़ रुपये का प्रभावशाली लाभ दर्ज किया.

गीता प्रेस एक परिचय
गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों की दुनिया की सबसे बड़ी प्रकाशक है. इसकी स्थापना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुई थी. 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर इसकी स्थापना की थी. गीता प्रेस की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देना था. गीता प्रेस ने अब तक 14 भाषाओं में 41 करोड़ 70 लाख पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें 16 करोड़ 20 लाख श्रीमद भगवद गीता शामिल हैं. इन किताबों को गीता प्रेस ने बाजार के आधे से भी कम कीमत में घर घर तक पहुंचाया है. गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी. आजादी से पहले जब गीता प्रेस घर घर में श्रीमद भागवत गीता की छपाई के लिए अंग्रेजों की मशीन का इस्तेमाल करता था. उस वक्त अंग्रेज छपाई के दौरान गीता में काफी अशुद्धियां छोड़ देते थे. उस वक्त इसके स्थापक जयदयाल गोयन्दका ने अंग्रेजों के सामने अपना विरोध दर्ज कराया था. वो ब्रिटिश शासन काल में बाहरी प्रेस में गीता छपवाते थे. वो लोग गीता में अशुद्धियां रख देते थे. जब वो इसपर आपत्ति दर्ज करते थे तो अंग्रेज कहते थे कि अगर आपको ज्यादा शुद्ध छपवाना है तो अपनी प्रेस लगवा लो. उसी उद्देश्य के तहत पहली मशीन बोस्टन मास, यूएसए (BOSTON MASS, USA) की लगाई गई थी

गीता प्रेस पर क्या बंट गए हैं कांग्रेसी
दूसरी तरफ गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की घोषणा पर राजनीति गरमा गई है. सबसे अधिक पीड़ा में इस समय कांग्रेस है. यह भी देश देख रहा है कि पुरस्कार की घोषणा होने के बाद से कांग्रेस पार्टी द्वारा कैसी मानसिकता का परिचय दिया जा रहा है. यह सब देखने के बाद कांग्रेस पार्टी के धर्म विरोधी और राष्ट्र विरोधी होने में क्या संदेह.कांग्रेस पार्टी की तरफ से चाहे जयराम का बयान सामने आ गया, लेकिन गीता प्रेस के मामले में पार्टी के अंदर फूट तब सामने आ गई जब प्रमोद कृष्णम और राजीव शुक्ला जैसे कांग्रेसी नेताओं ने जयराम के बयान की परवाह किए बिना गीता प्रेस के बारे में सकारात्मक बातें कहीं. कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस गोरखपुर को बधाई. 1923 में स्थापित, गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है. गीता प्रेस ने सालों से शांति और सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देते आ रहा है. आगे यह प्रेस और उन्नति करे यह मेरी कामना है. जबकि आचार्य प्रमोद कृष्णम ने विरोध करने वाले कांग्रेसी नेताओं को खऱी खोटी सुनाई. आचार्य प्रमोद ने कहा कि गीता प्रेस का विरोध ‘हिंदू विरोधी’ मानसिकता की पराकाष्ठा है, राजनैतिक पार्टी के ‘ज़िम्मेदार’ पदों पे बैठे लोगों को इस तरह के धर्म, विरोधी बयान नहीं देने चाहिये जिसके ‘नुक़सान’ की भरपायी करने में ‘सदियां’ गुज़र जायें. सबकी नाराजगी कांग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट से थी जिन्होने कहा था कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने जैसा है. ये फैसला एक उपहास की तरह है.

दुनिया में किसी पहचान की मोहताज नहीं गीता प्रेस
पूरी दुनिया में गीता प्रेस किसी पहचान की मोहताज नहीं है. घर घर में पढ़ी जाने वाली धार्मिक पुस्तकें गोरखपुर के इसी गीता प्रेस में छपती हैं. अक्सर ये बातें सामने आती हैं कि गीता प्रेस बंद होने की कगार पर है. बार बार इसके लिए ऐसा भी कहा जाता है कि गीता प्रेस की मदद करनी चाहिए, लेकिन इन तमाम अफवाहों को धता बताते हुए गीता प्रेस अपनी परंपरा आगे बढा रहा है. आज देश दुनिया के करोड़ों घरों में गीता प्रेस की छपी भागवत गीता मौजुद है. 2014 के बाद से आध्यात्मिक साहित्य के बारे में लोगों में निश्चित रूप से जागरूकता आई है. लोग अब गर्व से अपने धर्म और संस्कृति को अपना रहे हैं. ऐसे में लोग गीता प्रेस को सबसे प्रामाणिक प्रकाशन पाते हैं. इसलिए आज इतने वर्षों बाद गीता प्रेस ने इतने बड़े वृक्ष का रूप ले रखा है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Tags: Gita Press Gorakhpur, Narendra modi, Yogi adityanath



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