Padma Shri mohan swaroop bhatia has taken up the task of preserving brajs folk songs


मथुरा. ब्रज के लोकगीतों का अपना एक अलग महत्व है. लोकगीतों से ही ब्रज की पहचान है. ब्रज में लोकगीतों की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जो आज भी कायम है. ब्रज के लोकगीत की मिठास इसके चाहने वालों को खींच लाता है. प्राचीन काल में ब्रज गीत वार्तालाप का एक सशक्त माध्यम था. ब्रजवासी किस तरह से लोकगीत के जरिए एक दूसरे से वार्तालाप करते थे, इसके बारे में पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया से लोकल 18 के जरिए जानने का प्रयास करेंगे.

ब्रज के लोकगीतों को बचाने में जुटे हैं पद्मश्री भाटिया

लोकगीत ब्रज की संस्कृति के साथ-साथ धरोहर भी है. लोकगीतों के बिना ब्रज की संस्कृति बेरंग सी लगती है. लोकगीत यहां के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में लगातार गुनगुनाएं जाते हैं, लेकिन अब इन लोकगीतों का धीरे-धीरे प्रचलन कम होता जा रहा है. हालांकि कुछ लोगे ऐसे भी हैं जो ब्रज के लोकगीत को अक्षुण्ण रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. उन्हीं में से एक नाम मथुरा के रहने वाले पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया हैं, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कांविंद ने मोहन स्वरूप भाटिया को पद्मश्री से अलंकृत किया था. पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने लोकल 18 को बताया कि ब्रज की संस्कृति को विलुप्त होने से बचाने के लिए उनकी कोशिश लगातार जारी है. लेकिन, अब शरीर काम नहीं कर रहा है, इसलिए लोगों को ब्रज की संस्कृति को बचाने की अपील करते हैं.

5 हजार से अधिक लोकगीतों का है संग्रह 

पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने बताया कि ने बताया कि उनके पास 5 हजार ऐसे लोकगीत हैं, जो ब्रज की संस्कृति को एक अलग ही पहचान देता है. जब उन्होंने लोकगीत गुनगुना ना शुरू किया तो वह अपने रसीले अंदाज में आ गए. उन्होंने एक पनिहारी को कुएं पर और एक व्यक्ति को कपड़े धोते हुए बातचीत का तरीका सुनाया.  उन्होंने बताया कि कुएं पर पानी लेने गई पनिहारी जब कुएं पर कपड़े धो रहे युवक से बोलता है कि अरे छोड़ दो मारू बेंगन तोड़ ला, तब तक मैं धोऊ तेरी धोबती. इस पर युवक पनिहारी से बोलता है अरे छोरी तेरे गोबर लिश रहे हाथ री.

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