Pakistan Economic Crisis Shahbaz Sharif Government Economic Survey 2023 Says Pak Economy Shrank To 341 Billion Dollars | India Pakistan: ‘पाकिस्तान से भारत 10 गुना…’, शहबाज हुकूमत ने माना
Pakistan Economic Crisis 2023: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल होती जा रही है. आबादी के मामले में दुनिया का 5वां सबसे बड़ा देश होने के बावजूद पाकिस्तान अपने ‘मैन पावर’ का उचित इस्तेमाल नहीं कर सका. भ्रष्टाचार और कर्ज लेने की फितरत के चलते उसकी आर्थिक विकास दर भी थम गई है. उस पर 100 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज (Foreign Debt of Pakistan) का बोझ है और ताजा आर्थिक सर्वेक्षण में ये सामने आया है कि 2022-23 में, पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था और सिकुड़ गई है.
पाकिस्तान के समाटीवी के मुताबिक, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 341.50 अरब डॉलर की है. ये भी तब है जबकि उसकी जनसंख्या 23 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है, युवाओं के संख्याबल के लिहाज से उसकी विकास दर बढ़नी चाहिए थी, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में उसकी आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में 5% के लक्ष्य के मुकाबले 0.29% ही रह गई. इतना ही नहीं, इस वित्त वर्ष में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भी घटकर 1,568 डॉलर रह गई है.
भारत की जनसंख्या 142 करोड़ से कुछ ज्यादा है और इसकी अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा हो गया है. पाकिस्तान से इसकी तुलना की जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार उससे तकरीबन 10 गुना ज्यादा होगा. वर्तमान में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अब यह केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे है. भारत का अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वैल्यू लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर है. वहीं, दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की जीडीपी 42वीं रैंकिंग के साथ 341.50 डॉलर है. हैरानी की बात ये है कि इससे पहले 2021-22 में उसकी अर्थव्यवस्था का आकार 375.4 अरब डॉलर था.
एग्रीकल्चर सेक्टर समेत कई सेक्टरों में मिली निराशा
समाटीवी के पोर्टल पर प्रकाशित आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए लक्ष्य 3.9% निर्धारित किया गया था, हालांकि विकास दर 1.55% रही. वहां प्रमुख फसलों के लिए लक्ष्य 3.5% था, उनके प्रदर्शन में -3.20% की वृद्धि दर्ज की गई. उसी प्रकार, कपास के लिए लक्ष्य 6% था, जिसने -23.1% प्रदर्शन दर्ज किया.
इंडस्ट्रियल सेक्टर के लिए लक्ष्य 5.9% रखा गया था, लेकिन इसने -2.94% प्रदर्शन दर्ज किया. बताया जाता है कि पाकिस्तान में प्रमुख उद्योगों ने 7.4% के लक्ष्य के मुकाबले -7.98% की परफोर्मेंस दी. कंस्ट्रक्शन सेक्टर के लिए लक्ष्य 4% था, और इसने -5.53% की परफोर्मेंस दी. इसके अलावा वहां ट्रांसपोर्ट सेक्टर ने 4.5% के लक्ष्य के मुकाबले 4.73% अचीव किया. रियल एस्टेट सेक्टर की बात करें तो उसके लिए लक्ष्य 3.8% निर्धारित किया गया था, जबकि 3.72% की परफोर्मेंस रही. लोक प्रशासन क्षेत्र का प्रदर्शन 4% लक्ष्य के मुकाबले -7.76% दर्ज किया गया.
महज 25.36 अरब डॉलर का निर्यात कर सका पाक
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में जुलाई-मार्च के दौरान मुद्रास्फीति की दर 29% तक पहुंच गई. वहां चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की मात्रा 84,600 अरब डॉलर से अधिक थी. हालांकि, चालू वित्त वर्ष के दौरान निर्यात लक्ष्य भी हासिल नहीं हो सका. इस वित्त वर्ष जुलाई-मई से निर्यात की मात्रा 25.36 अरब डॉलर दर्ज की गई.
पिछले साल पाकिस्तानी GDP में 34 अरब डॉलर घटे
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का आकार घटकर 341.50 अरब डॉलर रह गया है. पिछले साल के मुकाबले इस वित्त वर्ष में जीडीपी में 34 अरब डॉलर की कमी आई है. 2021-22 में देश की अर्थव्यवस्था का आकार 375.4 अरब डॉलर था. वहां इस वित्त वर्ष में प्रति व्यक्ति आय भी घटकर 1,568 डॉलर रह गई है. पिछले वर्ष की तुलना में इस आंकड़े में 198 डॉलर की कमी देखी गई. पिछले वित्त वर्ष में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय 1,766 डॉलर थी.
पाकिस्तानी रुपये में बढ़ा अर्थव्यवस्था का आकार
पाकिस्तानी रुपये में देश की अर्थव्यवस्था का आकार देखा जाए तो ये बढ़कर 84,760 अरब रुपये हो गया है. पिछले वित्त वर्ष की तुलना में, अर्थव्यवस्था के आकार में 10,678 अरब रुपये की वृद्धि देखी गई. वहीं, स्थानीय मुद्रा में प्रति व्यक्ति आय में 75,418 रुपये की वृद्धि देखी गई है. वर्ष 2022-23 में प्रति व्यक्ति आय 388,755 रुपये दर्ज की गई. और, उससे पिछले वर्ष प्रति व्यक्ति आय 313,337 रुपये थी.
बदहाली के पीछे शहबाज हुकूमत ने ये बताईं वजह
पाकिस्तान में हुए आर्थिक सर्वेक्षण के दौरान वहां की सरकार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा. इसके अलावा राजनीतिक अस्थिरता ने भी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई. इससे महंगाई दर में इजाफा हुआ.
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