Pitru Paksha 2024 Upay: पितृ पक्ष में जरूर करें यह पाठ, आपके पितर होंगे खुश, पूरे परिवार की होगी उन्नति!


पितृ पक्ष का प्रारंभ आज 18 सितंबर बुधवार से हुआ है. पितृ पक्ष के समय में पितरों के लिए तर्पण, दान, श्राद्ध आदि करते हैं. पितरों को खुश करने के लिए ये काम करने जरूरी होते हैं. यदि आप पितृ पक्ष के समय में ऐसा नहीं करते हैं तो आपके पितर नाराज हो सकते हैं. वे आपको श्राप दे सकते हैं. इससे पितृ दोष लगता है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष के समय में पितर पितृ लोक से आकर धरती पर निवास करते हैं. जो संतान उनको तर्पण, ​श्राद्ध आदि से तृप्त करती है, उनसे वे खुश होते हैं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि पितरों के देवता अर्यमा होते हैं. यदि आप पितृ पक्ष के समय में उनकी पूजा करते हैं तो वे आपसे खुश होंगे. इससे आपके पितर भी प्रसन्न होंगे. इसके अलावा आपको पूरे पितृ पक्ष में आपको पितृ सूक्तम् का पाठ करना चाहिए. ​

पितृ सूक्तम् की पाठ विधि
पितृ पक्ष, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों पर पितृ सूक्तम् का पाठ करना चाहिए. इसके लिए आपको पितृ पक्ष के सभी दिनों में सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करना चाहिए. उसके बाद साफ कपड़े पहनकर अपने पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए. पितरों का आह्वान करके यह तर्पण जल, काले तिल और कुशा की मदद से करना चाहिए. फिर कुश या कंबल के आसन पर बैठकर पितृ सूक्तम् का पाठ करें. यह संस्कृत में लिखा है. इसमें उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें.

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पितृ सूक्तम् का पाठ
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

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आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

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