PM Modi: प्रधानमंत्री मोदी ने याद की कवि रामधारी सिंह दिनकर की इस कविता की पंक्ति

PM Modi: वैश्विक महामारी कोरोना के विरुद्ध टीके का इंतज़ार लोगों को लंबे समय से है। अब देश में टीकाकरण अभियान शुरु हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार सुबह साढे दस बजे वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए टीकाकरण अभियान की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की इस कविता से दो पंक्तियां पढ़ीं। 

सच है, विपत्ति जब आती है, 
कायर को ही दहलाती है, 
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
कांटों में राह बनाते हैं। 

मुंह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।

है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पांव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
(यह दो पंक्तियां प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान पढ़ीं)

गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।

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