PM SVANidhi scheme: दक्षिण भारतीय महिलाओं ने लोन स्कीम का जमकर उठाया लाभ, जानें कौन हैं फिसड्डी राज्य
नई दिल्ली: कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा नुकसान मजदूर तबके और रेहड़ी-पटरी लगाने वालों को हुआ. इन लोगों की जिंदगी को फिर से आसान बनाने के लिए पीएम स्वनिधि योजना लागू की गई. जबसे यह योजना लागू हुई तब से अब तक करीब 36 लाख लोग इस योजना का लाभ ले चुके हैं. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि योजना से लाभ उठाने वाली महिलाओं की संख्या की अगर बात की जाए तो उत्तर पूर्व और दक्षिण की महिलाएं उत्तर भारत से कहीं आगे हैं. यह आंकड़ा बताता है कि महिला सशक्तिकरण में दक्षिण और उत्तरपूर्व भारत की महिलाओं की भागीदारी उत्तर भारत से बहुत अच्छी स्थिति में है.
क्या कहते हैं आंकड़े
पीएम स्वनिधि योजना ने 1 जून को अपने 3 साल पूरे कर लिए हैं. इस दौरान योजना से लाभ उठाने में महिलाओं की भागीदारी का औसत 41 फीसद है. केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि योजना से करीब 36 लाख लोगों को लाभ मिला जिसमें करीब 21 लाख पुरुष और 15 लाख महिलाएं हैं. वहीं 219 अन्य लिंग श्रेणी के लाभार्थियों ने भी योजना से लाभ उठाया.
अगर राज्य के हिसाब से आंकड़ों पर नजर डालें तो आंध्र प्रदेश (70 प्रतिशत महिलाएं), तेलंगाना (66 प्रतिशत महिलाएं), तमिलनाडु (64 फीसद महिलाएं) और कर्नाटक ( 50 प्रतिशत महिलाएं) ने इस योजना से लाभ उठाया. इन चारों राज्यों की महिला लाभार्थियों की संख्या की बात की जाए तो वह करीब 5,80,956 हैं. जो देशभर की महिला लाभार्थियों की संख्या 15,02,597 का करीब 39 फीसद है. यानी पूरे देश भर की महिला लाभार्थियों में से करीब 39 फीसद महिलाएं सिर्फ इन 4 राज्यों से हैं. जो एक बहुत बड़ा आंकड़ा है.
इसी तरह उत्तरपूर्व में मणिपुर (94 प्रतिशत), नगालैंड (88 प्रतिशत), मेघालय ( 77 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश (75 प्रतिशत ) और सिक्किम (58 प्रतिशत) के साथ महिलाओं की भागीदारी का औसत प्रतिशत देश के औसत से बहुत ज्यादा है. हालांकि छोटा राज्य होने की वजह से इन राज्यों में भागीदारी तो बहुत ज्यादा है लेकिन आंकड़ों के मामले में दक्षिण भारत राज्यों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. वहीं उत्तर भारत की अगर बात की जाए तो भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में महिलाओं का औसत 32 प्रतिशत से कम है. वहीं बिहार में यह 27 प्रतिशत और राजस्थान में 23 प्रतिशत ही रहा. इसी तरह पश्चिमी राज्यों में गुजरात और महाराष्ट्र जहां रेहड़ी पटरी एक बहुत बड़ा व्यवसाय है वहां पर महिला लाभार्थियों का प्रतिशत 42 और 41 है.
सामाजिक ताने बाने ने भी डाला आंकड़ों पर असर
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि लाभार्थियों की संख्या में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा होने में सामाजिक ताने-बाने की भी बहुत अहम भूमिका है. मसलन मेघालय के मातृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की भागीदारी अपने आप बढ़ जाती है. खासकर वहां पर परिवार की छोटी बेटी को संपत्ति विरासत में मिलती है और महिलाएं ही ज्यादातर उद्यमों का संचालन करती हैं.
क्या है पीएम स्वनिधि योजना
कोविड -19 महामारी से प्रभावित हुए रेहड़ी- पटरी वालों को वित्तीय सहायता पहुंचाने के मकसद से, जून 2020 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने इस योजना की शुरुआत की थी. योजना के तहत रेहड़ी पटरी कार्यकर्ता अपने व्यवसाय को जमाने के लिए छोटी पूंजी कर्ज का लाभ उठा सकते हैं. यह कर्ज 10,000 रुपये तक का होता है जो एक साल की अवधि के लिए दिया जाता है और इसे मासिक किश्तों में चुकाया जा सकता है. यही नहीं योजना के तहत समय पर कर्ज चुकाने वालों को 1200 रुपये वार्षिक का लाभ भी प्रदान किया जाता है. खास बात यह है कि यह कर्ज कोलेट्रल फ्री होता है. यानी कर्ज लेने वाले को किसी तरह की कोई गारंटी देने की जरूरत नहीं होती है. योजना के तहत अभी तक करीब 34 लाख लाभार्थी लाभ उठा चुके हैं.
किसको मिलता है लाभ
इस योजना का लाभ सड़क किनारे रेहड़ी-पटरी पर दुकान चलाने वाले, फल-सब्जी का ठेला लगाने वाले, पान की दुकान, अखबार बांटने वाले जैसे लोगों को मिल सकता है. लेकिन योजना का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिल सकता है जो 24 मार्च 2020 से पहले से इस तरह का काम करते आ रहे हों. योजना उन लोगों के लिए है जो शहर के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और बिक्री करने के लिए शहरों में आते हैं. बस इन लोगों को टाउन वेंडिंग कमेटी से एक सिफारिश पत्र लेना होता है. इसके अलावा भी कई प्रावधान हैं जिसके ज़रिए विक्रेता इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 12, 2023, 11:06 IST