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जयपुर. बदलते मौसम के साथ बढ़ती ठंड ने पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है. इस मौसम में गाय, भैंस, भेड़ और बकरियों में खुरपका-मुंहपका रोग बढ़ने लगा है. पशु चिकित्सक रामनिवास चौधरी ने बताया कि छोटी उम्र के पशुओं में यह रोग जानलेवा हो सकता है. इस रोग में मृत्युदर कम है लेकिन दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बहुत कम हो जाता है. पशु चिकित्सक ने बताया कि इस रोग के बचाव के लिए वर्ष में दो बार फरवरी व मार्च तथा सितंबर व अक्टूबर में टीकाकरण अभियान चलाया जाता है.

26 नवंबर तक चलेगा टीकाकरण
पशुपालकों को राहत देने और पशुओं को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने के लिए वर्तमान में टीकाकरण चल रहा है. यह टीकाकरण अभियान 26 नवंबर तक जारी रहेगा. इस रोग का प्रकोप नवंबर से मार्च तक ज्यादा रहता है. हर साल लाखों पालतू पशु इस बीमारी की चपेट में आते हैं. यह मानव में फैलने वाले डेंगू मलेरिया जैसी बीमारी के जैसा ही है.

खुरपका-मुंहपका रोग के ये हैं लक्षण
पशु चिकित्सा के अनुसार यह रोग स्वस्थ पशुओं के बिना टीकाकरण किए हुए संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आने, पशुओं में दूषित चारे, दाने व पानी के सेवन, रोगी पशु की बिछावन के सम्पर्क में आने, गोबर एवं पेशाब, दुधारू पशुओं के ग्वाले, हवा के माध्यम से फैलता है. यह रोग होने पर पशुओं में 105-107 फॉरेनहाइट तक तेज बुखार, मुंह, मसूड़े व जीभ पर छाले, लगातार लार का गिरना, पैरों में खुरों के बीच छाले जिससे पशु का लंगड़ाना, पैर के छालों में जख्म एवं कीड़े पड़ना, दुधारू पशु के थनों एवं गादी में छाले, कुछ पशुओं में हांफने की बीमारी होना, दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में एकदम गिरावट गिरावट आ जाती है.

ये है रोकथाम का तरीका
पशु चिकित्सा रामनिवास चौधरी ने बताया कि इस रोग से बचने के लिए पशुओं में प्रतिवर्ष नियमित रूप से टीकाकरण करना चाहिए. यह रोग महामारी के रूप में फैलता है, इसके अलावा रोगी पशु को स्वस्थ पशु से तुरन्त अलग करें. पशु को बांधकर रखें व घूमने-फिरने न दें, वही बीमार पशु के खाने-पीने का प्रबंध अलग ही करें. रोगी पशुओं को नदी, तालाब, पोखर आदि में पानी न पीने देवें, पशु को कीचड़, गीली व गंदी जगह पर नहीं बांधे.

पशुओं के घूमने वाली जगह को तुरंत साफ करें 
पशु को हमेशा सूखे स्थान पर ही बांधे, रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को बाड़े से बाहर आने पर हाथ-पैर साबुन से अच्छी तरह से धो लेने चाहिये. जहां-जहां पशु की लार आदि गिरती है, वहां पर कपड़े धोने का सोडा/चूना डालते रहें, यदि संभव हो तो फिनाइल से धोना भी फायदेमंद रहता है.

नि: शुल्क उपलब्ध है टीका, जरूर लगवाएं
पशुपालक इस रोग के प्रति सचेत रहते हुए समय पर अपनी गाय-भैंसों को खुरपका मुंहपका (एफएमडी) रोग प्रतिरोधक टीका लगवा कर रोग मुक्त रखें ताकि उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता बनी रहे. दुधारू पशुओं में 6-6 माह के अन्तराल पर वर्ष में दो बार लगाये जाने वाला यह टीका प्रदेश की सभी सरकारी पशु चिकित्सा संस्थाओं में नि: शुल्क उपलब्ध है.

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