कमजोर व्यक्ति कविता का प्रतिपक्ष अपने सपने में रचता है : प्रो चंदन कुमार

साहित्य अकादेमी द्वारा विश्व पुस्तक मेला 2023 के अवसर पर आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम : रिपोर्ट, आशुतोष

“साहित्य में राष्ट्रीय चेतना” विषय पर आदरणीय गुरुवर Prof. Chandan Kumar सर का अध्यक्षीय वक्तव्य हुआ। वक्तव्य के प्रारंभ में उन्होंने उपस्थित सभी विद्वत्जनों और श्रोताओं का अभिनंदन किया। अपने वक्तव्य की शुरुआत आपने मेले से की। आपने कहा कि हिंदी और मेले का बहुत गहरा नाता है। हिंदी के पुनर्जागरण का पाठ मेले से ही तय होता है। आपने बलिया में घाघरा और गंगा के तट पर ददरी के लगने वाले मेला और भारतेंदु हरिश्चंद्र के तत्कालीन कलेक्टर डी. टी. रॉबर्ट के सामने दिए गए भाषण की चर्चा करते हुए कहा कि यह भाषण 19-20 वीं शताब्दी के सांस्कृतिक और भाषाई समझ का लगभग घोषणापत्र है। पंडित रामविलास शर्मा ने इस पर खूब लिखा है। आगे आपने कहा कि ताक़त के सामने अपनी बात कहने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है। अंग्रेज साहब बहादुर के सामने अपनी बात कहना बड़ी बात थी। उन्होंने कहा “तुम्हारी भलाई हो वैसे ही किताबों पढ़ो, वैसे ही खेल खेलो, वैसे ही बातचीत करो।” आगे आपने कहा कि “परिस्थितियां कठिन हो सकती हैं लेकिन स्वाधीन चेतना या राष्ट्रीय चेतना का मतलब है ‘स्वत्व का बोध’। आगे आपने प्रश्न खड़ा करते हुए कहा कि भारतीय स्वत्व क्या है? भारत का स्वत्व, और इसकी सांस्कृतिक समझ के बीच क्या संवाद है?”

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आगे आपने कहा कि “712 सिंध के राजा दाहिर पर मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण होता है। यह अरब खलीफा के आदेश पर होता है, फिर गज़नबी का आक्रमण होता है, मुहम्मद गौरी आते हैं, बख्तियार ख़िलजी आते हैं और ख़िलजी नालन्दा के पुस्तकालय को जला देता है, 1398 में तैमूर लंग आता है, 1526 में बाबर आता है, 1739 में नादिरशाह का आक्रमण होता है और उसके बाद अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण होता है। अंग्रेज आये, फ्रेंच आये, डच आये, सबने लूटा परन्तु हम हैं कि चौचक खड़े हैं।”

आगे आपने शशि थरूर की पुस्तक “An era of darkness: The British empire in india” की चर्चा करते हुए आपने कहा कि यह पुस्तक केवल ब्रिटिश लूट का इतिहास बताती है। यदि शशि थरूर जैसा प्रज्ञान व्यक्ति मुहम्मद बिन कासिम से लेकर बहादुरशाह ज़फ़र तक केवल लूट बलात्कार और हत्या का इतिहास लिखता है तो कलेजा मुँह को आ जाता है। 712 से लेकर 1947 तक यानि मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अंग्रेजों की वापसी तक कुलमिलाकर 1235 तक एक समाज रौंदा जाता रहा, क्या कारण है कि वो नष्ट नहीं हुआ? दुनिया की कई सभ्यताएं नष्ट हो गयी। आगे आपने उस चेतना और उस हस्ती की बात की जिससे कि हम एक समाज के रूप में खड़े रहे। इस चीज़ की पहचान साहित्य में है। बल्लभाचार्य कहते हैं-“भिक्षा क्रांतेषु देशेषु:”, गुरुनानक कहते हैं-

“खुरासान खसमाना कीआ हिंदुसतानु डराइआ ॥

आपै दोसु न देई करता जमु करि मुगलु चड़ाइआ ॥”

यह 1235 वर्ष की लूट का और उस लूट के प्रतिपक्ष में खड़े रहने के कई पथ प्रस्तुत किये जा चुके हैं। आगे आपने हिंदी के कुछ उन उदाहरणों पर ध्यान आकर्षित कराया जो खास कारणों से छोड़ दिये जाते हैं। आपने रीतिकालीन कविता से उदाहरणों से परिचित कराया। 17-19 वीं शताब्दी में जिस साहित्य को दरबारी, श्रृंगारिक और अलंकारिक कहकर क्या क्या न कहा गया, वहाँ से आपने उदाहरण दिए। आगे आपने कहा कि भूषण को तो आप जानते ही हैं, उनके कई कवि हैं जिनमे लाल, पद्माकर, सेनापति, ग्वाल कवि, चंद्रशेखर , जोधराज, सदानंद आदि कवियों का परिचय देते हुए कहा कि इनकी रचनाओं को पढ़िए इनमें एक ताकतवर सत्ता और उसके ख़िलाफ़ निहत्था खड़ा आदमी कैसे अपनी बात रखता है मिलता है। आगे आपने जोर देते हुए कहा कि “इतिहास का एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि समाज मे जो ताकतवर होता है वह कविता का खलनायक होता है, कविता का प्रतिपक्ष अपने सपने में रचता है।” आगे आपने चंद्रशेखर कवि की रचना ‘हम्मीर हठ” की चर्चा करते हुए उदाहरण दिया –

 “तिरिया तेल हम्मीर हठ चढ़े न दूजी बार”

हम्मीर एक व्यक्तित्व है कि जैसे उबटन बार बार नहीं चढ़ता उसी तरह हम्मीर का हठ बार बार नहीं चढ़ता एक बार उसने तय कर लिया तो तय कर लिया। आगे आपने सबलसिंह चौहान के महाभारत की चर्चा करते हुए कहा कि वह आज भी गाया जाता है। वह भारतीय शौर्य का पाठ तैयार करता है।

भूषण की चर्चा करते हुए आपने उनका उदाहरण दिया कि-

“पीरा परम् पयम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत

सिद्ध की सिधाई गयी रही बात रब की।

काशी हूं की कला गई मथरा मसीद भई

शिवाजी न होते तो सुनत होती सबकी।।

कुम्भकरण असुर अवतारी औरंगजेब

काशी प्रयाग में दुहाई फेरी रब की।

तोड़ डाले देवी देव शहर मुहल्लों के

लाखों मुसलमान किये माला तोड़ी सबकी।।

भूषण भाद भाग्यो काशीपति विश्वनाथ

और कौन गिनती में भई गीत भव की।

काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती

शिवाजी ने होते तो सुनत होती सबकी।।”

“यह पाठ ताक़त के खिलाफ कला का एक पक्ष है। गरीब आदमी कविता में ही नायकत्व बनाता है। कविता कठिन समय मे स्वप्न देखने की इजाज़त देती है। और यही कविताएँ पढ़ें तो स्वातंत्र्योत्तर भारत गंगा जमुनी तहजीब है उसका एक टेक्स्ट यह भी है।” अलगू चौधरी और जुम्मन शेख का जो टेक्स्ट चलता है वह एक सेलेक्टिव टेक्स्ट है। आगे आपने कहा कि “आप एक ताकतवर राजसत्ता के खिलाफ चाहे वह अंग्रेजों की सत्ता हो या घोड़े पर चढ़े हुए पांथिक लुटेरे की सत्ता हो अगर आप हिंदी कविता को पढेंगे तो वह बराबर आपको एक तोष का पथ उपलब्ध कराएगी।”

हिंदी कविता स्वाभिमान की भी कविता है। बोधा कवि की चर्चा करते हुए आपने उनका उदाहरण दिया और यह उदाहरण उनके छः महीने राज्य निकाला होने के बाद लौट कर पुनः दरबार आये बोधा से जब पन्ना महाराज पूछते हैं कि कैसे लगा? अक़्ल ठिकाने आयी?; तब का है इसके जवाब में वह कहते हैं-

“हिलि मिलि जानै तासों हिलि मिलि लीजै आप,

हित कों न जानै ताकों हितू न बिसाहि यै।

होय मगरूर तासों दूनी मगरूरी कीजै,

लघु ह्वै चलै जो तासों लघुता निबाहियै।

‘बोधा’ कबि नीति को निबेरो याही भाँति करौ,

आपकों सराहै ताकों आपहू सराहियै।

दाता कहा सूर कहा सुंदर सुजान कहा

आपकों न चाहै ताके बाप को न चाहियै॥”

यह एक आश्रयदाता के द्वारा कहा गया वाक्य है। “हिंदी कविता एक गर्वीली गरीबी का पाठ उपलब्ध कराती है।” यह रीतिकालीन कवि कह रहा है कि चाहे विद्वान हो, सुंदर हो, कोई भी हो जो आपको पसंद न करे उनके बापों को पसंद न कीजिये। आगे आपने कहा कि स्वाभिमान, मानवीय गरिमा का और चेतना का इससे बड़ा पाठ और क्या उपलब्ध हो सकता है?

आगे आपने कहा कि “हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के इस पाठ को हिन्दू पाठ के रूप में पढ़ना पड़ेगा। और यह सत्व का हिन्दू पाठ सनातन सातत्यता का हिन्दू पाठ होगा, स्मृति का पाठ होगा, इतिहास के दंशों को न भूलने का पाठ होगा और सच्चाई यह भी है कि जिनका इतिहास नहीं होता उनका कोई भविष्य भी नहीं होता”।

“हिंदी साहित्य को हिन्दू प्रतिरोध और हिन्दू सत्व के पाठ के रूप में पढ़ने की एक परम्परा चलेगी और इतिहास के दंशों से प्रेरणा लेकर नायकत्व की व्याख्या की नई परम्परा चलेगी।”

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