Public Opinion: भोजपुर उपचुनाव के वोटर जातीय समीकरण और विकास में किसे चुना, जानिए मतदाताओं की राय


गौरव सिंह/भोजपुर: बिहार की चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव 13 नवंबर को होने वाले हैं. जैसे-जैसे मतदान का दिन नजदीक आ रहा है, प्रत्याशी अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. इस बीच, तरारी विधानसभा में मतदाता भी अपने फैसले पर मंथन कर रहे हैं कि उन्हें किस आधार पर अपना वोट देना चाहिए, जाति या विकास.

तरारी में चुनावी परिदृश्य
तरारी विधानसभा में इस बार मुख्य रूप से तीन उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. इनमें पूर्व विधायक सुनील पांडे के पुत्र विशाल प्रशांत, जो भूमिहार जाति से आते हैं, एनडीए के उम्मीदवार हैं. वहीं, माले की ओर से राजू यादव, जो यादव समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, और जनसुराज पार्टी से पहली बार चुनाव लड़ रहीं किरण सिंह, जो राजपूत जाति से हैं, वो भी इस मुकाबले में शामिल हैं.

जाति या विकास? ग्रामीणों की राय
लोकल 18 ने तरारी विधानसभा के सहेजनी गांव में जाकर मतदाताओं से उनकी राय ली. यहां के राजपूत मतदाताओं का कहना है कि वे जाति से ज्यादा विकास पर ध्यान दे रहे हैं. एक स्थानीय मतदाता ने कहा, अगर जाति के आधार पर मतदान करना होता तो हम किरण सिंह के साथ होते. लेकिन हमें विकास चाहिए और विकास के मामले में हमें विशाल प्रशांत पर भरोसा है.

हालांकि, चुनाव के समय जाति का मुद्दा हमेशा अहम हो जाता है. कुछ ग्रामीणों का मानना है कि मतदान के दिन जातीय समीकरण भी प्रभावित करेंगे और इस बार जाति का झुकाव माले और बीजेपी प्रत्याशियों के बीच होता दिखाई दे रहा है.

विकास कार्यों पर स्थानीय दृष्टिकोण
सहेजनी गांव में बातचीत के दौरान, कई ग्रामीणों ने एनडीए प्रत्याशी विशाल प्रशांत के प्रति विश्वास जताया. ग्रामीणों ने पूर्व विधायक सुनील पांडे के कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में गांव में काफी विकास हुआ था. सुदामा प्रसाद के 9 साल के कार्यकाल में उतने कार्य नहीं हुए जितने सुनील पांडे के कार्यकाल में हुए थे. सुनील पांडे हमेशा ग्रामीणों की मदद के लिए उपलब्ध रहते थे, पूर्व मुखिया अवधेश प्रसाद ने कहा.

युवा मतदाताओं की उम्मीदें
सहेजनी के युवाओं में भी विशाल प्रशांत को लेकर काफी उत्साह है. ग्रामीणों का मानना है कि पढ़े-लिखे और होनहार विशाल प्रशांत से उन्हें अपने क्षेत्र में विकास की नई दिशा मिलने की उम्मीद है. हमें उम्मीद है कि विशाल अपने पिता की तरह ही क्षेत्र का विकास करेंगे. इसी वजह से तरारी के अधिकतर राजपूत समाज एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में हैं, अनिल सिंह ने कहा.

जाति का असर
यद्यपि सहेजनी गांव में कई मतदाता विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं. कई लोग कैमरे पर तो जाति को नकारते हैं, लेकिन ऑफ-कैमरा बातचीत में जातीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जा रहा है. माले और बीजेपी प्रत्याशियों के बीच जाति का प्रभाव निर्णायक साबित हो सकता है.

तरारी विधानसभा का यह उपचुनाव जातीय और विकास के मुद्दों के बीच एक संतुलन की खोज का प्रतीक है. मतदाता विकास की उम्मीद में एनडीए प्रत्याशी विशाल प्रशांत की ओर देख रहे हैं, जबकि जातीय समीकरण भी इस चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि तरारी के लोग 13 नवंबर को किस दिशा में मतदान करते हैं. क्या वे जाति के बंधनों से ऊपर उठकर विकास का समर्थन करेंगे, या फिर जातीय समीकरण जीत हासिल करेंगे?

Tags: Bihar election, Local18, Public Opinion



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