Ranbir Kapoor Bobby Deol Film Animal Story Like Real Life Serial Killer Thug Behram Named In Guinness Book Of World Records
Serial Killer Thug Behram: क़त्ल… खू़न… और लाश… तीन ऐसे शब्द, जो किसी को भी झकझोर कर रख देते हैं और उस इंसान से रूबरू कराते हैं, जो हकीकत में हैवान बन चुका होता है. रणबीर कपूर और बॉबी देओल की फिल्म एनिमल इस वक्त सुर्खियों में है तो आइए हम आपको देश-दुनिया के उन इंसानों से रूबरू कराते हैं, जो आम लोगों के लिए हकीकत में एनिमल बन गए थे. एबीपी की खास सीरीज ‘जब इंसान बना एनिमल’ के पार्ट-1 में हम आपको उस खूंखार दरिंदे की दास्तां सुना रहे हैं, जिसने एक रुमाल से ही 900 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
जब रास्तों में मिलती थी मौत
वह जमाना जरूर अंग्रेजों का था, लेकिन उस वक्त रास्तों में मौत तोहफे में मिलती थी. उस दौर में एक शख्स ऐसा भी होता था, जो राहगीरों में दोस्त बनकर शामिल तो होता, लेकिन पीले रंग के रूमाल और एक सिक्के से ही उन्हें मौत के घाट उतार देता था. उसके खौफ का आलम यह था कि आम लोगों ने झांसी, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल की राह पकड़कर निकलना ही बंद कर दिया था. उस खूंखार शख्स का नाम ठग बेहराम था, जिसकी बेरहमी के किस्से सुनकर अंग्रेज भी थर-थर कांपते थे.
खूंखार ठग ऐसे बना था बेहराम
साल 1765 के दौरान मध्य भारत में बेहराम का जन्म हुआ था. उस इलाके के आज जबलपुर (मध्य प्रदेश) के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि बचपन में बेहराम बेहद शांत और सरल था, लेकिन कुछ समय बाद उसकी दोस्ती खुद से 25 साल बड़े सैयद अमीर अली से हुई. अमीर अली उस जमाने का सबसे खतरनाक और खूंखार ठग था. बेहराम ने उससे ठगी के पैंतरे इस अंदाज में सीखे कि अगले 10 साल में वह ठगों का सरदार बन गया. बेहराम ने ठगी की दुनिया में पहला कदम 25 साल की उम्र में रखा था.
गायब कर देता था पूरा काफिला
जानकार बताते हैं कि ठग बेहराम करीब 200 ठगों का पूरा ग्रुप बना रखा था. वह राहगीरों के काफिले पर कभी अचानक हमला बोलता था तो कभी उनके बीच घुल-मिलकर वारदात को अंजाम देता था. वह कत्ल को इस तरह अंजाम देता कि पूरे के पूरे काफिले गायब हो जाते थे. यहां तक कि लोगों की लाशें तक नहीं मिलती थीं. उस दौरान खबरें आज की तरह नहीं फैलती थीं, बावजूद इसके बेहराम की हैवानियत की चर्चा हर किसी की जुबां पर रहती थी. उसके खौफ की वजह से सेना के जवान भी सफर करने से कतराते थे.
थर-थर कांपते थे अंग्रेज
जब बेहराम का खौफ पूरे देश में फैल रहा था, उस दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी भी अपने कदम तेजी से भारत में जमा रही थी. बेहराम से निपटने के लिए अंग्रेजों ने जितने भी सैनिकों को काम पर लगाया, हर किसी को मौत के घाट उतार दिया गया था. ऐसे में अंग्रेजों ने अपने सबसे तेजतर्रार अफसर कैप्टन विलियम हेनरी स्लीमैन को बेहराम को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी.
उस्ताद ने ही बता दिया बेहराम का पता
कैप्टन स्लीमैन ने पानी की तरह पैसा बहाते हुए पूरे देश में मुखबिरों का जाल बिछा दिया. एक दिन उनके हत्थे बेहराम का उस्ताद सैयद अमीर अली चढ़ गया. हुआ यूं था कि कैप्टन स्लीमैन को अमीर अली के घर का पता मिल गया था, जिसके बाद उसने अमीर अली के घरवालों को कैद कर लिया. परिवार के मोह में अमीर अली ने खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया. साथ ही, अपने चेले बेहराम का पता भी बता दिया.
पांच साल तक नहीं लग पाया सुराग
अमीर अली से पता जानने के बाद कैप्टन स्लीमैन के हत्थे बेहराम नहीं चढ़ा और यह सिलसिला करीब पांच साल तक चलता रहा. साल 1838 के दौरान अमीर अली ने मुखबिरी करके बेहराम को पकड़वा दिया. उस वक्त उसकी उम्र 75 साल थी. करीब दो साल तक बेहराम के खिलाफ मुकदमा चला और 1840 के दौरान उसे कटनी में सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया गया.
जासूस भी डिकोड नहीं कर पाए बेहराम की भाषा
जानकारों की मानें तो बेहराम मुसाफिर बनकर राहगीरों के काफिले में शामिल हो जाता था, जबकि उसके साथी कुछ दूरी बनाकर चलते थे. रात के वक्त जब काफिले के लोग सो जाते, तब बेहराम अपनी खास भाषा रामोसी में अपने साथियों को इशारा कर देता, जिसके बाद काफिले पर अचानक हमला कर दिया जाता था. इससे पीड़ितों को बचने तक का मौका नहीं मिलता था. कहा जाता है कि ठगों की भाषा रामोसी इतनी कठिन थी कि अंग्रेजों के जासूस भी उसे डिकोड नहीं कर पाते थे.
किस्सों ही नहीं, रिकॉर्ड्स में भी बेहराम
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बेहराम का नाम सिर्फ किस्सों-कहानियों में नहीं रहा, बल्कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी उसका नाम बतौर सबसे खूंखार सीरियल किलर के नाम से दर्ज है. उसका खौफ करीब 50 साल तक कायम रहा. उसने बिना बंदूक और चाकू चलाए कुल 931 लोगों को कत्ल कर दिया. यह आंकड़ा भी अंग्रेजों के हिसाब से माना गया, लेकिन पीड़ितों की संख्या इससे कहीं ज्यादा मानी जाती है. बेहराम की दहशतगर्दी का आलम यह रहा कि उस पर कई किताबें भी लिखी गईं.