सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई के बाद कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार के खिलाफ उठने लगी आवाज
जयपुर:
सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी से हार गए हैं. पार्टी अपने प्रथम परिवार के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए कुख्यात है, गांधी परिवार, उनके नेतृत्व में असामान्य रूप से नाराजगी के चलते पिछले तीन महीने के अंदर दो युवा और नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया. पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब 2013 में राजस्थान में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस को वापसी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले सचिन पायलट को भी कांग्रेस ने किनारे कर दिया.
एक बार के लिए कांग्रेस अपने सदस्यों को खुले तौर पर रणनीति में दोष देख रही है, अगर वास्तव में ऐसा है तो वह अपनी प्रतिभा को क्यों नहीं संभाल पा रही है. रविवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, ‘अपनी पार्टी के लिए चिंतित हूं. क्या हम तभी जागेंगे जब घोड़े हमारे अस्तबल से भाग जाएंगे.’
तब से पार्टी के विभिन्न आयुवर्ग के कई नेता अपनी हताशा जाहिर कर रहे हैं जिसे वो गांधी परिवार का बेवजह ही उनकी पहुंच के बाहर होना कहते हैं.
सिंधिया के मामले से विपरीत पायलट को प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा कथित तौर पर फोन किया गया था; कांग्रेस प्रवक्ता आरएस सुरजेवाला ने आज सुबह यह भी कहा कि पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी भी पायलट के पास पहुंची थीं, उनसे आग्रह किया कि वे उन कदमों पर पुनर्विचार करें, जो उन्हें पार्टी के साथ टकराव में डाल रहे हैं.
सुरजेवाला ने आज जयपुर में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहा कि पायलट के गांधी परिवार के साथ करीबी रिश्ते हैं. लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह घोषणा भी देखी गई कि पायलट को गृह राज्य के उपमुख्यमंत्री और राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है.
पायलट ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “सत्य को परेशान किया सकता है,पराजित नहीं.”
कांग्रेस में ऐसे बहुत से लोग है जो ऐसा मानते हैं कि सचिन पायलट की मांग को मान लिया जाना चाहिए था. उन्हें मुख्यमंत्री का पद देकर. लेकिन इस बात को लेकर शिकायत भी है कि पायलट को सभी चीजों के लिए पहले ही मना लिया गया था, दोनों नेताओं के साथ गांधी परिवार ने अलग से बैठक करके शक्तियों को बंटवारे की पेशकश करके. इसके साथ ही यह भी आश्वासन दिया गया कि गहलोत के रास्ते में पायलट किसी भी तरह से बाधा नहीं बनेंगे, जोकि आगे बढ़ते युवा नेतृत्व की राह में बाधा बनने वाले अभियान की तरह था.
10 दिन पहले जब सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के सामने अपनी बात रखने के लिए दिल्ली आए, कि वो अब निर्णय लेने की स्थिति में हैं. तो उन्हें अहमद पटेल जैसे सीनियर नेता को भेजा गया. गांधी परिवार से कोई नहीं मिला.
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “कांग्रेस नेतृत्व का दृढ़ता से बचाव करने और पार्टी के लिए काम करने के बावजूद भी पिछले पांच वर्षों में एक बार भी मुझसे बात करने या मिलने का समय नहीं दिया गया है. कांग्रेस कार्यकर्ता और पार्टी के अन्य नेताओं के बारे में आप कल्पना कर सकते हैं.”
पार्टी का एक वर्ग ऐसा भी है जो मानता है कि राहुल गांधी को या तो कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वापसी करने और अपने फैसलों के लिए जवाबदेही लेने की आवश्यकता है, या वह अपनी मां के माध्यम से महत्वपूर्ण मामलों पर जारी रखने वाले अंतिम अधिकार को आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, जो उनकी जगह कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले हुए है. पिछले साल आम चुनाव में पार्टी की हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया था.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पीएम मोदी पर किसी तरह का हमला करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. उन्हें विश्वास है कि यह रणनीति उन्हें अन्य विपक्षी नेताओं से अलग करती है और उनके दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए खुली नहीं है. और उनके वफादारों ने किसी को भी खारिज कर दिया जो असहमत हैं तो वो उनकी नजरों में “भाजपा के संपर्क में” है.
मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी थी, मध्य प्रदेश में दिग्गज कांग्रेसेयों ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया. रविवार को जब सचिन पायलट ने स्पष्ट किया कि वह अब गहलोत की रणनीति के साथ नहीं चल सकते, तब सबसे पहले उनके मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया.
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने ट्वीट कर कांग्रेस और अशोक गहलोत पर निशाना साधा था, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया, ‘यह देखकर दुखी हूं कि मेरे पुराने सहयोगी सचिन पायलट को भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा दरकिनार कर दिया गया. यह दिखाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और क्षमता पर कम ही भरोसा किया जाता है.’