Satna Tribal Community: जरूरी सुविधाओं की कमी के साथ सतना के आदिवासी पुश्तैनी जमीन की लड़ाई लड़ने को मजबूर


शिवांक द्विवेदी/सतना: मध्यप्रदेश के परसमानिया पठार और इसके आस-पास के आदिवासी समुदाय आज बिजली, पानी, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के साथ अपनी पुश्तैनी जमीन बचाने के संघर्ष में भी लगे हुए हैं. तीन पीढ़ियों से अपनी जमीन पर खेती करने वाले इन आदिवासियों की जमीनों पर अब विकास के नाम पर बाड़े लगाए जा रहे हैं, जिससे इनकी जीविका और अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

जमीन के दस्तावेजों की कमी: बड़ा संकट
ग्राम तिग्रहा फाटक के एक युवा आदिवासी ने बताया कि सरकार कई बार जमीन का पट्टा देने का आश्वासन दे चुकी है, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है. यही नहीं, फ़ीडिंग के नाम पर 1500 रुपये भी वसूले गए, लेकिन उनकी जमीन अब तक डिजिटल रिकॉर्ड में अपडेट नहीं की गई है. शिक्षा की कमी के कारण आदिवासी अपने जमीन के दस्तावेजों को समय पर संभाल नहीं पाए, जिससे उन्हें अब वन विभाग के सवालों का सामना करना पड़ रहा है.

कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन
मंगलवार को लगभग 80-90 आदिवासी कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और अपनी जमीन से जुड़े दस्तावेज दिखाते हुए ज्ञापन सौंपा. कलेक्टर ने उनकी समस्याओं को सुनकर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया. आदिवासियों का कहना है कि उनके लिए जमीन केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि उनकी पहचान और जीवन का आधार है. वे हर हाल में अपनी जमीन का पट्टा लेकर रहेंगे.

वन विभाग का हस्तक्षेप: आदिवासियों की परेशानी बढ़ी
आदिवासी समुदाय पिछले 20 वर्षों से अपनी जमीन का मालिकाना हक साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है. हाल ही में, वन विभाग ने इनकी जमीनों पर कब्जा करके बाड़े लगा दिए हैं, जिससे आदिवासी समाज की स्थिति और भी खराब हो गई है. आदिवासियों का कहना है कि अगर उनकी जमीन उनसे छीन ली गई, तो वे भुखमरी और बेरोजगारी का सामना करेंगे, क्योंकि उनकी जीविका का एकमात्र साधन यही जमीन है.

सामाजिक समर्थन की आवश्यकता
सोशल एक्टिविस्ट सुरेंद्र दहिया के अनुसार, उचेहरा ब्लॉक के परसमानिया पठार सहित अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी यही स्थिति है. 2020 में वन अधिकार अधिनियम के तहत दावे किए गए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है. दूसरी तरफ, सरकार वन सुधार के नाम पर इन क्षेत्रों में प्लांटेशन करवा रही है, जिससे आदिवासियों को अपनी जमीन छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है.

समाधान की दिशा में कदम
इस स्थिति में आदिवासी समुदाय सरकार से उचित कदम उठाने की मांग कर रहा है. इनकी मांग है कि उन्हें जल्द से जल्द जमीन का पट्टा दिया जाए और उनके हक की रक्षा की जाए. अगर सरकार इस पर जल्दी कार्रवाई नहीं करती, तो यह समस्या और विकराल हो सकती है. आदिवासी समाज का कहना है कि जमीन उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और वे इसे किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.

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