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अमित कुमार/समस्तीपुर. आम उत्पादक किसानों को आम की फली में गुठलियां बनने से लेकर गुठलियां पूरी तरह विकसित होने तक अपने बगीचों की सावधानीपूर्वक निगरानी करने की जरूरत है. इस महत्वपूर्ण चरण के दौरान उचित उद्यान प्रबंधन की गहन समझ महत्वपूर्ण है. इसपर विशेष जानकारी डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में पौधों की बीमारियों में विशेषज्ञता वाले वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.एसके सिंह ने जानकारी दी. उन्होंने कहा कि बिहार में आम के फल आम तौर पर 50 ग्राम या उससे अधिक वजन तक पहुंचते हैं. इससे पहले कि फल पर बाल कम हो जाते हैं और फल स्वाभाविक रूप से गिर जाते हैं. शुरुआत में आम के पेड़ों पर जितने अधिक मंजर और फल लगते हैं, उसका मात्र 5% हिस्सा या उससे भी कम फल अंत तक पेड़ों पर टिका रह पाता है. आम के बचे हुए फल प्राकृतिक रूप से पेड़ों से गिर जाते हैं. उन्होंने बताया कि आम के पेड़ पर लगने वाले फलों की मात्रा पेड़ की आंतरिक शक्ति से निर्धारित होती है.

डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में पदस्थापित विशेषज्ञ डॉ.एस के सिंह ने बताया कि पेड़ यह खुद निर्धारित करता है कि वह कितने फलों का पोषण सही ढंग से कर पाएगा. पेड़ जितने फल रख सकता है उतने रखने के बाद बचे हुए फलों को अपने आप त्याग देता है. उन्होंने उल्लेख किया कि कभी-कभी, यह देखा गया है कि पेड़ काफी पुराना हो गया है और फलों की भरपूर पैदावार हुई है. इसका तात्पर्य यह है कि पेड़ पर उगाए जाने वाले फलों की संख्या तय करने का कौशल खो गया है, जिससे ऐसे पेड़ों की संभावित मृत्यु हो सकती है. उन्होंने कहा कि किसानों के द्वारा पूरे साल आम के बागों का किया गया प्रबंधन ही यह निर्धारित करता है कि पेड़ पर कितने फल टिकेंगे.

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पेड़ से फल झड़ने से बचने के लिए ऐसे करें उपचार
डॉ.एस के सिंह ने बताया कि आम के बागों में जब फलों का आकार 50 ग्राम से अधिक हो जाता है तो फलों के गिरने की दर कम हो जाती है. यदि इस अवस्था में भी फल गिर रहे हैं, तो किसानों को इसके कारण की जांच करनी चाहिए. इस अवस्था में फलों के गिरने से बगीचे में हनीड्यू, पाउडर फफूंदी और एन्थ्रेक्नोज जैसे हानिकारक कीड़ों और बीमारियों की उपस्थिति का संकेत मिलता है. इन कीटों पर नियंत्रण के लिए किसानों को प्रति दो लीटर पानी में 17.8 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड दवा को 1 मिलीलीटर के साथ मिलाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, 1 मिलीलीटर हरकोनाज़ोल दवा को 1 लीटर पानी में घोलना चाहिए और इस मिश्रण का पेड़ों पर व्यापक रूप से छिड़काव करना चाहिए.

इनका भी कर सकते हैं प्रयोग
इन दवाओं के अलावा, किसान 1 एमएल डिनोकैप 46 ईसी दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर पेड़ों पर लगाने से हनीड्यू और एन्थ्रेक्नोज रोगों की गंभीरता को काफी कम कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिक के अनुसार यदि उस समय अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता, तो आम के बागों में पाउडरी फफूंदी रोग या संबंधित कीटों का न्यूनतम प्रभाव होता. यदि किसान ने 15 दिन पहले आम के पेड़ों पर प्लानोफिक्स नामक दवा लगाई हो. फल अभी भी सड़ रहे हो तो दवा दोबारा डालने की सलाह दी जाती है. इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, बगीचे में हल्की सिंचाई शुरू करने की सिफारिश की जाती है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि मिट्टी आवश्यकतानुसार लगातार नम बनी रहे. बगीचे में जलभराव रोकने के लिए किसानों को सतर्क रहना चाहिए.

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