Shivraj Singh Master Stroke In Madhya Pradesh Money Was Transferred To The Accounts Of 1.25 Crore Women In 100 Days – मध्य प्रदेश में ये था शिवराज का मास्टर स्ट्रोक- 100 दिनों में 1.25 करोड़ महिलाओं के खातों में पहुंचा दिये पैसे
“यही नहीं रुकूंगा…”
सरकार को कुल 12533145 आवेदन मिले, 203042 पर ऐतराज हुआ. जांच के बाद 12505947 पात्र मिले, जिनके खाते में लगभग 99 फीसद सफलता के साथ 1000 रुपये ट्रांसफर हो गये. हालांकि, सरकार कहती है कि रकम और बढ़ाई जाएगी. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था, “मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना शुरू तो 1 हजार रुपये से हुई है, लेकिन अभी तो ये अंगड़ाई है. तुम्हारे भाई ने 1 हजार रुपये से शुरू किया है, लेकिन इसे और बढ़ाता जाऊंगा. बाद में साढ़े 12 सौ रुपये कर दूंगा, इसके बाद बढ़ाकर 1500 रुपये कर दूंगा, यही नहीं रुकूंगा… 1700 और उसके बाद 2000, फिर 2250 इसके बाद 2500 फिर 2700 और उसके बाद हर महीने 3 हजार रुपये कर दूंगा.”
लेकिन ये हुआ कैसा…
लाडली बहना के फॉर्म भरने के लिये कतार लगती थी… बगैर किसी ताम झाम के चंद मिनटों में रजिस्ट्रेशन हो जाता था, वो भी एक मोबाइल से. इसका हल ढूंढा था सिर्फ 40-50 लोगों की टीम ने, जिन्होंने रिकॉर्ड 100 दिनों में इस पहाड़ को अपनी मेहनत और कुशाग्रता से फतह कर लिया… साथ दिया जैम यानी जनधन, आधार और मोबाइल ने. MPSEDC के एमडी अभिजीत अग्रवाल ने बताया, “समग्र केवायसी से पूरा डेटा मिल जाता था, महिलाओं की तस्वीर ली थी, तकनीकी रूप से क्लाउड बेस स्केलेबल बनाया था… हमने सारे मीडियम इस्तेमाल किये व्हाट्सऐप पूरा बैकबोन आधार बेस्ड था. यूजर को समझाना जरूरी था कि आधार को खाते से लिंक कराना था. पिछले 3 महीने में जब स्कीम रोलआउट हुई, तो हर जगह पहुंच बढ़ाई गई.
सिर्फ 40-50 लोगों की टीम संभाल रही थी काम
अभिजीत अग्रवाल ने बताया, “मध्य प्रदेश में 23000 से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं. 7000 से ज्यादा वार्ड हैं… कभी ऐसा भी होता था कि लाडली बहना के ऐप पर 50,000 से ज्यादा यूजर्स की जानकारी भरी जा रही होती थी, सबकुछ 40-50 लोगों की टीम संभाल रही थी. इंजीनियर राहुल गुर्जर ने बताया, “लगभग हम 16-20 घंटे काम करते थे, इसमें रिक्वायरमेंट चेंज करना ये हमारा मुख्य काम था. वहीं इंजीनियर शिवानी ने बताया कि जब से ये प्रोजेक्ट आया था, लगातार काम किया. सारे त्योहार छोड़े… बीमारी में भी कोशिश की कि काम करे.
लाडली बहना से जो सिस्टम बना, उसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है कि पैसे जो लाभार्थी महिला है, उसके खाते में गया… पति, पिता के पास नहीं. उनकी वित्तीय और डिजिटल साक्षरता बढ़ी, खुद का बैंक खाता खोला. अभिजीत अग्रवाल ने बताया, “महिला ने एक बार समग्र में ईकेवायसी करा लिया, बैंक खाता आधार से लिंक है, तो सारी जानकारी सीधे आ जाएगी. स्कीम का रोलआउट कम हो जाएगा. ह्यूमन ऐरर खत्म हो जाती है, ना नाम एंट्री कराना है ना डेमोग्राफी.
मध्य प्रदेश जैसे राज्य में ये योजना सियासी है, लेकिन इसकी जरूरत भी है क्योंकि…
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक, राज्य में 23.0 प्रतिशत महिलाएं मानक बॉडी मास इन्डेक्स से कम के स्तर पर हैं.
- 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का स्तर 54.7 प्रतिशत है.
- ग्रामीण इलाके में श्रमबल में 57.7 प्रतिशत भागीदारी पुरुषों की है, वहीं महिलाओं की सिर्फ 23.3 प्रतिशत.
- शहरी इलाके में 55.9 प्रतिशत पुरुष रोजी कमाते हैं, जबकि सिर्फ 13.6 प्रतिशत महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी है.
बात 1000 रुपये और चुनाव से आगे की है… आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं की श्रम में भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा कम है, जिससे वो आर्थिक रूप से स्वावलंबी नहीं बन पाती हैं. ऐसे में लाडली बहना जैसी योजना उनके स्वास्थ्य, पोषण और स्वालंबन की दिशा में एक छोटा कदम जरूर है, जिसे तकनीक का साथ मिला है.
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