Siddhapeeth Salasar Dham where the idol came to the temple in this bullock cart, the years old bullock cart is still safe – News18 हिंदी


रिपोर्ट- नरेश पारीक
चूरू. सिद्धपीठ सालासर बालाजी धाम की महिमा अपरमपार है. उनके भक्त दुनिया भर में फैले हुए हैं. यहां बजरंग बली विराजे हैं. सालभर इस मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता है. इस मंदिर और प्रतिमा स्थापना की कहानी अद्भुत और चमत्कारी है.

क्या आप जानते हैं जिस बजरंग बली की प्रतिमा की महिमा का आज गुणगान होता है वह प्रतिमा कहां मिली और सालासर में ही आखिर क्यों विराजमान की गई. सिद्धपीठ सालासर बालाजी धाम के अरविंद पुजारी बताते हैं-किस्सा नागौर जिले की लाडनू तहसील के आसोटा गांव का है. खेत में हल जोतते समय किसान को जमीन में गड़ी कोई चीज टकराई. किसान ने जमीन की खुदाई की तो उसे शिला दिखाई दी. किसान ने खुदाई कर उसे बाहर निकालकर साफ किया तो उस पर हनुमानजी उकेरे हुए नजर आए.

राजा को स्वप्न में दिखे हनुमानजी
पुजारी बताते हैं उसी रात आसोटा गांव के राजा को स्वप्न आया. स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन दिए. प्रतिमा को सूर्योदय होने पर बैलगाड़ी से सालासर छोड़ने की बात कही. पुजारी बताते हैं उक्त प्रतिमा को लेकर आ रही बैलगाड़ी सालासर के बीचोंबीच पहुंचकर अपने आप रुक गयी और फिर आगे नहीं बढ़ी. प्रतिमा को सालासर में वहीं खेजड़े के पेड़ के नीचे रख दिया गया. अरविंद पुजारी बताते हैं 300 साल पहले बालाजी की प्रतिमा लाने वाली वो बैलगाड़ी आज भी मंदिर में सुरक्षित खड़ी है.

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बालाजी की पसंद थे मोहनदासजी
सालासर बालाजी मंदिर के अरविंद पुजारी बताते हैं संत मोहनदास जी सीकर जिले के रूल्यानी गांव के थे. पुजारी बताते हैं संत मोहनदास जी की बहन कानी बाई के पति का शादी के कुछ समय बाद ही देहांत हो गया था. अपनी बहन और उनके बच्चो का ख्याल रखने के लिए मोहनदास जी सालासर में उनके साथ रहने लगे. पुजारी बताते हैं संत मोहनदास जी काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और हर समय सीताराम-हनुमान नाम का जाप करते थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं बालाजी महाराज ने अपनी प्रतिमा की पूजा मोहनदास जी से करवाने की इच्छा जाहिर की थी.

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