Sikh Community: 7 दिन तक शोक में डूबा रहेगा सिख समाज! जानें क्यों मनाया जाता है शहीदी सप्ताह?



HYP 4863770 cropped 19122024 225908 inshot 20241219 225446941 1 Sikh Community: 7 दिन तक शोक में डूबा रहेगा सिख समाज! जानें क्यों मनाया जाता है शहीदी सप्ताह?

कोडरमा. सिख गुरुओं ने मुगल आक्रांताओं से डटकर मुकाबला करने का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराया है. सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है. धर्म व आम जन की रक्षा के लिए दी गई इस शहादत जैसा दूसरा ही कोई उदाहरण सुनने या पढ़ने को मिलता हो.

इस शहादत के स्मरण में सिख समाज के द्वारा शहीदी सप्ताह मनाया जाएगा. इस दौरान सिख समाज शोक में डूबा हुआ रहेगा. शहीदी सप्ताह के दौरान उत्सव का कोई कार्य सिख समाज में नहीं किया जाएगा. 

मुगल शासक ने इस्लाम धर्म अपनाने का दिया था दबाव
गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के पूर्व सचिव यशपाल सिंह गोल्डन ने लोकल 18 से विशेष बातचीत में बताया कि सन् 1704 में गुरु गोविंद सिंह जी अपने परिवार एवं सिख सैनिकों के साथ आनंदपुर साहिब किला में रहते थे. इस दौरान मुगल शासक ने उन पर इस्लाम धर्म अपनाने का काफी दबाव दिया. लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. 20 दिसंबर 1704 की रात भयंकर सर्दी थी और बारिश के बीच मुगल सेना ने किला पर हमला कर दिया. इस दौरान मुगल सेना ने कहा था कि आप किला छोड़ दीजिए आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी अपने चार साहबजादे, माता गुजरी जी और 40 सैनिकों के साथ किले से बाहर निकल गए.

इसके बाद सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुगलों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया. बारिश के कारण नदी में उफान था. कई सिख बलिदान हो गए. कुछ नदी में ही बह गए. इस अफरा-तफरी में परिवार बिछड़ गया. माता गूजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, गुरु जी से अलग हो गए दोनो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह गुरु जी के साथ ही थे. 

शहीदी सप्ताह के दौरान गुरुद्वारा में होंगे यह कार्यक्रम
उन्होंने बताया कि इसके बाद उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया. उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे. इसके बाद अगले दिन मुगलों के साथ युद्ध हुआ. जिसमें दोनों साहिबजादे और सिख सैनिक ने सनातन धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलिदान दी. इस घटनाक्रम को स्मरण करते हुए सिख समाज पूरे श्रद्धा भाव से शहीदी सप्ताह मानता है. उन्होंने बताया कि इस दौरान रोज शाम 7 विशेष दीवान सजेगा. जिसमें रहीरास साहिब एवं आरती, बच्चों एवं बड़ों के द्वारा वीर रस शब्द गायन, कविता पाठ, 5 चौपाई साहिब के पाठ एवं संगत के साथ जपुजी साहिब का पाठ किया जाएगा. 8.30 से 9:15 तक नाम सिमरन एवं शहादत के इतिहास पर प्रकाश डाला जाएगा. कार्यक्रम की समाप्ति के बाद गुरु का अटूट लंगर बरसेगा.

दीवार में जिंदा चुनवा दिए गए दो छोटे साहिबजादे

इस दौरान माता गुजरी के साथ दोनों छोटे साहिबजादे को वजीर खां ने सरहिंद के किले में कैद कर लिया. सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा. इसके बाद भी दोनों ने इंकार कर दिया और कहा कि हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अतिरिक्त किसी और के सामने सिर नहीं झुकाते हैं. हमारे दादा ने जो कुर्बानी दी है, ऐसा करके हम उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे. हमने यदि किसी और के सामने सिर झुका लिया, तो अपने दादा को हम क्या जवाब देंगे. उन्होंने धर्म के नाम पर अपना सिर कलम करवाना उचित समझा, लेकिन झुकाना नहीं. इसके बाद भी वजीर खां ने गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को काफी धमकाया. उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा गया. लेकिन इसके बाद भी दोनों साहिबजादे अपनी बात पर अड़े रहे.

जब वजीर खां ने देखा कि दोनों उनकी बात नहीं मान रहे हैं, तो आखिर में उसने इन दोनों को दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश दे दिया. दोनो साहिबजादों ने 26 दिसंबर 1704 को हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर अपना धर्म नही छोड़ा. इसके बाद जब इन दोनों साहिबजादों को दीवार में चुना जाने लगा, तब दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे. तब साहिबजादों ने धर्म व देश के लिए बलिदान दे दिया. यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए.

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