Sirohi News : इस आदिवासी जनजाति के लिए माउंट आबू की नक्की झील ही है हरिद्वार, दिवंगत नाखून का तर्पण 


दर्शन शर्मा/सिरोही : पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इन दिनों में हिंदू परिवारों में अपने दिवंगत पूर्वज को याद कर श्राद्ध मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में यदि श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण विधिवत किया जाए, तो दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है और वे सुखी संतुष्ट होकर लौट जाते हैं. वैसे तो हरिद्वार में पितृ तर्पण किया जाता है, लेकिन राजस्थान में बसी आदिवासी जनजाति गरासिया समाज के लिए सिरोही जिले के माउंट आबू स्थित नक्की झील ही हरिद्वार है. सालभर में अपने दिवंगत परिजनों का तर्पण इसी झील में किया जाता है. नक्की झील अरावली पर्वतमाला की पहाडियों के बीच बनी प्राचीन मीठे पानी की झील है. इस झील से जुड़ी आदिवासी समाज की कई मान्यताएं और रीति रिवाज है.

नाखून का करते है तर्पण, चांदी का नाखून भी बनवाने का रिवाज
गरासिया जनजाति के वरिष्ठ अधिवक्ता भावाराम गरासिया ने बताया कि गरासिया समाज में माउंट आबू की नक्की झील को काफी पवित्र माना जाता है. सालभर में दिवंगत परिवार के सदस्यों का तर्पण यहीं किया जाता है. गर्मियों के समय आने वाली पीपली पूनम के आसपास सिरोही जिले समेत गुजरात से कई गरासिया परिवार यहां आते हैं. विधिवत पूजा अर्चना कर परिजनों का अस्थि विसर्जन किया जाता है. इसमें ​किसी परिवार सदस्य की मौत होने पर उसके नाखून का अंश लिया जाता है और उसका झील में तर्पण किया जाता है. किसी कारणवश नाखून का अंश नहीं ले पाने पर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि का कुछ हिस्सा लिया जाता है. अगर हड्डी का कुछ हिस्सा भी नहीं ले सकें है, तो उस परिवार को चांदी का नाखून बनवाकर इस झील में विधिवत तर्पण करना होता है. नाखून से इस झील को लेकर भी किंवदंती प्रसिद्ध है कि रसिया बालम ने राजा की पुत्री से विवाह के लिए रखी गई शर्त को पूरा करने के लिए इस झील को अपने नाखून से खोद दिया था.

तर्पण के बाद झील में डुबकी लगाकर करते है प्रार्थना
यहां धूमधाम से ढोल नगाड़ों से गायन कर दिवंगत का तर्पण किया जाता है. झील के किनारे धार्मिक अनुष्ठान के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है और बाद में परिवार के सदस्य झील में डुबकी लगाकर अपने परिजनों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं. भावाराम गरासिया ने बताया कि परिवार में शोक को लेकर भी नियम है कि पिता की मौत के समय बड़े पुत्र का मुंडन होता है और माता की मृत्यु के समय छोटे पुत्र का मुंडन होता है. वहीं जब तक विधिवत पितृ तर्पण नहीं होता तब तक उस परिवार में कोई शुभ कार्य भी नहीं होता है और ना ही परिवार की महिलाएं जेवरात पहनती है.

FIRST PUBLISHED : September 24, 2024, 24:43 IST



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