Special Series: दुर्दांत डाकुओं की नहीं, ऋषियों की तपोस्थली भी है चंबल का यह दुर्दांत इलाका, यह है सच्चाई


रवि रमन त्रिपाठी. मध्य प्रदेश का भिंड जिला. प्रदेश के इस पिछड़े जिले का नाम लेते ही मन में चंबल की यादें और डाकुओं की कहानियां कौंध जाती हैं. भिंड जिले की तस्वीर भले ही आज बदलने लगी हो, लेकिन एक दौर था जब इस इलाके को डाकुओं और दुर्दांत अपराध के लिए जाना जाता था. अपहरण, हत्या, लूटपाट इस जिले का पर्याय बन गए थे. लोग इस जिले में जाना तो दूर, गुजरना भी पसंद नहीं करते थे. यह कहना बड़ी बात नहीं होगी, कि इस जिले में पैर वही रखता था, जिसे यहां कोई काम हो. राजनीतिक परिस्थितियों की बात छोड़ दें तो नेताओं के अलावा यहां कोई नहीं आता था.

चंबल के इस इलाके को अगर करीब से देखेंगे, तो जानेंगे कि भिंड को भले ही खतरनाक इलाके के रूप में जाना जाता हो, लेकिन वास्तविकता इससे कोसों परे है. सच्चाई तो यह है कि भिंड ऋषियों, संतों की तपोस्थली है. आपको बता दें, यहां की मिट्टी बड़ी पवित्र है. इस जिले का इतिहास बताता है कि यहां भिंडी ऋषि हुआ करते थे. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम पड़ा भिंड. जो भी यहां आता है वह ऋषि भिंडी का आशीर्वाद जरूर लेता है. कभी मान्यता थी कि उनका कहा पत्थर की लकीर होती थी. उन्होंने जो कह दिया उसे कोई काट नहीं सकता था.

राजा पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था मंदिर
भिंडी ऋषि की इस तपोस्थली पर स्थापित है वनखंडेश्वर महादेव मंदिर. यह मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. इसकी स्थापना राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराई थी. वह भी तब, जब वे चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उन्होंने युद्ध पर जाने से पहले भिंड में विश्राम किया था. उसी दौरान उन्हें सपना आया था कि जमीन में शिवलिंग है. इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई कराई. जब उसमें से शिवलिंग निकला तो उन्होंने मंदिर की स्थापना करा दी.

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