Supreme Court Crackdown On Illegal Bangladeshis: What Is The Process To Deport Foreigners From India? | Explainer: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- डिपोर्ट कर दो! क्या है अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का प्रोसेस?


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Deportation Rules in India: सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से ‘विदेशी’ करार दिए जा चुके लोगों को उनके देश वापस भेजने की प्रक्रिया में तेजी लाने को कहा है. भारत से किसी को डिपोर्ट करने की क्या प्रक्रिया है, आइए जानत…और पढ़ें

Explainer: SC ने कहा- डिपोर्ट कर दो! क्या है 'विदेशियों' को भेजने का प्रोसेस?

सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को हाल ही में फटकार लगाई है.

हाइलाइट्स

  • अब भी असम के एक डिटेंशन कैंप में रह रहे हैं ‘विदेशी’ करार दिए जा चुके कई लोग.
  • डिपोर्ट करने की प्रक्रिया नहीं शुरू करने पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगी फटकार.
  • डिपोर्ट करना इतना आसान नहीं, कूटनीतिक चुनौतियों से जूझकर पूरी होती है प्रक्रिया.

अगर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने ‘अवैध विदेशी’ घोषित कर दिया है तो उन्हें डिपोर्ट करने में देरी क्यों? मंगलवार को, सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से यही सवाल पूछा. राज्य के एक ‘ट्रांजिट कैंप’ में बंद 270 व्यक्तियों को ‘विदेशी’ करार दिया जा चुका है. इसके बावजूद अभी तक उन्हें उनके देश वापस नहीं भेजा जा सका. भेजा जाना तो दूर, प्रक्रिया तक नहीं शुरू हो पाई. डिटेंशन कैंप में रखे गए इन लोगों को डिपोर्ट कर देना इतना आसान नहीं है. यह एक कूटनीतिक मसला है और इसमें राज्य सरकार की ज्यादा भूमिका नहीं है. डिपोर्टेशन में सबसे अहम रोल विदेश मंत्रालय (MEA) का होता है.

असम के कैंप में रखे गए हैं ‘विदेशी’

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कैंप के 270 कैदियों में से 103 रोहिंग्या हैं, 32 चीनी और एक व्यक्ति सेनेगल से है. इन्हें फॉरेनर्स एक्ट, सिटीजनशिप एक्ट और पासपोर्ट एक्ट के तहत दोषी पाया गया और सजा सुनाई गई. ये लोग दूसरे देशों के नागरिक हैं और सजा पूरी करने के बाद ट्रांजिट कैंप में रखा गया है जहां ये डिपोर्ट किए जाने का इंतजार कर रहे हैं.

बाकी 133 कैदी वे हैं जिन्हें असम में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने ‘विदेशी’ घोषित कर रखा है. ये ट्रिब्यूनल यह तय करते हैं कि उनके सामने पेश किया गया व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं. ट्रिब्यूनल्स के सामने दो तरह के मामले आते हैं: ऐसे केस जो बॉर्डर पुलिस के जरिए उनके पास भेजे जाते हैं जब उन्हें किसी के विदेशी होने का शक होता है और वे मामले जो मतदाता सूची में ‘संदिग्ध’ मतदाताओं के रूप में सूचीबद्ध लोगों से जुड़े होते हैं.

असम सरकार के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार, इन 133 लोगों में से 70 ने ‘बांग्लादेशी नागरिक होने की बात मान ली’ है. उन्होंने अपना बांग्लादेश वाला पता भी दिया है. एक व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया गया है. हालांकि, SC में जिन 63 लोगों का जिक्र हुआ, उन्होंने कोई पता नहीं दिया है.

क्या है ऐसे लोगों को डिपोर्ट करने का प्रोसेस?

चूंकि, ऐसे मामलों में दूसरे देशों की सरकारों से संपर्क साधना होता है इसलिए राज्य सरकार की भूमिका सीमित हो जाती है. राज्य की जिम्मेदारी मामले को विदेश मंत्रालय को रेफर करने तक है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एक सीनियर अधिकारी के हवाले से कहा गया है, ‘इन सभी मामलों में, हमें एक नेशनलिटी वेरिफिकेशन रिपोर्ट भरनी होगी और उसे MEA को भेजना होगा. MEA यह रिपोर्ट संबंधित देश के दूतावास या उच्चायोग को भेजता है.’

अधिकारी ने आगे बताया, ‘एक बार दूतावास हमें बता दे कि व्यक्ति उनके देश का नागरिक है और पता सही है, तो हम उसे सीमा सुरक्षा बल (BSF) को सौंप देते हैं. बीएसएफ दूसरे देश की पैरामिलिट्री फोर्स से संपर्क करती है. बाकी सभी मामलों में हमने MEA को रिपोर्ट भेज दी है, लेकिन इन 63 लोगों ने, जिनके बारे में हमें लगता है कि वे बांग्लादेश से हैं, अपना पता नहीं बताया है.’

SC की फटकार के बाद, राज्य सरकार अब इन लोगों को ‘बांग्लादेशी’ बताकर MEA को लिस्ट भेजने वाली है. पते की जगह सिर्फ ‘बांग्लादेश’ लिखा जाएगा. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह अदालत को बताए कि वह उन मामलों में क्या करेगी जहां लोगों की नागरिकता का पता नहीं.

डिपोर्ट करना क्यों आसान नहीं?

ऐसे मामलों पर काम करने वाले एक वकील ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘कोई ट्रिब्यूनल बस यही घोषित करता है कि फलां व्यक्ति भारतीय नहीं है. लेकिन इस बात की किसी वैध संस्था या उस व्यक्ति से कोई पुष्टि नहीं होती कि वे बांग्लादेश से हैं. उनके पास कोई पता नहीं है और ये भी नहीं जानते हैं कि वे कहां से हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि उन्हें कहां और कैसे डिपोर्ट किया जा सकता है और क्या बांग्लादेश की सरकार उन्हें वापस लेने को तैयार होगी?’

जिन 63 लोगों की बात SC में हो रही है, उनके पास अभी अपील का विकल्प मौजूद हैं. वे ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने रहीम अली नाम के व्यक्ति की भारतीय नागरिकता पर मुहर लगाई थी. अली को 12 साल पहले एक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी करार दिया था. हालांकि, SC का फैसला आने से दो साल पहले अली की मौत हो गई थी.

एक दूसरे वकील ने कहा, ‘ट्रिब्यूनल्स के सामने केवल यह सवाल होता है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं. उन्हें हां या नहीं में जवाब देना होता है. ट्रिब्यूनल्स के पास यह अधिकार नहीं होते कि यह पता लगाएं कि वे किस देश के नागरिक हैं. आप उन्हें डिपोर्ट करना चाहते हैं तो बांग्लादेश को उन्हें स्वीकार भी तो करना होगा.’

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