Supreme Court Decision In NewsClick Case Is A Big Relief For The Common Man And A Big Lesson For The Police – न्यूज़ क्लिक के संपादक की रिहाई: ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर सकती पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब समझिए



mpojkr1k court generic fourt files generic files in court Supreme Court Decision In NewsClick Case Is A Big Relief For The Common Man And A Big Lesson For The Police - न्यूज़ क्लिक के संपादक की रिहाई: ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर सकती पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब समझिए

गिरफ्तारी के मामले में किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूएपीए या अन्य अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना मौलिक और वैधानिक अधिकार है. कोर्ट के ये कहना का मकसद साफ है कि किसी भी इंसान के लिए कानूनी कार्रवाई एक जैसी होनी चाहिए और उसे किसी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

गिरफ्तारी के लिखित आधार की कॉपी जल्द मिलना जरूरी

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधारों की एक कॉपी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को ‘‘बिना किसी अपवाद के जल्द से जल्द दी जानी चाहिए” कोर्ट की इस टिप्पणी से ये साफ हो गया कि गिरफ्तार शख्स को हर हाल में जल्द से जल्द गिरफ्तारी के लिखित आधारों की एक कॉपी मिलनी चाहिए, ताकि उससे अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई की पूरी जानकारी हो.

गिरफ्तारी की रिमांड कॉपी ना मिलने पर गिरफ्तारी अवैध

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई झिझक नहीं है कि लिखित रूप में गिरफ्तारी के लिए रिमांड कॉपी नहीं दी गई, जिसके चलते गिरफ्तारी अवैध है.” जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने जो कहा उससे इस बात की साफ

मौलिक अधिकारों पर नहीं किया जा सकता कब्जा

मौलिक अधिकार पर अतिक्रमण करने के किसी भी प्रयास को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 द्वारा गारंटीकृत ऐसे मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटना होगा. कोर्ट की इस टिप्पणी से भी साफ हो रहा है कि अगर ऐसा होता है तो उसे इंसान के मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा.

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अटूट अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत गारंटीकृत ‘‘सबसे अटूट” मौलिक अधिकार है. इसे भी किसी तरह नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया जा सकता है. सुनवाई के दौरान कोर्ट की कही इस बात का स्पष्ट संदेश है कि हर नागरिक के लिए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार की अपनी विशेष अहमियत है.

कोर्ट ने पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को क्यों ठहराया अवैध

सुप्रीम ने यूएपीए के तहत एक मामले में पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को ‘कानून की नजर में अवैध’ करार दिया और उन्हें हिरासत से रिहा तुरंत करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत गारंटीकृत ‘‘सबसे अटूट” मौलिक अधिकार है.

41 पन्नों का फैसला लिखते हुए, न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी, उसके बाद पिछले साल 4 अक्टूबर का रिमांड आदेश और दिल्ली उच्च न्यायालय का 15 अक्टूबर का रिमांड को वैध करने का आदेश, कानून के विपरीत था और इसलिए इसे रद्द कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई आदेश का देते हुए क्या कहा

इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूएपीए या अन्य अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना मौलिक और वैधानिक अधिकार है. किसी को भी ऐसे ही नहीं उठा सकते.

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की हर दलील को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने कहा, “हम अपीलकर्ता को मुचलका प्रस्तुत करने की आवश्यकता के बिना रिहा करने का निर्देश देने के लिए राजी हो जाते, लेकिन चूंकि आरोप पत्र दायर किया गया है, इसलिए हमें यह निर्देश देना उचित लगता है कि अपीलकर्ता को निचली अदालत की संतुष्टि के मुताबिक जमानती मुचलका जमा करने पर हिरासत से रिहा किया जाए. “

बाद में दिन में, पटियाला हाउस कोर्ट ने पुरकायस्थ को 1 लाख रुपये के जमानत बांड और तीन शर्तों पर रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने इस मामले में सशर्त जमानत देते हुए कहा कि वह मामले में गवाहों से संपर्क नहीं करेंगे और कोर्ट की अनुमति के बिना विदेश यात्रा पर भी नहीं जाएंगे.

कोर्ट ने पुलिस को याद दिलाया उनका कर्तव्य

गिरफ्तारी के आधार पर लिखित जानकारी देने के पुलिस के अनिवार्य कर्तव्य के बारे में विस्तार से बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को “सभी बुनियादी तथ्य जिनके आधार पर उसे गिरफ्तार किया जा रहा है. उसके के बारे में सूचित करना चाहिए, ताकि उसे हिरासत में रिमांड के खिलाफ खुद का बचाव करने का अवसर प्रदान किया जा सके.

कोर्ट ने कहा कि आवेदन करने के बावजूद पुरकायस्थ को एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई. एफआईआर की प्रति उन्हें पिछले साल 5 अक्टूबर को उनकी गिरफ्तारी के दो दिन बाद प्रदान की गई थी और एक दिन बाद उसे पुलिस हिरासत में भेज दिया गया.

कब हुई थीं न्यूजक्लिक संपादक की गिरफ्तारी

दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक कार्यालय और समाचार पोर्टल के संपादकों और पत्रकारों के आवासों सहित कई छापे के बाद पिछले साल 3 अक्टूबर को पुरकायस्थ और एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया था.

न्यूजक्लिक संपादक पर क्या आरोप

पोर्टल के माध्यम से राष्ट्र-विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कथित चीनी फंडिंग के मामले में पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया गया था. पुरकायस्थ के खिलाफ आरोप लगाया गया कि ‘न्यूजक्लिक’ को चीन के पक्ष में प्रचार के लिए कथित तौर पर धन मिला था.



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