Supreme Court Will Consider The 1992 Decision To Take Remand In 15 Days Of Arrest – सुप्रीम कोर्ट गिरफ्तारी के 15 दिनों के भीतर रिमांड पर लेने के 1992 के फैसले पर करेगा विचार


सुप्रीम कोर्ट गिरफ्तारी के 15 दिनों के भीतर रिमांड पर लेने के 1992 के फैसले पर करेगा विचार

सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी पीठ के पास रैफर कर दिया है. (फाइल)

नई दिल्‍ली :

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम कदम उठाते हुए यह परीक्षण करने का फैसला लिया है कि क्या किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार आरोपी को पुलिस और जांच एजेंसियों को जांच पूरी होने के समय यानी मामलों के अनुसार 60 या 90 दिनों में कभी भी पुलिस रिमांड पर दिया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के उस  फैसले पर विचार करने का फैसला किया है, जिसमें कहा गया था कि गिरफ्तारी के दिन से 15 दिनों के भीतर ही पुलिस रिमांड पर ले सकती है. 

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सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी पीठ के पास रैफर कर दिया है. जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री सैंथिल बालाजी मामले में फैसला सुनाते हुए यह अहम कदम उठाया है. 

अपने फैसले में बेंच ने कहा कि रजिस्ट्री को सीआरपीसी, 1973 की धारा 167(2) के वास्तविक सवाल के मुद्दे पर फैसला लेने के लिए उचित आदेश के लिए इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया जाता है कि क्या पुलिस के पक्ष में हिरासत की अवधि केवल रिमांड के पहले 15 दिनों के भीतर हो या जांच की पूरी अवधि में फैली होनी चाहिए – 60 या 90 दिन, जैसा भी मामला हो. 

दरअसल, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुपम जे कुलकर्णी मामले में कहा था कि किसी भी मामले में गिरफ्तारी के दिन से 15 दिनों के भीतर ही पुलिस रिमांड लिया जा सकेगा, लेकिन अब इस बेंच ने अनुपम जे कुलकर्णी मामले में फैसले पर फिर से विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा है. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ईडी के पास धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत हिरासत में लेने की शक्ति है (धारा 41ए सीआरपीसी धारा 19 पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी के लिए ईडी पर बाध्यकारी नहीं है). इसलिए गिरफ्तारी से पहले धारा 41ए के तहत नोटिस की जरूरत नहीं है. 

मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश के न्यायिक आदेश द्वारा रिमांड के बाद हैबियस कॉरपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण सुनवाई योग्य नहीं है. एक्ट ऑफ गॉड या अन्य आकस्मिक परिस्थितियां पुलिस हिरासत की मांग की अवधि को बाहर करने की अनुमति दे सकती हैं.

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