तकनीक ने मानवीय संबंधों में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित किया है। – प्रो.चंदन कुमार (Professor Chandan Kumar)

Professor Chandan Kumar:

आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय,
(दिल्ली विश्वविद्यालय),दिल्ली-110021
द्वारा आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम में ‘नई तकनीक और शिक्षण-अधिगम(New Technology and Teaching-Learning)’विषय पर आदरणीय प्रो. चन्दन कुमार सर ने दिनांक 28/08/2021 समय 11:30 बजे अपना वक्तव्य दिया ।
प्रो.चन्दन कुमार ने भारतीय काव्य की शास्त्रीय पद्धति का उल्लेख करते हुए प्रज्ञा को परिभाषित करते हुए कहा कि भारतीय चिंतन में प्रतिभा प्रज्ञा का नवोन्मेष है दसवीं सदी में अचार्य भटतौत की रचना है काव्य कौतुक इनके समय में एक विद्वान हुए अभिनव गुप्त जिन्होने भटतौत की रचना का उल्लेख अपनी रचना अभिनव भारती में किया है।इन्हीं भटतौत ने प्रतिभा की परिभाषा देते हुए कहा कि “ प्रज्ञा नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा मता।“ प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम जो नित्य नवीन विचार उत्पन्न करती है प्रतिभा सूचना नहीं है प्रतिभा व्याख्या है। मनुष्य ने अपने जैसा मनुष्य देखा, मनुष्य ने हाथी देखा, हाथी और मनुष्य सूचना है। एक विचार आया कि एक ऐसा जीव हो जिसमे मनुष्यों जैसी आत्मप्रज्ञा हो और हाथी जैसा बल हो ऐसा होना ईश्वर होना है। गणेश की कल्पना स्वीकार हुई। गणेश देवत्व की अवधारणा है। यह व्याख्या है सूचना नहीं है। भट्टतोत का उल्लेख प्रज्ञा की व्याख्या करने के लिए हुआ।आगे प्रो.चंदन ने कहा यह पुनश्चर्या पाठ्यक्रम प्रज्ञा की सीमाओं का निदर्शन है।कई सीमाएँ हमारी लिमिटेशंस भी है और हमारी संभावनाएं भी।
राजीव गाँधी का उल्लेख करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा राजीव गांधी जी अपनी कार्य पद्धति में कंप्यूटर की वकालत कर रहे थे तब संस्थानों और संस्थाओं में विलाप चल रहा था कि कंप्यूटर आया तो नौकरियां खत्म हो जाएंगी ।लोग बेरोजगार हो जाएंगे। बाबू लोग हड़ताल कर रहे थे जिसमें राजीव जी की नीती से स्वयं भी उन्होने असहमति जताई 20 साल बाद बाबू लोग कंप्यूटर पर सवार हैं।कहीं कोई भूखा नहीं मरा।
प्रो.चंदन कुमार ने नई तकनीकि आने पर किस तरह का डर फैलता है इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इंडोनेशिया में टेलीविजन आया तो लोगों ने कहा यह शैतान की आवाज है।मस्ज़िदों में शुक्रवार की रात नमाज़ के बाद जो तकरीर की गई उसमें टेलीविजन को काफिर की आवाज कहा गया। जब भी कोई नई तकनीक आती है तो यथास्थितिवाद की पक्षधर व्याख्याओं को खतरे की तरह लगती है।
आगे उन्होने विदेशी विद्वानों का उल्लेख करते हुए कहा विक्टर युगों इनका जन्म 26 फरवरी 1802 फ्रांस में हुआ मृत्यु 22 मई 1885 पैरिस में हुई सिम्बॉलिज्म और एब्सट्रैक्ट एक्सप्रेशन( Symbolism, Abstract expressionism) में विक्टर युगों के योगदान को दुनिया मानती हैं।वे फ्रांसीसी रोमेंटिक आंदोलन के प्रमुख कवि नाटककार , उपन्यासकार और निबंधकार रहे हैं उनका उपन्यास ‘ हंचबैक आफर नात्रे दम’ इसका एक पात्र छापेखाने की नई तकनीक आने पर यह आशंका व्यक्त करता है कि छपाई के मशीन के कारण लोग लिखना भूल जाएंगे और साक्षरता लुप्त हो जाएगी। लेकिन हुआ इसका उल्टा जिन पादरियों ने छापेखाने का विरोध किया इससे बाईबल के नष्ट- भ्रष्ट होने की आशंका व्यक्त की उन्हीं लोगों ने तकनीक पर सवार होकर पूरी दुनिया में गुसेट काटा। विश्वविद्यालयों के नए पादरी चिंतित हैं। तकनीक ने एक ऐसी स्थिती पैदा की है जहाँ यथार्थ की व्याख्या में हमारे घोषित बुद्धि के सीमांत नजर आ रहे हैं।
प्रो.चंदन कुमार ने शिक्षा की यात्रा को विश्लेषित करते हुए कहा कि रंगास्वामी नरसिम्मन ने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई में 1955 में डिजिटल कंप्यूटर की जो शुरुआत की वह माननीय राजीव गांधी नरसिम्हा राव जी से होते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तक पहुँची है।एक पूरी दुनिया है जिसकी यात्रा पिछले वर्षों में तय हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीती 2020 इस प्रज्ञा यात्रा की अभिव्यक्ति है।आगे उन्होने शिक्षा से वंचित रह जाने के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस यात्रा ने हमें अनुभव दिया है की भारत जैसे विशाल देश में जहाँ आजादी के 75 वर्षों के उपरांत भी सुदूर इलाकों तक शिक्षा की आधारभूत संरचनाएँ पहुंचने में हम असमर्थ रहे हैं। शिक्षक हैं तो विद्यालय नहीं है, विद्यालय है तो बैठने की व्यवस्था नहीं है, बैठने की व्यवस्था है तो पढ़ाने की नीयत नहीं है, यह सब है तो वेतन नहीं है, आजादी के 75 वे वर्ष में प्राथमिक और माध्यमिक अध्यपकों से पढ़ाने के अलावा सारे काम लिए गए ।आगे उन्होने पूर्वोत्तर की सक्रीयता व्याख्यायित करते हुए कहा कि वहाँ शिक्षक मतगणना करते हैं ,जनगणना करते हैं चुनाव में भाग लेते हैं ,टीकाकरण करते हैं ,मध्यान में भोजन में खिचड़ी बनाते हैं और भी न जाने क्या क्या करते हैं।
भारतीय शिक्षा पद्धति का वर्णन करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि स्वतंत्र्योत्तर भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा अनाथालयों की तरह विकसित हुई है।तो उच्च शिक्षा वैचारिक एसगाह की तरह विकसित हुई है।
विश्वविद्यालय में पूंजी के खेल को स्पष्ट करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा पूंजी के खेल में बाहर कर दिए गए लोग ,कुलपति प्रोफेसर के.एन.राज के शब्दों में कहें तो ‘हिंदू ग्रोथ रेट’ में पलते हुए लोग। ऐसे लोग जब विश्वविद्यालय में गये तो विश्वविद्यालय के आचार्य ने उनके इर्द-गिर्द भय बुना उन्हें पूंजी का भय दिखाया गया ,उन्हें टेक्नोलॉजी का भय पढ़ाया गया। भयातुर व्यक्तित्व, डरा हुआ आदमी आक्रामक होता है। हमारे आचार्यों ने हमें जो ज्ञान कहकर बांटा वह ज्ञान पूंजी और टेक्नोलॉजी के डर की मैनुफैक्चरिंग थी। लेनिन माओत्सुंग का योगदान पढ़ाया गया और हमें कहा गया आप बेगूसराय से क्रान्ति करने आए हैं यह ज्ञान की चरम सार्थकता बताई गई। टेक्नोलॉजी ने इस ज्ञान की सीमाएं बता दी।
टेक्नोलॉजी से बनती हुई दुनिया का विवरण देते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि हमारे सामने एक नई दुनिया नया यथार्थ है भारत में 1923 में रेडियो आया जिसे बॉम्बे रेडियो क्लब के नाम से जाना जाता है, 1955 में कंप्यूटर आया, 15 सितम्बर 1959 में टेलीविजन आया ,1995 में मोबाइल फ़ोन आया ,2006 मेफेसबुक ,2009 में स्मार्ट फ़ोन और अप्रैल 2012 में एयरटेल ने कलकत्ता में पहली बार 4G लॉन्च किया।
पूंजी और तकनीक के खेल पर गंभीरता पूर्वक ज़ोर देकर कहा कि दुनिया बदल रही है। हमारी उपलब्ध विचारधाराएं और उनकी घोषित शब्दावली इन माध्यमों से बने यथार्थ की व्याख्या में फिसड्डी सिद्ध हुए ।पर स्थिति अपरिहार्य थी जो लोग पूंजी और तकनीक के खेल से असहमत थे वे लोग खुद इसमें डूबे हुए थे। जो यथार्थ हमारे सामने था उसमें दुनिया के बड़े खेल पूंजी के बड़े बाजार में चल रहे थे जहाँ क्षण क्षण परिवर्तित जगत का यथार्थ था।
छात्र और विश्वविद्यालय के बीच के अंतर्संबंधों को विश्लेषित करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि एक नितांत चंचल क्षणभंगुर अति चंचल यथार्थ है। गुरूजी लोग और उनके चेले लोग ‘एक कच्ची सड़क थी जो मेरे गांव तक जाती थी’ में मगन थे। खेल की शर्तें बदल गयी खिलाड़ी बदलना चाहते हैं पर कोच लोग इन सब चीजों में षड्यंत्र देख रहे हैं। डरे हुए आदमी को दूसरों को डराना अच्छा लगता। विश्वविद्यालय का काम भय और घृणा का पाठ पढ़ाना नहीं है बल्कि विद्यार्थियों को सक्षम बनाना है।
तकनीक और विश्विद्यालयों मध्य होने वाले अध्ययन अध्यापन पर प्रकाश डालते हुए प्रो चंदन कुमार ने कहा कि जब भी आप टीचिंग लर्निंग को देखें, नई टेक्नोलॉजी को देखें तो 17 साल के बच्चे की आंख से देखें। जो अपनी दुनिया बनाने के लिए आप पर भरोसा करके आपके पास आया है। उसे आपको ऐसा बनाना है कि वह रूपड़ मंडोक, वार्नर ब्रदर्स,और बिलगेट्स कि दुनिया में अपनी जगह बना सकें।

प्रश्नाकूल होकर प्रो.चंदन कुमार ने पूछा कि हमारा संकट क्या है? विश्वविद्यालय का संकट क्या है ? स्वंय ही उसका उत्तर देते हुए उन्होने कहा कि हमारे ज्ञान में अनुभव का झूठ समा गया है।हमारे विश्वविद्यालय हमारे शैक्षणिक संस्थान, नए और सच्चे अनुभवों को आने से रोक रहे हैं।यह न बदलने का मिज़ाज यह यथास्थितिवादिता अध्ययन अध्यापन को प्रतिक्रियावादी बना रही है।
आज की यथास्थिति का वर्णन करते हुए पूंजी और तकनीक की महत्वता बताते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि हम तकनीक और बाजार के खेल में है आज शिक्षा का खेल पूंजी और तकनीकी का खेल हो गया। पूंजी और तकनीकी की रेलगाडी चल निकली है अगर आपको आगे बढ़ना है तो पाठ्यक्रम और संस्थानों को पूंजी और तकनीक की रेलगाडी पर सवार होना पड़ेगा। और स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा कि इस पूंजी और तकनीक का अपना एक लोकतंत्र भी है और यह सूचना( ज्ञान) का लोकतंत्र है। हिमाचल से लेकर अरुणाचल तक किसी भी तरह का गप्प एक क्लिक में आपका गप्प पब्लिक डोमेन में है । कोई भी गुरु उस महान प्रातःस्मरणीय आलोचना शिखर से पूछ सकता है कि इसमें क्या महान है तकनीक ने हमें बताया है कि विश्वविद्यालय में ज्ञान कहकर परोसे जाने वाले तथ्य गप्प थे। आचार्य आदि लोग इस गप्प की परंपरा को बचाए रखना चाहते हैं। नए माध्यम ने बताया कि आत्मा शुद्ध करने के लिये अध्ययन अध्यापन नहीं होता है गप गोष्ठी नहीं है। शिक्षा जीवन को बेहतर बनाने सुविधा संपन्न बनाने और स्वाद संपन्न बनाने का माध्यम है।
हम जिस दुनिया में जी रहे हैं वह किस तरह की दुनिया है इसको विवेचित करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि यह एक ठस् लौकिक कार्य है हम जिस न्यू टेक्नोलॉजी के कार्य में है वह एक लाइफ कंडिशन है जिसका कोई विकल्प नहीं है ।‘आग का दरिया है डूब के जाना है ’हम जिस नहीं दुनिया में जी रहे हैं वह एक फ्री फ्लो ऑफ इन्फॉर्मेशन है ।इसके खिलाफ़ कोई हो ही नहीं सकता।आपके संबंध आपकी रचनात्मकता आपका विरोध सब कुछ इन्हीं माध्यमों पर निर्भर है।
तकनीक के प्रभाव को स्पष्ट करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि आप टेक्नोलॉजी का विरोध कर रहे हैं फेसबुक पर ।आप टेक्नोलॉजी में इन हैं और टेक्नोलॉजी का विरोध कर रहे हैं ।आप जिन स्थितियों में आकंठ धंसे -फंसे है उसका आपको एहसास नहीं है दुष्यंत जी के एक शेर का उदाहरण भी दिया
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं
कमाल तो यह है फिर भी तुम्हें यकीन नहीं
कोविड 19 के कारण तकनीकि प्रयोग में आई गति की विवेचना करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय के पठन पाठन में कोविड 19 का उत्तरकाल कई नई स्थितियों का जनक होकर आया है। देखते ही देखते परंपरागत कक्षाएं और आदरणीय गुरूजी लोग तकनीक पर सवार हो गए हैं। पूरा का पूरा शिक्षा तंत्र चाहे वह कक्षा हो, साक्षात्कार हो ,संगोष्ठी या पुनश्चर्या पाठ्यक्रम हो माइक्रोसॉफ्ट जूम ,फेसबुक, गूगल, फेसबुक लाइव के हवाले हो गए हैं।12 मई 2020 के नेतृत्व ने अपने संबोधन में स्पष्ट कर दिया की शिक्षा ,अर्थव्यवस्था और विकास की प्रतिस्पर्धा में अगर हमें बचे रहना है तो हमें टेक्नोलॉजी पर सवार होना पड़ेगा।अब आप गूगल मीट पर तकनीक की जद में है आपकी रिकॉर्डिंग हो रही है आप पर पारदर्शिता और जवाबदेही के तर्क लागू है।
शिक्षा में तकनीक के योगदान को स्पष्ट करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि शिक्षा में तकनीक की उपस्थिति में कई नई चीजें पैदा की है। इसने आपको कक्षाओं में अनुशासित रखा हुआ है। आपका हर बोला हुआ शब्द पब्लिक डोमेन में है। एक तीसरी आंख का भय आपको मर्यादित रखे हुए है। तकनीक ने मानवीय संबंधों में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित किया है। आप किस पर टिप्पणी करते हैं, किसे लाइक करते हैं, आप जिसे अद्भुत अकल्पनीय बताते हैं ,यह केवल वही नहीं देख रहा है अपितु वह भी देख रहा है जिसे आप दिखाना नहीं चाहते। यह एक खुला खेल है जहाँ आपकी बुद्धि के और चातुर्य के सीमांत साफ साफ नजर आ रहे हैं। टीचिंग लर्निंग में शिक्षा अधिगम में तकनीकी का प्रवेश शिक्षा की मानकीकरण में भी बदलाव लाएगा।
प्रो. चंदन कुमार ने जिज्ञाशु छात्र के लिए ज्ञानार्जन हेतु आचार्य की भूमिका को प्राथमिक नहीं मानते हुए कहा कि अपने विषय और क्षेत्र के बेहतरीन मस्तिष्क एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे अब गूगल बाबा से विद्यार्थी को सब कुछ उपलब्ध है स्वयं प्रभा इसका उदाहरण है।SWAYAM यह भारत सरकार का उपक्रम है जो उपलब्धता, गुणवत्ता, मानकीकरण से युक्त शिक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करने की दिशा में तकनीकी प्रयास है।स्वयं प्रभा डीटीएच माध्यम से शैक्षणिक कार्यक्रम प्रसारित करने वाले 32 चैनलों का एक समूह है इन तकनीकी माध्यमों ने सुदूर इलाकों में शिक्षा की उपलब्धता को सुनिश्चित किया है ।वह स्वयं का उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार भोजपुर इलाके के किसी व्यक्ति को पूर्वोत्तर में सुदूर पहुंचना किसने सुनिश्चित कराया टेक्नोलॉजी ने सुनिश्चित किया हे।यह आचार्यों की कूबत से बाहर था ।
आने वाली दुनिया किस तरह की होगी इस पर प्रकाश डालते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि युवा नोवा हरारी इजरायल के हिब्रू विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाते हैं वह सामाजिक इतिहासकार हैं उनकी पुस्तक ‘ 21 वीं सदी के 21 सबक ‘तकनीकी सभ्यता और मनुष्य के संबंधों की रोचक व्याख्या है। नोवा हरारे का उल्लेख इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि नए बनने वाले समाज में तकनीकी ,तथ्य ,सूचना ,लोकतंत्र और व्यक्ति के स्वरूप की तार्किक व्याख्या उपलब्ध है। अब राज्य सूचनाओं पर प्रतिबंध नहीं लगाएंगे। किसी पुस्तक को बैन नहीं लगने जा रहा अब राज्य इतनी सूचनाएं उपलब्ध कराएंगे कि आपको सही और गलत सूचना के बीच अंतर प्राप्त करना ही मुश्किल हो जाएगा। जब सूचनाओं पर प्रतिबंध नहीं होगा तो कक्षाओं में किस प्रकार का प्रतिबंध होगा।
संस्थानों मे किस तरह का चलन होगा इस पर भी अपने विचार रखते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि संस्थानों की दुनिया आने वाले समय में कवि कहानीकार बनाने की नहीं रहेंगी ।एक ऐसा विश्वविद्यालय बनने जा रहा है जहाँ सूचना और इंफोर्टमेंट दोनों की अनंतता है। शैक्षणिक संस्थानों का पारंपरिक ढांचा बदलने लगा है अब।
बरसाकर बेबस बच्चों पर मिनट मिनट पर पांच तमाचे,दुखरन मास्टर किसी तरह गढ़ते हैं आदम के सांचे, वाले कवि नागार्जुन के छात्र और गुरु दोनों पूंजी और तकनीक के इस खेल में बह गए हैं।
अध्ययन अध्यापन के भावी जीवन की व्याख्या करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि शिक्षा और अध्यापन की दुनिया में एक और बदलाव आने वाला है और वह है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जो दुनिया बनने वाली हैं उसके साथ आपको संवाद करना सीखना होगा। आपके नए शिक्षा मित्रों के नाम कोर्टाना एलेक्सा और गूगल असिस्टेंट होंगे।इंतजार कीजिए आने वाली दुनिया में हार्ड मांस वाले प्रोफेसर की जगह एलेक्सा, सीरी ,और कोर्टाना लेने वाले हैं। जो आपको गुरुओं की तरह सूचनाएं भी देंगे सूचनाओं की बाहर भी होगी और गुरु का भय भी नहीं होगा वे आपकी टहल बजा देंगे।
अपनी पहचान कराने वाले परपरागत मानदण्डों से भिन्नता को स्पष्ट करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि शिक्षा की दुनिया में आने वाला कल नाम, पृष्ठभूमि, वंश और परिवार की दुनिया से तय नहीं होगा आनेवाला विद्यार्थी एक बायोमीट्रिक आइडेंटिटी होगा। वह नाम और पिता के नाम से ज्यादा आंखो के रंग ,पुतलियों के रंग और हाथों के निशान से पहचाना जाएगा। शिक्षण संस्थानों की उपस्थिति प्रणाली खत्म होने वाली है। गुरु जी और उनके विद्यार्थी लोग संस्था या कक्षा में है या मंत्री जी के यहाँ है इससे पता चल जाएगा आपका बायोमेट्रिक आइडेंटिटी का आंकड़ा आपकी उपस्थिति सुनिश्चित कर देगा कॉलेज में। सेंसर बता देगा कि आप कहाँ है यह बायोमेट्रिक आंकड़ा आपको एक व्याख्येय इकाई बना देगा। आपका क्रोध आपका प्रेम स्थितियों के प्रति आपकी प्रतिक्रिया सब कुछ व्याख्या होगी।यह सब कुछ इतना आकर्षक है क्षणभंगुर है की आप जब तक अब चेतनता को वापस लाते हैं तब तक सबकुछ बीत चुका होता है।
प्रो.चंदन कुमार ने अतिवादी विचारधाराओं को रेखांकित करते हुए कहा कि यहाँ ग्रेटनेस महानता 2 मिनट नूडल की तरह है। बनते है और नष्ट हो जाते हैं। संस्थानों को अपनी इस नई दुनिया में जगह बनानी होगी। अतिवादी मूल्य और अतिवादी विचारधाराओं का कोई खेल अब चलने वाला नहीं है। अतिवादी वैचारिकी के दिन अब लद गए।
तकनीकि के एकपक्षीय होने का उल्लेख करते हुए प्रो .चंदन कुमार ने कहा कि तकनीक ने वाद विवाद और संवाद की दुनिया को खत्म कर दिया है। ज्ञान की विकास परंपरा भारतीय ज्ञान की विकास परंपरा तर्क केंद्रित है। भारतीय होने का सुख यह है कि आप संख्या से शुरू होते हैं और वेदांत तक जाते हैं। सांख्य, योग, विशेषांक, मीमांसा और वेदांत जैसे छः आस्तिक दर्शन और जैन ,बौद्ध और चार्वाक का अनीश्वरवादी दर्शन तर्क और वितर्क की परंपरा की उपज है। हमारा ज्ञान हमारी प्रश्नाकुलता से निकला हुआ ज्ञान है ‘को हम’ से निकली हुई यात्रा को’ सु हम’ मैं वही हूँ जो तुम हो’ यह पूरी यात्रा संवाद की यात्रा है।
तकनीकि के एक पक्षीय हो जाने के कारण उसकी क्या सीमाएं हैं उस पर विचार करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि यह यात्रा प्रश्नाकुलता,तर्क और संवाद की यात्रा दिलाती है। नई बनती हुई दुनिया में यानी तकनीक की दुनिया में यह यात्रा एकपक्षीय हो रही है। तकनीक आपसे वाद- विवाद नहीं करेगी। वाद विवाद से वंचित रहता हुआ समाज, ज्ञान की बहुस्तरीय ता के लिए खतरनाक है ।एक ही किस्म की व्याख्या और एक ही किस्म का तर्क आपको उपलब्ध होगा।
तकनीकि के खेल को विश्वरूप में समझते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि तकनीक द्वारा दिया गया दुनिया को उत्तर अमेरिका द्वारा दिया गया उत्तर है। कोई भी प्रश्न हो उसका उत्तर गूगल का है ,उत्तर अमेरिका तय करेगा जो वर्चस्ववादी विचार कहे जा रहे हैं वह वर्चस्व अमेरिकी पूंजी तय कर रही है।
तकनीकि के कारण किस प्रकार हमारी निज़ता खत्म हो रही है पर अपने गंभीरता पूर्वक विचार रखते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा दुनिया मे जिस चीज़ को मॉडर्निटी कहते हैं आधुनिकता कहते हैं तर्क और वैज्ञानिक जैसी शब्दावलियों गढ़ी गई उसने एक अवधारणा निकाली निजता की अवधारणा। निजता की अब कोई अवधारणा नहीं चलेगी। तकनीकी ने आपका प्राइवेट स्पेस खत्म कर दिया है। आप बात कर रहे हैं तो कोई उसे रिकॉर्ड कर रहा है निजता की अवधारणा नष्ट हो गई है।

वक्तव्य का अंत करते हुए प्रो.चंदन कुमार ने कहा कि दुनिया की अन्य पांथिक मान्यताओं में समय की अवधारणा नहीं है। इसलिए वहाँ तुरत फुरत तलवार और बंदूक से तय होता है। सनातन भाव काल की गति की केन्द्रीयता का भाव है सै इसलिए बचा रहा है। काल की गति में शिक्षण और प्रशिक्षण की तकनीकी केन्द्रीयता से उपजी हुई अतिवादिता का उत्तर शायद हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीती 2020 तकनीक की नैतिक ताकत की व्याख्या का दस्तावेज है।

रिपोर्ट : सूर्यप्रकाश

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