There Is Difference Between Existence And Abuse Of Power, So We Should Not Confuse It: Supreme Court – सत्ता के अस्तित्व और दुरुपयोग के बीच अंतर है, इसलिए हमें इसे लेकर भ्रम नहीं करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
दरअसल जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के वकील राजीव धवन ने दलील दी कि अनुच्छेद 3 में कोई भी बदलाव करने से पहले एक वैधानिक शर्त है. इसमें राष्ट्रपति के विधेयक को विधायिका के पास भेजना अनिवार्य होता है लेकिन यह अनुच्छेद 356 के तहत नहीं किया जा सकता है. यह संविधान संशोधन का ऐसा मामला है जो संविधान के लिए विध्वंसक है. यदि यह निलंबन रद्द हो जाता है, तो राष्ट्रपति शासन के साथ ही जुलाई में किया गया इसका विस्तार भी रद्द हो जाएगा.
उन्होंने कहा अपने संविधान में संशोधन के लिए यह अनिवार्य प्रावधान हमें अनुच्छेद 3 की अनिवार्य आवश्यकताओं के मूल में ले जाता है क्योंकि संपूर्ण जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम अनुच्छेद 3 और 4 से निकलता है.
356 राज्य में लोकतंत्र को खत्म कर देता है
चीफ जस्टिस (CJI) ने पूछा कि हम अनुच्छेद 356(1)(सी) से कैसे निपटेंगे? इसलिए राष्ट्रपति के पास 356 के तहत नोटिफिकेशन के संचालन के दौरान संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की भी तो शक्ति है. इस पर धवन ने कहा कि यह एक राज्य में लोकतंत्र को खत्म कर देता है.
इस पर CJI ने पूछा कि मान लीजिए राष्ट्रपति एक उद्घोषणा में संविधान के किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित कर देते हैं तो क्या उस संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह आकस्मिक या पूरक नहीं है? या क्या यह शब्द 356(1)(बी) के पहले भाग का दायरा बढ़ा रहे हैं?
राष्ट्रपति शासन के दौरान धारा 370 और धारा 3 और 4 नहीं लगाई जा सकती
धवन ने जवाब दिया कि मैंने कभी ऐसा प्रावधान नहीं देखा जो वास्तव में किसी अनिवार्य प्रावधान को हटाने के लिए इसका उपयोग करता हो. यह असाधारण है. उन्होंने कहा यदि आप 356(1)(सी) का विस्तार करते हैं, तो आप कहेंगे कि राष्ट्रपति के पास संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार है. 356(1)(सी) को अनिवार्य प्रावधान के साथ पढ़ा जाना चाहिए जिसे वह कमजोर नहीं कर सकता. सशर्त विलय के आधार पर तो संसद और न ही राष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रपति शासन के दौरान धारा 370 और धारा 3 और 4 नहीं लगाई जा सकती.
CJI ने कहा कि प्रावधान यह दर्शाता है कि यदि संविधान के द्वारा संविधान के किसी प्रावधान को निलंबित करने के अधिकार से किसी शक्ति को बाहर करना चाहता है तो इसे विशेष रूप से परिभाषित किया गया है और दी गई परिभाषा के आधार पर ऐसा किया गया.
धवन ने कहा संसद कभी भी राज्य और राज्य विधानमंडल की जगह नहीं ले सकती. जम्मू के लिए अनिवार्य शर्त के मुताबिक राज्य की विधायिका विशिष्ट है. यहां विधायिका संसद बन जाती है और राज्यपाल राष्ट्रपति बन जाता है. धवन ने कहा, यह एक शक्ति है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उस शक्ति का प्रयोग भी उतना ही मौलिक है. हम इस अभ्यास को केवल नाममात्र की प्रकृति का कहकर नजरअंदाज नहीं कर सकते.
हमें राष्ट्रपति शासन की सीमाओं को समझना होगा
उन्होंने कहा कि, संविधान कहता है कि कोई भी बिल पेश नहीं किया जा सकता जिस पर पूरे तरीके से रोक है. हमें राष्ट्रपति शासन की सीमाओं को समझना होगा और वह महत्वपूर्ण है. प्रक्रिया को यह कहकर प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता कि राज्यपाल अब राष्ट्रपति की भूमिका में होंगे. प्रतिस्थापन की यह प्रक्रिया संविधान के लिए विध्वंसक है.
CJI ने धवन से पूछा कि क्या संसद अनुच्छेद 246(2) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए या राज्य सूची आइटम के संबंध में अनुच्छेद 356 के तहत घोषणा के अस्तित्व के दौरान कानून बना सकती है? इस पर धवन ने कहा कि प्रक्रिया का पालन करते हुए कोई भी कानून पारित किया जा सकता है, सिर्फ उसके जिससे अनुच्छेद 3 और 4 के तहत पारित किया गया हो, हालांकि उसके लिए दी गई शर्तों का पालन कर कानून पारित किया जा सकता है.
CJI ने कहा आपके इस तर्क को स्वीकार करने के लिए हमें इसकी प्रक्रिया के अनुसार यह मानना होगा कि अनुच्छेद 3 और 4 के संदर्भ में वो शक्तियां राज्य की विधायिका की शक्तियां हैं. धवन ने 356 की प्रकृति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पूर्ण नहीं है. यह भारतीय संविधान का अभिशाप है. इसे बार-बार पेश किया जाता है. नियुक्ति के लिए 356 का उपयोग और दुरुपयोग किया गया है, लेकिन इसमें कुछ अनुशासन होना चाहिए. यह निश्चित रूप से संविधान में संशोधन करने की शक्ति नहीं है.
मामले पर सुनवाई गुरुवार को भी होगी.