This mysterious Shivalinga changes color as the lamp burns and turns red – News18 हिंदी


ओम प्रकाश निरंजन / कोडरमा.भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग रूप की पूजा देश के विभिन्न इलाकों में काफी बड़े पैमाने पर होती है. इन सब में द्वादश ज्योतिर्लिंग की काफी अधिक महत्व है. आज भी धरती पर ऐसे कई शिवलिंग है जो पूरी तरह से रहस्माई बने हुए है. जिनके रहस्य को आज तक कोई समझ नहीं पाया. एक ऐसा ही शिवलिंग कोडरमा जिले के डोमचांच प्रखंड अंतर्गत मसनोडीह गांव में गंगा महल परिसर में स्थित है जो आज भी क्षेत्र के लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है.

लोकल 18 से विशेष बातचीत में गंगा महल निवासी अनिमेष सिंह ने कहा कि करीब 150 वर्ष पहले उनके छरदादा बाबू तूफानी सिंह जी को स्वप्न में क्षेत्र के जंगली इलाके में शिवलिंग होने के संकेत मिले थे. जिसके बाद वह अगली सुबह उस संभावित स्थान पर शिवलिंग की तलाश करने पहुंच गए. दिनभर शिवलिंग ढूंढने के बाद भी जब शिवलिंग नहीं मिला तब वह वापस अपने महल में लौट गए.

स्वप्न में मिला था जंगल में शिवलिंग होने के संकेत
इसके बाद दूसरी रात उन्हें दोबारा उक्त स्थान पर शिवलिंग होने का स्वप्न मिला और स्वप्न में भगवान भोलेनाथ का आदेश प्राप्त हुआ की शिवलिंग को लाकर अपने स्थान पर स्थापित करें. इसके बाद दूसरे दिन बाबू तूफानी सिंह फिर से जंगल में शिवलिंग की तलाश करने पहुंचे. स्वप्न में मिले संभावित स्थल की खुदाई करने पर उन्हें शिवलिंग की प्राप्ति हुई. इसके बाद गंगा महल के समीप पूरे विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठा कर शिवलिंग की स्थापना की गई.

दीपक जलाते ही बदल जाता है शिवलिंग का रंग
उन्होंने बताया कि शिवरात्रि के मौके पर यहां शिवलिंग का विशेष श्रृंगार किया जाता है. जिसमें सिर्फ चांदी के सामानों का उपयोग किया जाता है. शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत है कि अंधेरे में शिवलिंग के समीप दीप प्रज्वलित करने के बाद जब दीप के विपरीत दिशा से शिवलिंग को देखा जाता है तो शिवलिंग का रंग बदलकर लाल हो जाता है. एक तरह से दीपक की रोशनी शिवलिंग के आर पार होती नजर आती है.उन्होंने बताया कि काफी ध्यान केंद्रित कर शिवलिंग के समीप बैठने पर दीपक की रोशनी के बीच शिवलिंग के भीतर कई शिवलिंग की आकृति घूमते हुए भी नजर आते हैं. यह आकृति सामान्य रूप से लोगों को नहीं दिखती है इसके लिए काफी एकाग्रता पूर्वक ध्यान लगाकर शिवलिंग के समीप बैठने से इसके दर्शन होते हैं.

चार पीढ़ी से हो रही है पूजा, मनोकामना होती है पूर्ण
मंदिर के पुरोहित पुजारी रविंद्र पांडेय ने बताया कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का नाम बाबा निरंजन नाथ जी है. इस मंदिर में उनके परिवार के चार पीढ़ी से पूजा कर रहे हैं. जिसमें मंदिर के सबसे पहले पुजारी अलख पांडेय जी, उसके बाद अंगलाल पांडेय जी और बांके बिहारी पांडेय जी इसके बाद उनके द्वारा पुरानी परंपरा के अनुसार पूरे विधि विधान से पूजा कराई जा रही है. उन्होंने बताया कि यहां जो रोते हुए आता है वह हंस कर जाता है और जो हंसते हुए आता है उसका जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रहती है. यहां काफी संख्या में लोगों की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है. मंदिर परिसर में माता पार्वती के अलावे श्री राधा कृष्ण जी की आकर्षक प्रतिमा भी स्थापित है.

शिवलिंग का स्नान होता है बेहद खास, काशी विश्वनाथ की तर्ज पर होती है श्रृंगार
रविंद्र पांडेय ने बताया कि प्रतिदिन सुबह 4 बजे मंदिर खुल जाता है. इसके बाद पूरे मंदिर परिसर की अच्छी तरीके से सफाई की जाती है. इसके उपरांत बाबा निरंजन नाथ जी का बेहद ही खास तरीके से स्नान किया जाता है जिसमें गोमूत्र, शहद, दही, गुड, धी ,गुलाब जल और गंगा जल का इस्तेमाल होता है. इसके बाद चंदन और फूल अर्पित किया जाता है. उन्होंने बताया कि जिस प्रकार काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है. उसी प्रकार यहां बाबा निरंजन नाथ जी का श्रृंगार होता है. उन्होंने बताया कि शिवरात्रि पर यहां विशेष पूजा का भी आयोजन किया जाता है. जिसमें भीड़ चाहे कितनी भी हो जाए बाबा निरंजन नाथ जी की कृपा से आज तक कभी भी किसी प्रकार की अव्यवस्था का सामना लोगों को नहीं करना पड़ा है.

7 से 9 पत्तों वाला दुर्लभ बेलपत्र से होता है श्रृंगार
उन्होंने बताया कि मंदिर में शादी विवाह के संस्कार भी संपन्न होते हैं. जिसके लिए लोगों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. उन्होंने बताया कि शिवलिंग पर चढ़ने वाला बेलपत्र भी अपने आप में काफी रहस्यमयी और दुर्लभ है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर पांच पत्ते वाला बेलपत्र लोग आसानी से प्राप्त करते हैं. लेकिन यहां 7 से 9 पत्तों वाला बेलपत्र शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है. जिसे जंगल में नदी के किनारे स्थित एक बेल के पेड़ से लाया जाता है. उन्होंने बताया कि उक्त बेल का पेड़ भी मंदिर के इतिहास से जुड़ा हुआ है. जब से मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई है तब से उक्त बेल पेड़ के पत्तों से शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता रहा है. कई बार लोगों ने उक्त पेड़ पर लगे बेल के बीज से मंदिर के समीप बेल का पेड़ भी लगाया, लेकिन उसमें आज तक तीन पत्तों से ज्यादा का बेलपत्र नहीं प्राप्त हुआ है. ऐसे में आज भी पुराने पेड़ से 7 और 9 पत्तों वाला बेलपत्र लाकर शिवलिंग पर अर्पित करने की परंपरा जारी है.

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