Trishul is not used in Maratha period Shiva temple of Sagar surprise to know the reason – News18 हिंदी


अनुज गौतम/सागर: सागर की लाखा बंजारा झील के किनारे शिव मंदिर है. करीब 300 साल पहले मराठाओं ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पर विराजे शिवलिंग के साथ त्रिशूल नहीं लगाया जाता है. एक बार एक शख्स ने त्रिशूल लगाने की कोशिश की थी तो उसी रात मौत हो गई थी. यह शिव मंदिर गणेश घाट पर स्थित सिद्धिविनायक मंदिर में स्थित है. मंदिर के व्यवस्थापक गोविंद राव आठले बताते हैं कि एक ही मंदिर परिसर में भगवान गणेश और महादेव विराजमान हैं. पिता पुत्र एक जगह पर होने की वजह से शंकर जी को त्रिशूल नहीं लगता है.

सगार शहर के सबसे प्राचीन शिव मंदिर में शिवरात्रि पर भी सुबह से पूजा अर्चन किया जाएगा. भगवान भोलेनाथ का अभिषेक श्रृंगार होगा. यहां पर नंदी भी अद्वितीय हैं, क्योंकि नंदी के ऊपर भोलेनाथ की आकृति उकरी हुई है. जिसकी शादी नहीं हो रही है, शिवरात्रि के दिन या रात में कभी भी वह यहां पर पूजा करें तो मनोकामना पूर्ण होती है. वहीं, शिवलिंग काले पत्थर और लाल पत्थर से बना हुआ है.वहीं, शिवलिंग में चंद्र की आकृति उभरने का भी दावा किया जा रहा है. जो उसे पर साफ दिखाई भी देती है. व्यवस्थापक के रूप में जिम्मेदारी संभाल रहे आठले ने कहा कि यह उनकी छठवीं पीढ़ी है. महाराष्ट्र के रहने वाले हैं 2002 में इंजीनियर के पद से रिटायर होने के बाद यहीं पर भगवान की सेवा कर रहे हैं.

शिवलिंग और नंदी की है दुर्लभ प्रतिमाएं
इतिहासकार डॉक्टर रजनीश जैन बताते हैं कि मंदिर में लगा संस्कृत अभिलेख प्रमाणित करता है कि यह सागर के पहले मराठा शासक गोविंद पंत बुंदेले जो बालाजी पंत के पुत्र थे ,ने 1735 के आसपास बनवाया था. अभिलेख की आखिरी दो पंक्तियों में इनके नाम उल्लेख हैं. गोविंद पंत खैर वंश के थे और सभी खैर शैव उपासक थे. बुंदेलखंड की रक्षा के लिऐ आऐ पेशवा बाजीराव बल्लाड् ने महाराज छत्रसाल के देहावसान के बाद मिले राज्य के तीसरे हिस्से को संभालने 1733 में अपने प्रिय योद्धा गोविंदपंत को बुंदेला उपाधि के साथ सागर भेजा था. जिन्होंने पहले यह मंदिर बनवाया फिर 1760 में सागर किले का परकोटों के साथ नवनिर्माण किया. यहां उपलब्ध शिवलिंग और नंदी प्रतिमाऐं देश में अपनी तरह की अनूठी और दुर्लभ प्रतिमाएं हैं.

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