UCC Uniform Civil Code of Uttarakhand Act What is illegitimate child If child born in live-in relationship considered legal


UCC in Uttarakhand: उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) में एक प्रावधान है. लिव-इन रिलेशन में रह रहे कपल्स को रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा. इसकी जानकारी पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी. अगर इस रिश्ते(बिना शादी के) से कोई बच्चा पैदा होता है, तो उसे लीगल माना जाएगा और कानूनी तौर पर बच्चा इस कपल से अटैच हो जाएगा, उसे सभी कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे.

समान नागिरक संहिता का यह प्रावधान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी तक बिना शादी के पैदा हुए बच्चे को ‘नाजायज’ ही माना जाता था. अब सवाल यह है कि यह जायज और नाजायज बच्चा क्या है? जब हमारे देश में पैदा हुए किसी भी बच्चे (चाहे वह वैध शादी से हुआ हो या अवैध रिश्ते से) को जीने का पूरा अधिकार है और अदालतें इसके प्रति संवेदनशील हैं तो बच्चे के आगे जायज और नाजायज शब्द क्यों लगाए जाते हैं? जायज बच्चे के अधिकार नाजायज से किस तरह अलग हैं? आइए जानते हैं… 

पहले उत्तराखंड में लागू UCC के बारे में…

उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता के तहत लिव-इन में पैदा हुए बच्चे को वैध माना जाएगा. अगर किसी वजह से बच्चे के माता-पिता बाद में ब्रेकअप कर लेते हैं और अलग हो जाते हैं, तो बच्चे की मां गुजारा भत्ता की भी मांग कर सकेगी. इतना ही नहीं ब्रेकअप की भी जानकारी भी रजिस्ट्रार कार्यालय को देनी होगी. 

क्या है लीगल बच्चा?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि हिन्दू विवाह अधिनियम में स्त्री और पुरुष की वैध शादी के बारे में कानूनी प्रावधान हैं। कानून की धारा-5 और 7 के अनुसार हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्म की वैध शादी के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए। अगर लड़के या लड़की की पहले से शादी हो गई है तो तलाक के बगैर दूसरी शादी कानून में मान्य नहीं है। शादी के लिए स्वस्थ मस्तिष्क से स्वैच्छिक सहमति जरूरी है। ऐसी शादी के बाद दंपति के बच्चों को वैध मानते हुए संपत्ति में उत्तराधिकार के साथ अनेक कानूनी अधिकार मिलते हैं। इस तरह उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद बिना शादी के लिव-इन में पैदा हुए बच्चे को भी संपत्ति में उत्तराधिकार के साथ अनेक कानूनी अधिकार मिलने चाहिए.  

नाजायज बच्चा क्या है?

विराग गुप्ता आगे कहते हैं कि नाजायज बच्चों को भी माता-पिता से संपत्ति की विरासत मिलती है, लेकिन वे अधिकार धर्मों के अनुसार, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, मुस्लिम पर्सनल कानून, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के अनुसार अलग-अलग हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक फैसलों में कहा है कि शादी या रिश्ता अवैध हो सकता है लेकिन उन रिश्तों से जन्में बच्चों को अवैध या नाजायज कहना गलत है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के अनेक फैसलों के अनुसार, भारत में लिव-इन रिश्तों को कानूनी मान्यता नहीं मिली है। उत्तराखंड के नये कानून के बाद लिव-इन रिश्तों के रजिस्ट्रेशन की जरुरत और उसके बाद बच्चों को यदि वैध माना गया तो लिव-इन का दर्जा भी शादी की तरह ही हो जायेगा। लेकिन लिव-इन रिश्तों में तलाक, गुजारा-भत्ता, दूसरी शादी के प्रावधान और बच्चों के उत्तराधिकार जैसे जटिल मामलों के लिए भी यूसीसी में स्पष्ट प्रावधान करने होंगे।

वरिष्ठ एडवोकेट अजय सोती की भी यही राय है. वह कहते है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई निर्णयों में कहा है कि अवैध रिश्ते से पैदा हुए बच्चे का कोई अपराध नहीं है और उसे जीने का पूरा अधिकार है. इसलिए कानूनी तौर पर उसे नाजायज बच्चा नहीं कहा जा सकता. ऐसा बच्चा भी माता-पिता की संपत्ति पर दावा कर सकता है. वह कहते हैं कि कानून में प्रावधान है कि जहां बच्चे का कोई संरक्षक नहीं होता, वहां जिला अदालत उसकी संरक्षक होती है और वह तय करती है कि बच्चे का संरक्षण किसे दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय 

2011 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2023 ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. अदालत ने नाजायज बच्चे की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा था कि अमान्य शादी से पैदा हुए बच्चे को संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. हालांकि, ऐसा बच्चा सिर्फ माता-पिता की संपत्ति पर ही दावा करने का अधिकार रखता है. ऐसा बच्चा सहदायिक संपत्ति में हिस्सा पाने का हकदार नहीं होगा. 

 

 



Source link

x