शिक्षा का भगवाकरण कर रहा UGC? इतिहास के पाठ्यक्रम में जोड़ीं पौराणिक कथाएं, चर्चित इतिहासकारों की किताबें हटाईं

UGC ने जो ड्राफ्ट तैयार किया है, उसे फिलहाल मार्गदर्शक सिद्धांत बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि इसके जरिए भारत के गौरवशाली इतिहास को बड़े स्तर पर भी सामने लाया जाएगा।

यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) अब स्नातक स्तर पर इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव पर विचार कर रहा है। हाल ही में आयोग ने पाठ्यक्रम के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया। इसमें साफ तौर पर हिंदू पौराणिक कथाओं और धार्मिक बातों का ज्यादा उल्लेख किया गया है, जबकि मुस्लिम शासन के महत्वपूर्ण बिंदुओं को गायब कर दिया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि यूजीसी ने सिलेबस से लोकप्रिय इतिहासकारों की किताबें हटा दी हैं।

जिन बड़े इतिहासकारों की किताबें हटाने की बात सामने आई है, उनमें प्राचीन भारत पर आरएस शर्मा और मध्यकालीन भारत पर इरफान हबीब की किताबें शामिल हैं। बताया गया है कि इनकी जगह पर संघ से जुड़े करीबी लेखकों की किताबें शामिल की जाएंगी। यूजीसी ने जो ड्राफ्ट तैयार किया है, उसे फिलहाल मार्गदर्शक सिद्धांत बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि इसके जरिए भारत के गौरवशाली इतिहास को बड़े स्तर पर भी सामने लाया जाएगा।संबंधित खबरें

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वेद, उपनिषद, पुराण पढ़ेंगे इतिहास के छात्र: यूजीसी ने सिलेबस की जो आउटलाइन निकाली है, उसमे इतिहास (ऑनर्स) के पहले पेपर को आइडिया ऑफ भारत नाम किया गया है। इसमें भारतवर्ष की अवधारणा के साथ-साथ वेद, वेदांग, उपनिषद, महाकाव्य, जैन और बौद्ध साहित्य, स्मृति और पुराण पढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है। इतना ही नहीं एक चैप्टर में तो भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति और आयुर्वेद योग तक के कॉन्सेप्ट को रखा गया है।

इसके अलावा तीसरे पेपर में ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से एक टॉपिक है। इसमें सिंधु, सरस्वती सभ्यता और वैदिक सभ्यता के संबंधों पर बहस का वर्णन किया गया है। बता दें कि ऋगवेद में सरस्वती नदी का उल्लेख एक शताब्दी से भी अधिक समय से वैज्ञानिक शोध का हिस्सा रहा है। केंद्र ने इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए एक प्रोजेक्ट भी बनाया है। हालांकि इसे लेकर गंभीर संदेह है कि क्या ये वाकई वही सरस्वती नदी है जिसका उल्लेख ऋगवेद में हुआ है।

मुगलों के इतिहास को कम करने की कोशिश?: इतिहास के सातवें पेपर में ‘भारत पर बाबर के आक्रमण’ को लेकर नया टॉपिक जोड़ा गया है। गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय का मौजूदा पाठ्यक्रम इसे आक्रमण नहीं मानता। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को जरूर आक्रमण माना गया है। इस बार के पेपर में मध्यकालीन दौर में हिंदू और मुस्लिम समाज को लेकर दो अलग-अलग टॉपिक बनाया गया है। हालांकि जानकारों का मानना है है कि ऐसा ये दिखाने के लिए किया गया है कि किस तरह उस समय मुसलमान और हिंदू अलग-थलग थे।

इतिहासकारों का कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, हमेशा से यही पढ़ाया जाता रहा है कि किस तरह मध्यकालीन इतिहास में हिंदू और मुसलमान साथ रह रहे थे। इसके साथ ही 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच के मुस्लिम इतिहास को भी दरकिनार कर दिया गया है। हालांकि, संघ से जुड़े विचारकों का कहना है कि मुस्लिम इतिहास को दरकिनार नहीं किया गया है, बल्कि इसमें सुधार के साथ भारत के अन्य हिस्सों के राजाओं को भी जगह दी गई है।

साभार – जनसत्ता

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