UP Board 10th 12th Result 2024 Today know newspapers were sold in black before the UP Board Exam Result


UP Board 10th, 12th Result 2024: यूपी बोर्ड हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट जारी होने वाला है. प्रदेश के 55 लाख के करीब परीक्षार्थियों को रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार है. हर किसी की नजर उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट पर टिकी हुई हैं लेकिन अगर बात दो दशक पुरानी हो तो तस्वीर आज से एकदम जुदा थी.

सामूहिक तौर पर रिजल्ट के इस उत्सव की यादें उन सभी के जेहन में आज भी ताजा होंगी जिन्होंने नब्बे के दशक में या इससे पहले यूपी बोर्ड से हाईस्कूल की परीक्षा दी होगी. तब रिजल्ट अखबार में प्रकाशित किया जाता था. अखबार में अपना-अपना रोल नंबर ढूंढने वालों की भीड़ लग जाती थी. तब सफलता और असफलता व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामूहिक होती थी. एक ही जगह पर खुशी की लहर और आंसुओं का सैलाब देखा जा सकता था. तब अपरिचित लोग भी सफलता पर पीठ थपथपाते थे और असफलता पर फिर से प्रयास करने का हौसला भरते थे.

UP Board Result: जब रिजल्ट से पहले ब्लैक में बिकता था अखबार, रोल नंबर ढूंढने वालों की लगती थी लाइन, जानें यूपी बोर्ड का वह दौर

पास वाला देता था पैसे, फेल वाला फ्री

यूपी बोर्ड का रिजल्ट जारी करने का अखबार ही एक माध्यम होता था. कुछ बड़े अखबार दोपहर बाद अलग से रिजल्ट का अखबार प्रकाशित करते थे. अखबार आने की सूचना मिलते ही शहर के प्रमुख चौराहों और बुकसेलर्स के यहां मेला जुट जाता था. यहां बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स और उनके परिजन इकट्ठा हो जाते थे. भीड़ देखकर चाट-पकौड़ी के ठेले वाले भी मौका भुनाने पहुंच जाते थे. चूंकि यह अखबार आम अखबारों से कुछ महंगा होता था इसलिए चुनिंदा बुकसेलर इन अखबारों को खरीद लेते थे आर प्रति स्टूडेंट्स पांच से दस रुपये लेकर अच्छी कमाई करते थे. इनमें पास होने वाले छात्र को ही पैसे देने होते थे. फेल होने वाले छात्र से पैसे नहीं लिए जाते थे.

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फर्स्ट डिवीजन वाले की अलग होती थी बात

उस समय दृश्य कुछ ऐसा होता था कि हाथ में अखबार थामे बुकसेलर पर सैंकड़ों छात्र इकट्ठा होते थे. बुकसेलर एक-एक करके रोल नंबर पूछता और अखबार में देखता. रोल नंबर दिखने पर छात्र को दिखाता. फर्स्ट डिवीजन वाले के आगे एफ, सेकेंड डिवीजन वाले छात्र के रोल नंबर के आगे एस और थर्ड डिवीजन वाले के आगे टी लिखा होता था. फेल होने वाले छात्र का रोल नंबर अखबार में नहीं होता था. तब बोर्ड की परीक्षा में पास होना ही काफी मायने रखता था.

सेकेंड डिवीजन वाले को भी सम्मान की नजरों से देखा जाता था. फर्स्ट डिवीजन वाले की तो बात ही अलग होती थी. सूचना साधनों का अभाव होने के बावजदू फर्स्ट आने की खबर आसपास पड़ौस में और रिश्तेदारी में आग की तरह फैल जाती थी. सबकी वाहवाही मिलती थी. वहीं फेल होने वाले छात्र का रोल नंबर न दिखने पर परिजन कई बार अखबार में रोल नंबर ढूंढने की कोशिश करते थे. न मिलने पर अपने बच्चों को मौके पर ही कोसना शुरू कर देते थे.

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