USA Left UNESCO and now want to re-join know why china concerned



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हाइलाइट्स

अमेरिका ने औपचारिक तौर पर 2018 के अंत में यूनेस्को को छोड़ा था.
2011 से उसने यूनेस्को को पैसा देना बंद कर दिया था.
अब अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए वापसी करना चाहता है.

हाल ही में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को से फिर से जुड़ने की मंशा जताई है. यूनेस्को की डायरेक्टर जनरल ऑद्रे अजॉले ने जानकारी देते हुए कहा कि अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर नोटिस दिया है कि वह यूनेस्को से जुलाई 2023 से फिर से जुड़ना चाहता है. एक दशक पहले अमेरिका ने इजराइल के साथ यूनेस्को को छोड़ दिया था क्योंकि यूनेस्को ने फिलिस्तीन को उसका सदस्य बनाने के लिए प्रस्ताव रखा था. लेकिन इस बार अमेरिका की वापसी पर चर्चा इजारइल फिलिस्तीन की नहीं बल्कि चीन की हो रही है. इस मामले में आखिर चीन और अमेरिका की क्या चिंताएं हैं?

यूनेस्को को फायदा
वहीं यूनेस्को और अन्य सदस्य देशो में अमेरिका की वापसी को लेकर खुशी है क्योंकि इससे संस्था को बहुत बड़ी आर्थिक सहायता मिलेगी. और यूनेस्को कई कार्यक्रम जिनमें जलवायु परिवर्तन से निपटने, महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने के कार्यक्रम शामिल हैं. अमेरिका को यूनेस्को छह करोड़ डॉलर देने हैं जो पिछले करीब एक दशक से चुकाए नहीं गए है.

अमेरिका की चिंता
बताया जा रहा है कि अमेरिका ने इस बार वापसी के साथ ही उसने बकाया देनदारी को चुकाने का इरादा भी जताया है लेकिन चीन का नाम भी लिया है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि वापसी का फैसला ही इस बात से प्रेरित है कि अमेरिका के संस्था छोड़ने से पैदा हुए खाली स्थान की चीन घेरने लगा था जिससे चिंतित हो कर अमेरिका ने वापसी का इरादा किया है.

चीन के असर से चिंता
अमेरिका को विशेष रूप से इस बात की चिंता है की चीन दुनिया भर में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और तकनीकी शिक्षा के लिए तय किए जा रहे मनकों और नीतियों को प्रभावित कर रहा है. अमेरिका के मैनेजमेंट एंड रिसोर्सेस के डिप्टी सेकेट्री ऑफ स्टेट रिचर्ड वर्मा ने यूनेस्को में वापसी की योजना पेश करते हुए देनदारी चुकाने पर भी बातचीत की.

यूनेस्को में सुधार
यूनेस्को को लिखे पत्र में वर्मा ने यूनेस्कों को प्रबंधन सुधार और खास तौर से मध्य पूर्व को लेकर घटती राजनैतिक बहस का जिक्र किया है. इस आवेदन को पेरिस में एक शिष्टमंडल ने अपने हाथं से यूनेस्को को सौंपा है. वहीं यूनेस्को ने भी अपने बजट और वित्त प्रबंधन सुधार पर काम किए और संवेदनशील यूनेस्को प्रस्तावों पर जॉर्डन, फिलीस्तीन, और इजराइल के राजयनियों के बीच आम सहमति बनाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है.

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