VIDEO: Helicopter Drops ISROs Pushpak From A Height Of 15,000 Feet – VIDEO: हेलीकॉप्टर ने 15,000 फीट की ऊंचाई से ISRO के पुष्पक को गिरा दिया, देखें – फिर क्या हुआ



hgihsh7 pushpak VIDEO: Helicopter Drops ISROs Pushpak From A Height Of 15,000 Feet - VIDEO: हेलीकॉप्टर ने 15,000 फीट की ऊंचाई से ISRO के पुष्पक को गिरा दिया, देखें - फिर क्या हुआ

भारतीय वायुसेना ने एक आश्चर्य में डालने वाला वीडियो जारी किया है जो हेलीकॉप्टर के अंदर से बनाया गया है. इसमें ‘पुष्पक’ शटल के जमीन की ओर बढ़ने का दृश्य है.

इस परीक्षण के मिशन की शुरुआत चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा ‘पुष्पक’ को पृथ्वी की सतह से 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाने से हुई.

हेलीकॉप्टर से लटकते एक प्लेटफार्म पर शटल को रखा गया था. उसे 15 हजार फीट की ऊंचाई से हवा में छोड़ दिया गया. रिलीज होने के बाद विंग्स वाला व्हीकल क्रॉस रेंज में करेक्शन करते हुए रनवे तक पहुंचा. वह बहुत सटीकता के साथ रनवे पर उतरा. वह रनवे पर दौड़ा और अपने ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का उपयोग करके रुक गया.

इंडियन एयरफोर्स ने एक्स पर मिशन के वीडियो और तस्वीरें शेयर कीं और लिखा – “4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर एयरलिफ्ट किया गया, IAF के एयर वारियर इस सफल मिशन का हिस्सा थे. IAF इस मील के पत्थर को हासिल करने के लिए इसरो को हार्दिक बधाई देता है. भविष्य में भी इस तरह के और उपक्रमों के लिए IAF योगदान देगा.”

रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) की ऑटोनॉमस लैंडिंग कैपेबिलिटी का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से किए गए परीक्षण का नतीजा “उत्कृष्ट और सटीक” मिला.

यह परीक्षण पुष्पक की तीसरी उड़ान थी, जो कि अधिक जटिल हालात में इसकी रोबोटिक लैंडिंग क्षमता की जांच का हिस्सा था. पुष्पक को ऑपरेशनल बनाने और इसे तैनात करने में कई साल लगने की संभावना है.

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने पहले कहा था कि, “पुष्पक प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष तक पहुंच को सबसे किफायती बनाने का भारत का साहसिक प्रयास है.” सोमनाथ के अनुसार, रॉकेट का नाम रामायण में वर्णित ‘पुष्पक विमान’ से लिया गया है, जिसे धन के देवता कुबेर का वाहन माना जाता है.

इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक डेडिकेटेड टीम ने अंतरिक्ष शटल का निर्माण 10 साल पहले शुरू किया था. हवाई जहाज जैसे 6.5 मीटर के इस जहाज का वजन 1.75 टन है. लैंडिंग के दौरान छोटे थ्रस्टर्स वाहन को ठीक उसी स्थान पर पहुंचने में मदद करते हैं जहां उसे उतरना होता है. सरकार ने इस प्रोजेक्ट में 100 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है.

गौरतलब है कि दुनिया की बड़ी ताकतों ने विंग्स वाले प्रक्षेपण यानों को पुन: उपयोगी बनाए जाने वाले का विचार त्याग दिया, लेकिन भारत के मितव्ययी इंजीनियरों का मानना है कि रॉकेटों की रीसाइकलिंग करके फिर से उपयोग करने पर लॉन्चिंग की लागत कम हो जाएगी. भारत विंग्स वाले रॉकेट को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत में जुटा है, जबकि दुनिया में इस तरह के अंतरिक्ष विमान बनाने की ज्यादातर कोशिशें विफल हो चुकी हैं. 

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के वैज्ञानिकों को भरोसा है कि रीयूजेबल तकनीक से लॉन्चिंग के व्यय को 10 गुना कम किया जा सकता है. इससे लागत 2000 डॉलर प्रति किलोग्राम तक कम हो सकती है. इसरो की ओर से रीयूजेबल रॉकेट टेक्नीक में महारत हासिल करने के प्रयास जारी हैं. 

इसरो अपने पुष्पक प्रक्षेपण यान (Pushpak launch vehicle) को अमेरिकी स्पेस शटल की तरह का दिखने वाला बनाना चाहता है. रिसर्च में उपयोग किया गया मॉडल वास्तविक मॉडल से बहुत छोटा है. प्रायोगिक उड़ान के लिए एक एसयूवी के आकार का विंग्स वाला आकर्षक रॉकेट लॉन्च किया गया. हालांकि अंतिम रॉकेट को तैयार होने में कम से कम 10 से 15 साल लगेंगे.

स्पेस शटल की ऑपरेशनल फ्लाइट्स के लिए प्रयास करने वाले देशों में सिर्फ अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन शामिल हैं. अमेरिका ने 2011 में रिटायर होने से पहले अपने स्पेस शटल को 135 बार उड़ाया था. रूस ने अंतरिक्ष शटल बुरान बनाया और 1989 में इसे एक बार अंतरिक्ष में उड़ाया था. फ्रांस और जापान ने कुछ परीक्षण उड़ानें की थीं. चीनी ने भी इस तरह का एक प्रयोग किया था.





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