Why are witnesses made to take oath in Indian courts what is the reason behind it
जब भी कोई फिल्म में अदालत का सीन आता है तो वहां गवाही देने वाले व्यक्ति से सबसे पहले किताब पर हाथ रखकर कसम खिलाई जाती है. ऐसे में अक्सर ये सवाल मन में आता है कि क्या अब भी अदालतों में ऐसा ही होता है और ये प्रथा शुरू किसने की थी. चलिए जान लेते हैं.
कब शुरू हुई अदालतों में कमस लेने की प्रथा?
भारत में मुगलों और दूसरे शासकों के राज में धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा शुरू हुई थी. उस समय तक ये एक दरबारी प्रथा थी. इसके लिए कोई कानून भी नहीं था. फिर जब अंग्रेजों का शासन आया तो उन्होंने इसे एक कानूनी जामा पहना दिया. अंग्रेजों ने इंडियन ओथ्स एक्ट, 1873 पास किया और सभी अदालतों में इसे लागू कर दिया था.
कब खतम हुई किताबों पर हाथ रखकर कमस खाने की प्रथा?
भारत में किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रथा साल 1969 में खत्म कर दी गई थी. जब लॉ कमीशन ने अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी तो देश में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया और इसकी जगह पर ‘ओथ्स एक्ट, 1969’ पास कर दिया गया था. इस तरह पूरे देश में इसके बाद एक समान शपथ कानून लागू कर दिया गया है.
इस कानून के पास होने के बाद से भारत की अदालतों में शपथ लेने की प्रथा के स्वरुप में बदलाव किया गया और अब शपथ सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है. साफ शब्दों में कहें तो हिंदू,, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई के लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को बंद कर दिया गया है.
अब कैसी होती है कसम?
अब भारतीय अदालतों में इस तरह की कसम खाई जाती है, “I do swear in the name of God/solemnly affirm that what I shall state shall be the truth, the whole truth and nothing but the truth”.
“मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वो सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा”.
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