You have spent many years living on Earth but you may not know these nine strange things about it


धरती रहस्यों से भरी हुई है. इन रहस्यों को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक लगातार नए-नए खोज करते रहते हैं. पृथ्वी पर कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जो इंसानों और वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित भी करती हैं. आज हम आपको पृथ्वी के कुछ ऐसी ही तथ्यों के बारे में बताएंगे, जिसके बारे आप शायद नहीं जानते होंगे.

100 फीट से ज्यादा ऊंची लहरें?

बता दें कि 1995 में उत्तरी सागर में एक तेल प्लेटफ़ॉर्म पर एक बहुत बड़ा तूफ़ान आया था. इस तूफान में 84 फ़ीट ऊँची लहरें उठी थी. वहीं कुछ साल बाद स्कॉटलैंड के पश्चिम में 95 फ़ीट ऊँची लहर उठी थी. इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि समुंद्र में असल में इतनी ऊंची-ऊंची लहरे उठती हैं और ये आम बात है. हालाँकि ये घटनाएं खुले समुद्र में ही होती हैं.

पेरू के अमेज़ॅन में एक उबलती नदी 

दूसरा तथ्य ये है कि पेरू के अमेज़ॅन में एक उबलती नदी है. अगर इस नदी में कोई जानवर गिरता है, तो उसका बचना मुश्किल है. जानकारी के मुताबिक एक गैर-ज्वालामुखी भूतापीय विशेषता के कारण यहां का पानी काफी गर्म होता है.

पृथ्वी कभी बैंगनी था?

पृथ्वी के बारे में कई अलग-अलग दावे किए जाते हैं. इसमें एक दावा ये है कि पृथ्वी कभी बैंगनी रंग की थी. वैज्ञानिकों के मुताबिक प्राचीन सूक्ष्मजीवों ने सूर्य की किरणों का उपयोग करने के लिए क्लोरोफिल के अलावा किसी अन्य अणु का उपयोग किया होगा, जो बैंगनी रंग दे सकता था. वहीं क्लोरोफिल के आने से पहले रेटिनल नामक एक और प्रकाश-संवेदनशील अणु था, जो हरे प्रकाश को अवशोषित करता था और लाल और बैंगनी को परावर्तित करता था.

अंटार्कटिका था रेगिस्तान ?

आपने पहले भी कई जगहों पर सुना होगा कि अंटार्कटिका को रेगिस्तान कहा जाता है. दरअसल अंटार्कटिका बहुत ठंडा हो सकता है, लेकिन यह एक रेगिस्तान है. क्योंकि यहाँ बहुत कम बारिश या बर्फबारी होती है. जानकारी के मुताबिक महाद्वीप के आंतरिक क्षेत्रों में साल में केवल 2 इंच वर्षा होती है, वो बर्फबारी के रूप में होता है. अंटार्कटिका में सालाना लगभग छह इंच वर्षा होती है।

समुद्र में पृथ्वी की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखला 

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत सतह से ऊपर है. जी हां, दुनिया का सबसे लंबा पर्वत श्रृंखला वास्तव में पानी के नीचे है. इसे मिड-ओशन रिज नाम दिया गया है, यह अटलांटिक के मध्य से 40,000 मील से अधिक तक, हिंद महासागर के माध्यम से पूर्व में और प्रशांत महासागर के माध्यम से वापस ऊपर तक चलता है. बता दें कि सबसे लंबी महाद्वीपीय पर्वत श्रृंखला केवल 4,350 मील लंबी है. दरअसल रिज पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन बिंदुओं पर स्थित पानी के नीचे के ज्वालामुखियों की एक श्रृंखला है.

पृथ्वी पर सबसे बड़ा फंगस जीव 

बता दें कि धरती पर आर्मिलारिया फंगस 1990 के दशक की शुरुआत में मिशिगन में एक वैज्ञानिक ने खोजा था. जानकारी के मुताबिक इसका वजन लगभग 22,000 पाउंड था और यह 37 एकड़ में फैला हुआ था. रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों को ओरेगन का एक नमूना मिला, जो 2,400 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ था. वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक यह 8,650 साल पुराना है.

पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करते हैं महासागर?

वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि महासागरीय धाराएँ पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित और नियंत्रित करती हैं. ये ग्रह के हृदय की तरह काम करती हैं। शोधकर्ता लगातार इन धाराओं का अध्ययन करते हैं, जिससे बेहतर ढंग से ये समझ सकें कि वे हमारी जलवायु को कैसे प्रभावित करती है. 

ऑस्ट्रेलिया 22 वर्षों में पाँच फ़ीट आगे बढ़ा?

वैज्ञानिकों का ये तथ्य जानकर आप चौंक जाएंगे. बता दें कि पृथ्वी पर टेक्टोनिक प्लेट्स हैं, जो बदलती रहती ये अधिकांश लोग जानते हैं. लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि कुछ प्लेट्स कितनी तेज़ी से बदलती हैं. ऑस्ट्रेलिया की प्लेट विशेष रूप से इतनी तेज़ी से चलती है कि इसे नियमित रूप से मानचित्रों और GPS सिस्टम को अपडेट करने की आवश्यकता होती है. नेशनल जियोग्राफ़िक के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया 1994 और 2016 के बीच लगभग पाँच फ़ीट आगे बढ़ी है. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि लगभग 50 मिलियन वर्षों में ऑस्ट्रेलिया दक्षिण-पूर्व एशिया से टकराएगा.

पृथ्वी पर यहां सालाना 1 मिमी से भी कम होती है बारिश 

बता दें कि अटाकामा रेगिस्तान चिली के उत्तरी भाग में प्रशांत तट पर स्थित है. क्षेत्रफल में ये 1,000 मील की भूमि की पट्टी में फैला हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अटाकामा दुनिया का सबसे शुष्क गैर-ध्रुवीय रेगिस्तान है. इतना ही नहीं इसकी समानताओं के कारण इसे मंगल अभियान सिमुलेशन के लिए एक प्रयोग स्थल के रूप में इस्तेमाल किया गया है. दरअसल उत्तर की ओर बहने वाली ठंडी हम्बोल्ट महासागर धाराओं और मजबूत प्रशांत प्रतिचक्रवात के कारण लगातार तापमान उलटने के कारण यहां वर्षा बहुत कम होती है. इस रेगिस्तान के कई जगहों पर तो कभी बारिश दर्ज नहीं की गई है.

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